वैश्विकी : कानून के जरिये भाईचारा?
‘इस्लाम समस्या ग्रस्त है’ अथवा ‘इस्लाम एक समस्या है’- फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के इस कथन की दुनिया भर में, विशेषकर मुस्लिम जगत में व्यापक प्रतिक्रिया हुई।
वैश्विकी : कानून के जरिये भाईचारा? |
वास्तव में मैक्रों ने उनके देश में हुए गैर-संगठित छुटपुट आतंकी हमले के बाद यह बयान दिया था। उनका कथन केवल फ्रांस में ही नहीं, बल्कि दुनिया के अलग-अलग देशों की सरकारों और नेताओं के सामने मौजूद चुनौतियों की निशानदेही कराता है। अलग-अलग देश इस समस्या का समाधान अपनी राजनीतिक प्रणालियों और सामाजिक स्थिति के परिप्रेक्ष्य में कर रहे हैं। चीन और म्यांमार जैसे अधिनायकवादी या सीमित नागरिक अधिकारों वाले देश में सख्त कदम उठाए गए हैं, जबकि लोकतांत्रिक देशों में विधि के शासन में रहते हुए इस समस्या से जूझने के लिए उपाय खोजे जा रहे हैं। फ्रांस में इस्लामिक कट्टरता के विरुद्ध प्रस्तावित कानून ऐसा ही एक प्रयास है। हाल में फ्रांस के मंत्रिमंडल ने कानून के मसौदे को स्वीकृति दी, जिसे जनवरी महीने में संसद में पेश किया जाएगा। नए कानून का नाम ‘स्वतंत्रता कानून’ रखा गया है, लेकिन दुनिया की मीडिया और बुद्धिजीवी जगत में इसे इस्लामिक कट्टरता विरोधी कानून की संज्ञा दी जा रही है। मुस्लिम देशों में तो इसे इस्लाम विरोधी कानून बताया जा रहा है, जो दुनिया भर में फैले इस्लाम विरोधी ‘दुप्प्रचार’ का एक हिस्सा है। फ्रांस की सरकार ने कानून को लेकर व्यक्त की जा रही आशंकाओं को खारिज करते हुए कहा है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता पर आघात नहीं है, बल्कि उसका संरक्षण करता है। सरकार का दावा है कि नए काूनन से देश में शांतिपूर्ण सह अस्तित्व और भाईचारा सुनिश्चित होगा।
नए कानून के तहत मस्जिदों के दुरुपयोग, मजहबी तालीम और मुस्लिम संगठनों की पृथकतावादी गतिविधियों पर रोक लगाने का प्रावधान है। फ्रांस में रहने वाले लोगों और कार्यरत संस्थाओं के लिए यह अनिवार्य होगा कि वे गणतंत्र के आदशरे और मूल्यों के प्रति आस्था व्यक्त करें। कानून के पीछे सोच यह है कि फ्रांस में रहने वाले सभी लोग धर्म, भाषा और प्रजाति से उपर उठते हुए एक नागरिक समूह हैं, जिन्हें एक जैसे अधिकार उपलब्ध हैं। यह सोच अमेरिका और यूरोप के कुछ अन्य देशों से अलग है। उन देशों में नागरिकों की पहचान और विविधता को स्वीकार करते हुए सभी नागरिकों के लिए एक जैसे अधिकारों में विश्वास किया जाता है।
जिस समय फ्रांस के नए कानून को लेकर दुनिया भर में और विशेषकर मुस्लिम जगत में आलोचना हो रही थी, उसी समय चीन के झिनझियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों की दुर्दशा के बारे में नई चिंताजनक सूचनाएं सामने आई। पुनर्शिक्षण शिविरों के रूप में चीन की सरकार ने मुस्लिम समुदाय के लोगों को मजहबी सोच से अलग कर देश की साम्यवादी शासन-प्रणाली और उसकी विचारधारा के प्रति पूर्ण समर्पण का प्रयास किया है। चीन की सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी हुआवेई को लेकर रिपोर्ट आई है कि वह एक ऐसी प्रणाली विकसित कर रही है, जिसके जरिये एक-एक मुसलमान की गतिविधि और किसी स्थान विशेष में उसकी मौजूदगी के बारे में पुलिस को जानकारी मिल सकेगी। पश्चिमी देशों की सरकारों और मानवाधिकार संगठनों ने इस घटनाक्रम को मानवाधिकारों और नागरिक धार्मिक स्वतंत्रता का घोर उल्लंघन बताया है। वैश्विक समुदाय भले ही इसकी आलोचना करे, लेकिन चीन द्वारा इस तरह का तरीका अपनाया जाना कोई बात नहीं है। 2017 से चीन इनकी निगरानी के लिए तकनीक का उपयोग करता रहा है। आश्चर्य की बात यह है कि इस्लामिक देश उइगर मुसलमानों की दुर्दशा को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं। कश्मीर घाटी के लोगों के बारे में घड़ियाली आंसू बहाने वाले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने उइगर मुसलमानों के हालात के बारे में अपनी जुबान नहीं खोली है। मीडिया ने जब उनसे इसके बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा कि झिनझियांग के हालात के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
इस्लामी कट्टरवादिता के विरुद्ध फ्रांस और चीन में दो अलग-अलग तरह के प्रयोग हो रहे हैं। दुनिया के अन्य देशों की इस बात पर नजर होगी कि यह प्रयोग अपने उद्देश्यों को हासिल कर पाते हैं या नहीं। ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन से यह पता चलता है कि मजहबी कट्टरता की चपेट में आने वाले व्यक्ति का पुनर्शिक्षण सफल नहीं होता। ऐसा व्यक्ति मजहबी कट्टरता की अंधी सुरंग में भटकता रहता है।
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