बतंगड़ बेतुक : आजादी के बहाने गुलामी के कवच
झल्लन ने अपना सर खुजाया, फिर हमेशा की तरह सवाल उठाया, ‘ददाजू, आजकल हमारे आस-पास पहेलियां उड़ती रहती हैं, हमारे दिमाग पर चढ़ती रहती हैं, हमारी छोटी-सी समझ पर थप्पड़ जड़ती रहती हैं।’
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हमने कहा, ‘अब कौन-सी पहेली तेरे पल्ले पड़ गयी जो तेरे सर चढ़ गयी?’ झल्लन बोला, ‘यही कि बूढ़ी पार्टी के बड़े-बूढ़ों ने बुढ़िया माई को चिट्ठी लिख डाली। चिट्ठी में टूटते-दरकते घर को चुस्त-दुरुस्त बनाने-संवारने की बात उठा डाली, पर बूढ़ी माई के चांकुरों ने सारी भड़ास चिठियाने वालों पर ही उतार डाली।’
हमने कहा, ‘तो इसमें पहेली क्या है, बूढ़ी माई और उसका खानदान बूढ़ी पार्टी की आन-बान-शान हैं, उसकी परंपरा हैं, परिपाटी हैं, सो पार्टी ने परिपाटी निभा डाली और अपनी इस आन-बान-शान पर उंगली उठाने वालों की उतार डाली। इतनी सीधी सी बात में तूने टेढ़ा क्या तलाश लिया जिसे तूने पहेली बना लिया?’ झल्लन बोला, ‘का ददाजू, हम सोचे थे कि चिठियावीर थोड़ी वीरता दिखाएंगे, माई को ठीक से समझाएंगे, घर के दरकने के खतरे बताएंगे, पर ये क्या पता था कि सारे चिठियावीर दुम दबाकर भाग आएंगे और साथ में बुढ़िया माई की जय-जयकार भी कर आएंगे। तो पहेली ये है ददाजू कि बुढ़िया माई को घर की दरक क्यों दिखती नहीं और अगर दिखती है तो क्यों वह कुछ करती नहीं? दूसरे यह कि चिठियावीरों को कुछ तो दम दिखाना चाहिए था न कि पूंछ दबाकर भाग आना चाहिए था और अपनी सारी रूठी-गुसाई अभिव्यक्ति की आजादी को बूढ़ी माई के श्रीचरणों में चढ़ा आना चाहिए था। चिठियावीरों ने ऐसा क्यों किया, बूढ़ी पार्टी को जवान बनाने के लिए बूढ़ी माई से पंगा क्यों नहीं लिया?’
झल्लन की बात पर हमें हंसी आयी फिर हमने अपने दिमाग की खुजलन उसके दिमाग तक पहुंचाई, ‘देख झल्लन, अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई देने वाले या अपनी बात कहने की हिम्मत दिखाने वाले ये चिठियावीर न बहादुर थे, न योद्धा थे, वे तो अपनी स्व-पोषित गुलामी के पुरोधा थे। आजादी चाहे व्यक्ति की हो या अभिव्यक्ति की हो वह हमेशा भविभूत बनकर सिर्फ खयालों में रहती है, असली चीज तो गुलामी है जो हर वक्त इंसान की चाल-कुचालों में रहती है।’ झल्लन बोला, ‘क्या ददाजू, आप हमेशा जो समझ में न आये वो समझाते हैं और छोटी-सी पहेली को बड़ी पहेली बनाते हैं, पर आपकी समझ को क्या कहें कि आप गुलामी को आजादी से बड़ा बताते हैं?’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, न हम आजादी को छोटा दिखाते हैं, न गुलामी को बड़ा बनाते हैं, हमने तो अपने अनुभव से जो सीखा है वही तुझे सिखाते हैं। आजादी की चाहे कोई कितनी भी बात करे पर आदमी अपनी जिंदगी पर गुलामी को ही ढोता है, पर दिखावे के लिए आजादी को रोता है। आजादी दुख है तो गुलामी सुख है, आजादी असुरक्षा है तो गुलामी सुरक्षा है, आजादी द्रोह है तो गुलामी मोह है। आजादी सब कुछ हर लेती है, गुलामी झोली भर देती है।’ ‘फिर वही बात ददाजू’, झल्लन बोला, ‘आप पहेली बुझा रहे हैं या पहेली के ऊपर नयी पहेली चढ़ा रहे हैं, आजादी का महत्व बताने की बजाय गुलामी के गुन गिना रहे हैं।’
हमने कहा, ‘अच्छा बता झल्लन, देश में बोलने की जो आजादी मिली है उसका इस्तेमाल लोग कैसे करते हैं, आजादी से बोलते हैं तो किसके विरुद्ध और किसके पक्ष में बोलते हैं, अपनी आजाद जुबान खोलते हैं तो क्यों और किसलिए खोलते हैं?’ झल्लन बोला, ‘इस आजादी का इस्तेमाल तो टुच्चे से टुच्चा और लुच्चे से लुच्चा आदमी भी धड़ल्ले से कर रहा है, पूरी आजादी से एक-दूसरे को गाली दे रहा है, एक-दूसरे पर कीचड़ उछाल रहा है, कमियां गिना रहा है और अगर पक्ष सरकारी है तो विपक्ष पर मार कर रहा है और विपक्षी है तो सरकारी पक्ष पर प्रहार कर रहा है। संविधान ने अभिव्यक्ति की जो आजादी दी है उसका जश्न हर कोई मना रहा है और इधर आपका दिल गुलामी के गान गा रहा है।’ हमने समझाया, ‘देख झल्लन, जो लोग आपस में दुश्मनी रखते हैं वे तो एक-दूसरे को सदियों से गालियां देते आ रहे हैं, एक-दूसरे को निपटाने की कोशिश भी करते रहे हैं, निपटाते भी रहे हैं और ये काम वे पूरी आजादी से करते रहे हैं, आज भी कर रहे हैं। एक-दूसरे को निपटाने के व्यक्तिगत, सामूहिक, दलगत और साम्प्रदायिक प्रयास जैसे सदियों से चलते आ रहे हैं वैसे आज भी चल रहे हैं। लेकिन यह बोलने की आजादी नहीं, सहिष्णुता और शत्रुता की अभिव्यक्ति है जो एक-दूसरे को समझने की समझदारी से पूरी तरह रिक्त है।’
झल्लन बोला, ‘तो अभिव्यक्ति की आजादी क्या है, गुलामी क्या है और इन दोनों का आपसी नाता क्या है?’ हमने कहा, ‘अभिव्यक्ति की आजादी वहां होती है जहां व्यक्ति निर्भय मुंह खोल सके, अपनों की गलतियों पर बोल सके। बाकी सारी कहानी तो चाटुकारों और चापलूसों की है, गुलामी और गुलामों की है।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, तो चिठियावीरों ने क्या पाप किया, उन्होंने भी तो यही किया।’ हमने कहा, ‘पर तेरे चिठियावीर बात बढ़ाए बिना चुपचाप बाहर निकल आये, अपनी गुलामी के कवच को सुरक्षित बचा लाये। पर अब हम ज्यादा नहीं बोल पाएंगे, आगे की बात अगली बैठकी में बताएंगे।’
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