मीडिया : कोरोना, जनता और मीडिया
कोरोना ने मीडिया के रोल को नये सिरे से परिभाषित कर दिया है। बहुत दिन बाद वह आम गरीब आदमी की बात भी करता दिखता है।
मीडिया : कोरोना, जनता और मीडिया |
शुरू में जब ‘कोरोना वायरस’ के होने की खबरें आई थीं तब तक ऐसा नहीं था। लेकिन जब से दुनिया में कोरोना के कहर से होने वाली जन-धन हानि की बातें सामने आई तब से उसका रोल बदला। शुरू-शुरू में अपने मीडिया ने कोरोना के ‘डर’ को बेचा। फिर मीडिया ने होश संभाला और कोरोना के पहले चरण की समीक्षा में लगा रहा और इन दिनों ‘कोरोना’ के दूसरे चरण यानी कम्यूनिटी चरण में दाखिल होने के खतरों से बचने के उपायों पर जोर देता नजर आता है। इसके साथ ही, कोरोना को फैलने से रोकने के लिए किए जा रहे उपायों के कारण संभव आर्थिक नुकसान व आसन्न मंदी से निपटने के उपायों पर भी बल देता नजर आता है। कहने की जरूरत नहीं कि पहली बार मीडिया ने अपने विकासमूलक रोल को पहचाना है और समाज के भविष्य की चिंता में लगा है वरना कल तक उसके एजेंडे में ‘हेट स्पीचें’ ही होती थीं या ‘विभाजनकारी मुद्दे’ होते थे जिन पर बहसने के लिए कुछ हिंदू मुसलमान नुमाइंदे होते थे जो आपस में ‘तू-तू-मैं-मैं’ करते हुए सारे देश को हिंदू-मुसलमान बनाते रहते थे। करोना की खबरों के बाद मीडिया ने अपनी जिम्मेदारी को बेहतर तरीके से समझा। जनता को जागरूक करने के लिए उसने एक से एक एक्सपर्ट बुलाकर समझाना शुरू किया कि ‘कोरोना वायरस’ या ‘कोविड-19’ को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह एक ऐसा घातक सक्रमण है जिसकी न कोई दवा है, न टीका है। फैलने से रोक कर ही इससे बचा जा सकता है। यह उनसे फैलता है, जिनका ‘विदेश यात्रा का इतिहास’ है।
ऐसों को हवाई अड्डे पर इसीलिए चेक किया जाता है या ‘क्वारंटाइन’ किया जाता है। शुरू में लोग कोरोना को लेकर सीरियस नहीं थे लेकिन इन दिनों मीडिया कोरोना को गंभीरता से लेने का आग्रह करता है। वह एक्सपर्टों से कहलवाता है कि हम जिस कोरोना से एक युद्ध लड़ रहे हैं, वह एक अबूझ और अमूर्त संकामक शत्रु है। उसे युद्ध स्तर की तैयारी करके ही हराया जा सकता है और इसका श्रेय मीडिया के समकालीन पॉजिटिव रोल को ही जाता है कि आज हर आदमी कोरोना और उससे बचने के उपायों के बारे में जागरूक है। मीडिया यह भी बताता रहा है कि हम कोरोना के पहले चरण में हैं जो ‘व्यक्ति से व्यक्ति तक’ संक्रमण करता है, लेकिन अगर इसको पहले चरण में ही न रोका गया तो कोरोना दूसरे चरण में दाखिल होकर ‘व्यक्ति से कम्यूनिटी तक’ फैल सकता है, जो बहुत ही खतरनाक हो सकता है। इसलिए उससे ‘बचाव’ ही उसका ‘इलाज’ है। इसीलिए मीडिया बताता है कि यह दौर ‘सेल्फ आइसोलेशन’ का दौर है ताकि कहीं भीड़भाड़ न हो, लोग कुछ दिन घरों में बंद रहें, आपस में न मिलें, पार्टी-शार्टी न करें, इसी कारण सरकारें स्कूल-कॉलेजों को बंद कर रही हैं। माल, सिनेमा, बाजार, दुकानें, हॉल, पार्क आदि बंद हो रहे हैं। जगह- जगह कर्फ्यू लगाए जा रहे हैं। न लोग एक दूसरे से मिलेंगे और न ही कोरोना फैलेगा।
कोरोना आगे न फैले, शायद यही खयाल करके ही प्रधनमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों को संबोधित करते हुए एक दूसरे से ‘डिस्टेंस’ बनाने तथा अपने को ‘आइसोलेट’ करने के लिए ‘आत्मानुशासन’ अपनाने के सुझाव दिए। और ‘संयम’ तथा ‘संकल्प’ के साथ रविवार के दिन सुबह पांच बजे से लेकर रात नौ बजे तक-चौदह घंटे-का ‘जनता का कर्फ्यू’ लगाने का सुझाव दिया ताकि कोरोना के दूसरे चरण से पहले ही निपटा जा सके। विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना के वायरस की उम्र बारह घंटे की होती है। शायद इसीलिए चौदह घंटे का कर्फ्यू लगाया गया है ताकि उसकी सक्रियता खत्म हो जाए। कहने की जरूरत नहीं कि सोशल मीडिया में इसके भी निंदक निकल आए। कुछ ने तो मीडिया में ही दबे स्वर में कहा कि इस बहाने जनता की ‘ड्रिल’ (अभ्यास) कराई जा रही है, अभ्यास कराया जा रहा है ताकि वह आगे के लिए ‘ड्रिल’ करने को तैयार रहे। बताइए ऐसे छिद्रान्वेषियों का क्या किया जा सकता है?
अगर पीएम चुप रहते तो कहते कि कोरोना पर पीएम चुप क्यों हैं और अगर बोले तो कहते हैं कि ड्रिल की बात क्यों कर रहे हो। ‘जनता कर्फ्यू’ की बात सिर्फ इसलिए है ताकि कोरोना की साइकिल टूट जाए और वो फैलने से रुक सके और उस पर काबू पाया जा सके। यही नहीं, पीएम ने जनता कर्फ्यू के साथ स्पेशल आर्थिक प्रयत्नों की बात भी की है क्योंकि जब सब बंद रहेगा तो मंदी में आम आदमी जिएगा कैसे? ऐसे ही प्रयत्न केरल व यूपी सरकार ने उठाए हैं। कहने की जरूरत नहीं कि मीडिया इस युद्ध में जनता के साथ है।
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