वैश्विकी : महामारी में विश्व एक
कोरोना वायरस के प्रकोप ने स्वास्थ्य के मोर्चे पर ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के लिए भी एक बड़ी चुनौती पेश की है।
वैश्विकी : महामारी में विश्व एक |
यह चुनौती विश्व समुदाय के हित में एक अवसर भी साबित हो सकती है। आर्थिक वैश्विकरण के बाद विश्व समुदाय अब ‘स्वास्थ्य कूटनीति’ की ओर बढ़ सकता है। किसी महामारी का प्रकोप यदि एक देश से पूरी दुनिया में फैल सकता है तो इससे यह भी सबक मिलता है कि यदि किसी एक देश में कोई महामारी फैले तो पूरी दुनिया को मिलकर उसका मुकाबला करना चाहिए।
महामारी का मुकाबला क्षेत्रीय, महाद्वीपीय या विश्व स्तर पर करने के संबंध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक प्रशंसनीय पहल की है। उन्होंने दक्षिण एशिया सहयोग संगठन (सार्क) के नेताओं के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये एक साझा रणनीति बनाने की पहल की। इतना ही नहीं उन्होंने ईरान में एक मोबाइल लेबोरेटरी के रूप में भारतीय चिकित्साकर्मियों के एक दल को भेजा। सार्क देशों को भी उन्होंने यथासंभव चिकित्सा उपकरण मुहैया कराने का आश्वासन दिया। इस ‘स्वास्थ्य कूटनीति’ का अनुसरण अब चीन भी कर रहा है। अपने यहां कोरोना वायरस पर कुछ सीमा तक काबू पाने के बाद चीन ने अन्य देशों को चिकित्सा सामग्री और चिकित्साकर्मी भेजने की शुरुआत की है। यूरोप के कई देश इस महामारी का मुकाबला करने के लिए चीन से अनुभव और सहायता हासिल करना चाहते हैं। कोरोना वायरस के फैलाव के प्रारंभिक चरणों में लापरवाही बरतने वाला चीन अब भूल-सुधार के रूप में अन्य देशों को सहायता देने के लिए तत्पर है।
राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अंतरराष्ट्रीय संपर्क की महात्त्वाकांक्षी रोड एंड बेल्ट परियोजना की तर्ज पर एक स्वास्थ्य सहयोग परियोजना शुरू करने का प्रस्ताव रखा है। एशिया और यूरोप के साथ ही पूरी दुनिया को इस स्वास्थ्य प्रणाली से जोड़कर भविष्य में कोरोना वायरस जैसी महामारी का सामना करना आसान हो सकता है। कोरोना वायरस पृथ्वी ग्रह पर रहने वाले संपूर्ण मानव समुदाय को कड़ी चेतावनी भी दे रहा है। प्रकृति के साथ दिन-रात खिलवाड़ करने वाला मानव समुदाय से प्रकृति तो अपना बदला ले ही रही है साथ में जीव-जंतु भी मनुष्यों के साथ अपना प्रतिशोध ले रहे हैं। अमेरिका, चीन और यूरोप के देश मांसाहारी हैं। चीन में तो लोग सांप और चमगादड़ को भी बड़े चाव से खाते हैं। चीन के प्रांत वुहान में चमगादड़ का सूप बहुत लोकप्रिय है। चीन के इसी प्रांत से कोरोना वायरस का फैलाव पूरी दुनिया में हुआ है। अब यही सांप और चमगादड़ कोरोना वायरस के जरिये चीन सहित पूरी दुनिया के प्राणी जगत पर जानलेवा कहर बरपा रहा है।
भारत के संदर्भ में अच्छी बात यह है कि यहां के ज्यादा लोग शाकाहारी हैं। यही कारण है कि भारत अभी कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी से अपेक्षाकृत कम प्रभावित है। लेकिन भारत जैसे आर्थिक रूप से पिछड़े और गरीब देश की वास्तविक समस्या यहां की चरमराती स्वास्थ्य सेवा है। प्रधानमंत्री मोदी देश की दम तोड़ रही सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा से भलीभांति परिचित हैं। उन्हें यह मालूम है कि यदि कोरोना वायरस भारत में अपने तीसरे चरण तक पहेंच गया तो ‘कोरोना विस्फोट’ से देश की तबाही को बचाना बहुत ही दुष्कर कार्य होगा। यही कारण है कि उन्होंने घरेलू मोर्चे पर इस महामारी का मुकाबला करने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग यानी सामाजिक दूरी को कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में एक महत्त्वपूर्ण हथियार माना और आज सुबह सात से रात नौ बजे तक जनता कर्फ्यू का आह्वान किया है।
दूसरी ओर उन्होंने वैश्विक मोर्चे पर विश्व नेतृत्व की भूमिका निभाने की पूरी तैयारी कर ली है। प्रधानमंत्री मोदी सार्क देशों के प्रमुखों को इस महामारी से लड़ने के लिए एकजुट करने के बाद अब विश्व के प्रमुख देशों को लामबंद करना चाहते हैं। उनकी कोशिश है कि दुनिया के प्रमुख अर्थव्यवस्था वाले देशों का संगठन जी-20 कोरोना के विरुद्ध विश्व युद्ध में एक मंच पर आए। कुछ सप्ताह या महीनों के बाद जब कोरोना वायरस महामारी पर काबू पा लिया जाएगा तब विश्व नेताओं के सामने पुनर्निर्माण की चुनौती दरपेश होगी। कुछ अथरे में यह चुनौती द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तबाही के शिकार देशों के पुनर्निर्माण जितनी व्यापक और विराट होगी। यह आशा की जानी चाहिए कि उस समय विश्व नेता संकीर्ण राष्ट्रीय स्वाथरे से ऊपर उठकर विश्व मानवता के हित में सामूहिक अभियान चलाएंगे।
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