सरोकार : श्रमबल में वृद्ध महिलाओं की बड़ी संख्या
यह पहली दफा है कि यूके में 60 से 64 साल की औरतें बड़ी संख्या में वर्कफोर्स में शामिल हुई हैं। ऐसा ऑफिस फॉर नेशनल स्टैटिस्टिक्स के आंकड़ों में कहा गया है।
सरोकार : श्रमबल में वृद्ध महिलाओं की बड़ी संख्या |
2010 में यूके में स्टेट पेंशन एज यानी सरकारी पेंशन की आयु में बदलाव के कारण ऐसा हुआ है। इससे बूढ़ी औरतों की संख्या वर्कफोर्स में 51 फीसद की दर से बढ़ी है। उनके मुकाबले पुरुषों की संख्या सिर्फ 13 फीसद की दर से बढ़ी है।
2010 में सरकार ने पेंशन की आयु को 65 साल से बढ़ाकर 66, 67 और 68 किया था। इससे दूसरी तरह की दिक्कतों के बढ़ने की उम्मीद थी। रिटायरमेंट की आयु को 65 साल से ज्यादा बढ़ने से जीडीपी पर 2040 तक अतिरिक्त 1.3 फीसद के दबाव की आशंका है। वैसे इससे बहुत-सी औरतों को फायदा हुआ है, लेकिन विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि इससे असमानता बढ़ेगी। औरतें लगातार कम वेतन पर, असुरक्षित और काम की खराब स्थितियों में फंसी रहेंगी। सेंटर फॉर एजिंग बेटर जैसे संस्थानों का मानना है कि इससे बूढ़ी औरतों की हालत खराब होगी क्योंकि बाकी लोगों की तरह उनसे भी यही उम्मीद की जाएगी कि वे लंबे घंटों तक काम करेंगी। चूंकि काम करने का पैटर्न लगातार बदल रहा है। बदलते वक्त ने महिलाओं को आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक रूप से सशक्त किया है और उनकी हैसियत एवं सम्मान में वृद्धि हुई है। इसके बावजूद अगर कुछ नहीं बदला तो वह है महिलाओं की घरेलू जिम्मेदारी। खाना बनाना और बच्चों की देखभाल अभी भी महिलाओं का ही काम माना जाता है यानी अब महिलाओं को दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ रही है। घरेलू महिलाओं की तुलना में कामकाजी महिलाओं पर काम का बोझ ज्यादा है। इन महिलाओं को अपने कार्य क्षेत्र और घर, दोनों को संभालने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही है। वैसे दुनिया भर में वृद्धों को दोयम दरजे के व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है।
विभिन्न देशों में तेजी से सामाजिक परिवर्तनों का दौर चालू है और इस कारण वृद्धों की समस्याएं विकराल रूप धारण कर रही हैं। इसका मुख्य कारण देश में उत्पादक एवं मृत्यु दर का घटना एवं राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या की गतिशीलता है। कई देशों में जल्दी ही यह विषमता आने वाली है कि वृद्धजन, जो जनसंख्या का अनुत्पादक वर्ग हैं, शीघ्र ही उत्पादक वर्ग से अधिक बड़ी संख्या वाले होने वाले हैं। यद्यपि यह समस्या इतनी गंभीर नहीं है जितनी वृद्धों को लेकर समाज में समन्वय की समस्या है। वृद्धों के समाज में समन्वय न होने के दो मुख्य कारण हैं। पहला, उम्र बढ़ने से व्यक्तिगत परिवर्तन और दूसरा वर्तमान औद्योगिक समाज का अपने वृद्धों से व्यवहार का तरीका। जैसे-जैसे व्यक्ति वृद्ध होता जाता है, समाज में उसका स्थान एवं भूमिका बदलने लगती है। भारत एवं चीन, जिनका विश्व की जनसंख्या में बड़ा हिस्सा है, में बेहतर स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधा के चलते वृद्धों की जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में वृद्धजनों की संख्या 10.38 करोड़ है। 21वीं सदी में वृद्धों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि होने की संभावना है। विकसित राष्ट्रों में स्वास्थ्य एवं समुचित चिकित्सीय सुविधा के चलते व्यक्ति अधिक वर्षो तक जीवित रहते हैं। अत: वृद्धों की जनसंख्या विकासशील देशों की तुलना में विकसित देशों में ज्यादा है। इनमें वृद्ध महिलाओं की संख्या भी बहुत अधिक है। यूं यह अच्छा संकेत है कि यूके में उन्हें बड़ी संख्या में काम करने का मौका मिल रहा है।
| Tweet |