शिक्षा : फर्जी मान्यता का दुष्चक्र
शिक्षा का उद्देश्य चाहे जितना पवित्र माना जाता हो, देश के एजूकेशनल सेक्टर में चल रहे फर्जीवाड़ों को देखकर लगता नहीं कि तमाम स्कूल-कॉलेजों के संचालकों की इसकी पवित्रता से कोई लेना-देना भी है।
शिक्षा : फर्जी मान्यता का दुष्चक्र |
इसका एक विरोधाभास देशभर में चल रही बोर्ड परीक्षाओं के बीच केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के हालिया नोटिस में दिखा है। इसमें उसने स्कूलों की मान्यता से जुड़े नियमों को लेकर सख्ती बरतने की बात कही है। नोटिस के मुताबिक जिस स्कूल को सीबीएसई मान्यता नहीं मिली होगी, उस स्कूल में पढ़ रहे बच्चों को किसी भी हाल में बोर्ड परीक्षा में शामिल होने नहीं दिया जाएगा। इससे पहले सीबीएसई मामले में रियायत बरतता आया है।
सीबीएसई का कहना है कि देश में ढेरों स्कूल ऐसे हैं जिन्होंने बोर्ड की मान्यता हासिल नहीं की है लेकिन वे लगातार छल से बोर्ड के नाम का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। ये सारे वे स्कूल हैं, जिनके मान्यता संबंधी आवेदन अभी प्रक्रिया में (अंडर प्रोसेस) हैं या बोर्ड ने उनका आवेदन ठुकरा दिया है, या जिन्होंने मान्यता के लिए आवेदन नहीं किया है। पर ये स्कूल अभिभावकों को शहर-कस्बों में बड़े-बड़े होर्डिंग में टूबी एफिलिएडेट, सीबीएसई पैटर्न, लाइकली टूबी एफिलिएडेट विद सीबीएसई, रनिंग अंडर सीबीएसई आदि वाक्य लिखकर बच्चों के दाखिले लेते हैं। अभिभावक प्राय: इन स्कूलों की मान्यता और स्कूल के आवेदन के स्टेटस आदि के विवरण का मिलान सीबीएसई की वेबसाइट पर जाकर नहीं करते हैं। जबकि बोर्ड की ओर से 2018 में जारी मान्यता (एफीलिएशन) के नये नियमों के अनुसार बिना मान्यता वाले स्कूल के बच्चों को बोर्ड की ओर से होने वाले परीक्षा में शामिल नहीं होने दिया जाएगा।
उन्हें शायद यह जानकारी भी नहीं होती है कि कुछ स्कूल मान्यता का आवेदन किए बगैर ही मान्यता प्राप्त लिख देते हैं। सीबीएसई ने नोटिस में सख्ती दिखाई है, कुछ जागरूकता की बातें भी कही हैं, लेकिन ठीकरा जाकर उन अभिभावकों के माथे ही फूटता है कि वे मान्यता जांचे बिना बच्चों का दाखिला ऐसे स्कूलों में न कराएं। अगर दाखिला कराते हैं तो इसका जिम्मा सीबीएसई का नहीं होगा-नोटिस शायद यह कहना चाहता है। शिक्षा क्षेत्र के फर्जीवाड़ों पर नजर दौड़ाएं तो मामला सिर्फ बोर्ड परीक्षाओं और 12वीं की शिक्षा के स्कूलों में ही खत्म नहीं होता है। यह इससे आगे कॉलेज-यूनिर्वसटिी तक जाता है। देश में सैकड़ों कॉलेज-यूनिर्वसििटयां बिना मान्यता के चल रहे हैं, पर वहां भी उनकी सत्यता की जांच का जिम्मा उन्हीं लोगों पर छोड़ा गया है जो उनमें पढ़ना चाहते हैं या उनकी डिग्रियां लेना चाहते हैं। इस बारे में यूनिर्वसटिी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) की तरफ से यह तो अवश्य किया गया है कि पिछले कुछ वर्षो में देश में मान्यता प्राप्त कॉलेजों और यूनिर्वसििटयों की सूची उसकी वेबसाइट पर प्रकाशित की जाने लगी है। लेकिन यदि कोई यह जांच नहीं कर पाता है या किसी अन्य कॉलेज-यूनिर्वसटिी में दाखिला नहीं मिलने की सूरत में इरादतन उसमें दाखिला लेता या उसकी डिग्री लेने की कोशिश करता है, तो उसे ऐसा करने से रोकने का क्या उपाय है?
कभी-कभार यदि कोई संस्थान की मान्यता का सवाल उठाता है तो उसे यह आश्वासन देकर शांत कर दिया जाता है कि इसकी फाइल संबंधित यूनिर्वसटिी के पास लंबित है और जल्द ही उसे स्वीकृति मिल जाएगी। इस तरह बिना मान्यता लिए खड़े किए गए ये फर्जी संस्थान हर साल हजारों छात्रों और उनके अभिभावकों को ठग रहे हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि सीबीएसई से लेकर यूजीसी और एआईसीटीई के पास ऐसे स्कूल-कॉलेजों और संस्थानों पर सीधी कार्रवाई का कोई बड़ा अधिकार नहीं है। ये संस्थाएं ऐसे मामलों में खुद संज्ञान लेकर कार्रवाई नहीं करती हैं, जिसका खामियाजा अक्सर छात्र ही उठाते हैं। आज अगर सीबीएसई ने यह नोटिस जारी किया है कि गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों के छात्रों को बोर्ड परीक्षा में बैठने नहीं दिया जाएगा, तो गाज तो बेचारे छात्र और उसकी शिक्षा पर खर्च करने वाले अभिभावक पर गिरी। यही वह पेच है जिस पर हमारी सरकार और शिक्षा तंत्र की नजर जानी चाहिए। अगर फर्जी स्कूलों में दाखिला लेना गलती है, तो क्या इसके लिए खुद बोर्ड और सरकार-प्रशासन का वह अमला जिम्मेदार नहीं है, जिसके अधिकारी इन्हीं बातों के लिए भारी-भरकम वेतन उठाते हैं। अगर फर्जी स्कूल झूठे होर्डिंग लगाकर अभिभावकों को भरमा सकते हैं, तो उससे बड़े होर्डिंग लगाकर बोर्ड उन्हें सतर्क करते हुए जागरूक भी बना सकता है। चोरी के केस में चोर की बजाय मकान मालिक को दंडित करने वाली व्यवस्था को बदलेंगे तो शिक्षा की पवित्रता का उद्देश्य हासिल होते देर नहीं लगेगी।
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