सामयिक : इस दुष्प्रचार का जवाब जरूरी

Last Updated 10 Mar 2020 01:55:47 AM IST

भारत को विश्व पटल पर बदनाम करने की जिस तरह की कोशिशें हो रही हैं, उनका एकजुट होकर मुकाबला किया जाना चाहिए। दिल्ली हिंसा पर ईरान के सर्वोच्च धार्मिंक नेता अयातुल्ला खमेनेई ने एक सप्ताह में दो बार ट्वीट कर बयान दिया है।


सामयिक : इस दुष्प्रचार का जवाब जरूरी

अंतिम ट्वीट में कहा है कि भारत में मुस्लिमों के नरसंहार पर दुनिया भर के मुस्लिमों का दिल दुखी है। भारत को कट्टर हिंदुओं और उनकी पार्टयिों को रोकना चाहिए और इस्लामिक देशों की ओर से अलग-थलग होने से बचने के लिए भारत को मुस्लिमों के नरसंहार को रोकना चाहिए। खमेनेई से पहले ईरानी विदेश मंत्री जवाद शरीफ ने ट्विटर पर लिखा था कि ईरान भारतीय मुसलमानों के खिलाफ संगठित हिंसा की निंदा करता है। हम भारत से अनुरोध करते हैं कि सभी भारतीयों की सुरक्षा सुनिश्चित करें। ऐसी घटनाओं को रोके।
जरीफ के बयान के बाद नई दिल्ली स्थित ईरान के राजदूत अली चेगेनी को तलब किया गया। उन्हें बताया गया कि जरीफ ने जिस मामले पर टिप्पणी की, वह भारत का आतंरिक मामला है। लगता है कि डोनाल्ड ट्रंप की भारत में आवभगत से ईरान नाखुश है। इस समय भारत विरोधियों ने भारत की छवि को बदनाम करने का अभियान-सा चला रखा है। सरकार का विरोध और आलोचना होनी चाहिए लेकिन उस सीमा तक न हो कि देश की छवि खराब हो जाए। दुर्भाग्य से यही हुआ है। जिस तरह नागरिकता संशोधन कानून, नेशनल पोपुलेशन रजिस्टर या एनपीआर तथा संभावी नेशनल सिटीजनशीप रजिस्टर यानी एनआरसी को लेकर दुष्प्रचार किया गया, सरकार को समुदाय विशेष का विरोधी बताने वाले लेख लिखे गए, साक्षात्कार दिए गए, कुछ वैश्विक संस्थानों को प्रतिवेदन तक दिया गया, उनका असर हुआ है।

ज्यादातर प्रमुख मुस्लिम देशों से भारत के काफी अच्छे संबंध हैं। कई देशों ने अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नवाजा भी है। जाहिर है, बदनाम करने के पीछ मुख्य उद्देश्य संबंधों में खटास पैदा करना है। ईरान से पहले तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगन ने भी कहा था कि भारत ऐसा देश बन गया है जहां बड़े पैमाने पर नरसंहार हो रहा है। कैसा नरसंहार? मुसलमानों का नरसंहार। कौन कर रहा है? हिंदू। इंडोनेशिया में भी दिल्ली हिंसा को लेकर भारतीय राजदूत को तलब किया गया था। मलयेशिया भी मुस्लिमों की सुरक्षा के मुद्दे पर भारत विरोधी बयान देता रहा है। एर्दोगन दुनिया में मुस्लिमों के सर्वमान्य नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं। पाकिस्तान के साथ मिलकर तुर्की और मलयेशिया ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के भारत सरकार के फैसले को मुसलमानों के खिलाफ कहकर प्रचारित किया था। पाकिस्तान ने कोशिश की थी कि किसी तरह इसे कश्मीर के मुसलमानों के खिलाफ बताकर मुस्लिम देशों का समर्थन हासिल कर सके लेकिन भारत की सघन कूटनीति के समक्ष सफल नहीं हो सका। अब वह फिर मौका देखकर सक्रिय हो गया है। इमरान खान ने ट्वीट के लिए खमेनेई और एर्दोगान की सराहना करते हुए अफसोस जताया कि दिल्ली हिंसा के खिलाफ मुस्लिम जगत में कम आवाजें उठी हैं। मोदी के हिंदू वर्चस्ववादी शासन के खिलाफ अधिक आवाजें पश्चिमी जगत से उठ रही हैं।
तुर्की के राष्ट्रपति के बयानों का विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने खंडन किया है। उसके राजदूत को बुलाकर भी प्रतिवाद किया गया किंतु दूसरे देशों से भी इसी तरह की आवाज आ रही है। ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स में विपक्षी लेबर पार्टी के पाकिस्तानी मूल के सांसद खालिद महमूद के प्रश्न के जवाब में ब्रिटेन के विदेश एवं राष्ट्रमंडल कार्यालय (एफसीओ) के राज्य मंत्री निजेल एडम्स ने कहा कि ब्रिटेन सरकार सीएए के संभावित प्रभाव को लेकर भी चिंतित है। ब्रिटेन के बयान को हम एकदम खिलाफ नहीं मान सकते लेकिन वहां की संसद में प्रश्न उठाने का मतलब आसानी से समझा जा सकता है। पाकिस्तानी मूल की एक अन्य सांसद नुसरत गनी ने ब्रिटेन सरकार की चिंताओं को भारत तक पहुंचाने का आग्रह किया। ब्रिटिश सिख लेबर पार्टी के सांसद तनमनजीत सिंह ढेसी ने कहा कि हिंसा ने 1984 के सिख विरोधी दंगों की दुखद यादों को ताजा कर दिया। यह बात अलग है कि कन्जर्वेटिव पार्टी के सांसद बॉब ब्लैकमैन ने कहा कि दंगों में सिर्फ  मुस्लिम नहीं मारे गए हैं, बल्कि हिंदू भी मरे हैं। हमारी कूटनीति वहां सक्रिय होगी लेकिन वहां इसे भारत विरोधी मुद्दा बनाने की कोशिश हो रही है। यूरोपीय संघ से लेकर अमेरिकी संसद की कुछ समितियों ने भी खुलकर भारत की आलोचना की है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद सीएए को लेकर हमारे सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। 
कल्पना कर सकते हैं कि किस तरह की शक्तियां दुनिया के स्तर पर सक्रिय होंगी। ऐसा नहीं होता तो परिषद भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का अभूतपूर्व कदम नहीं उठाती। अंतरराष्ट्रीय धार्मिंक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (यूएससीआईआरएफ) के सदस्यों ने विशेषज्ञों की एक आमंत्रित समिति के साथ सुनवाई की। संस्था की आयुक्त अनुरिमा भार्गव ने कहा कि आशंका है कि एनपीआर की योजना और एनआरसी के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर भारतीय मुसलमान मताधिकार से वंचित हो सकते हैं। यह भी कहा कि अफसोस की बात है कि हमने प्रदशर्नकारियों और मुस्लिम समुदाय को लक्षित दिल्ली की हालिया हिंसा के खिलाफ सरकारी अधिकारियों की नृशंस कार्रवाई को देखा है। ब्राउन विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय अध्ययन एवं सामाजिक विज्ञान के अध्यापन से जुड़े आशुतोष वाष्ण्रेय ने आयोग से कहा कि सीएए का इस्तेमाल कर एनआरसी का फी संख्या में मुस्लिमों को देशविहीन कर सकता है, चाहे उनका जन्म भारत में क्यों न हुआ हो और अपने पूर्वजों की तरह वे दशकों से देश में रहे हों।
तो यह है स्थिति। अमेरिकी संस्था के समक्ष बयान देने वाले भारतीय मूल के ही हैं। ऐसे लोगों की लॉबी से मुकाबला करना कितना कठिन है, यह बताने की जरूरत नहीं। भारत में राजनीतिक विभाजन तीखा नहीं होता तथा बौद्धिक जगत के बीच खेमेबंदी नहीं होती तो मुकाबला आसान होता। किंतु जिन लोगों के लिए देश सर्वोपरि है उनके लिए दुष्प्रचारों का खंडन आवश्यक है। विदेश मंत्रालय अपना काम कर रहा होगा, देश और बाहर रहने वाले हर भारतीय एवं भारतवंशियों का दायित्व है कि इन झूठों का प्रभावी तरीके से खंडन करें कि भारत में मुसलमानों के लिए किसी तरह की कठिनाई पैदा की गई है, कि दिल्ली हिंसा एकपक्षीय थी या कि उनकी नागरिकता पर कोई संकट है।

अवधेश कुमार


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