होली-उल्लास : मस्ती के साथ बचत भी जरूरी

Last Updated 10 Mar 2020 01:52:51 AM IST

वैसे तो ‘विश्व जल दिवस’ 22 मार्च को मनाया जाता है, मगर जल की महत्ता और दिनोदिन जल संकट को देखते हुए हर किसी को जल संरक्षण के उपाय तलाशने होंगे।


होली-उल्लास : मस्ती के साथ बचत भी जरूरी

कहते हैं कि ‘जल है तो कल है’। आज के समय में पानी की हरेक बूंद का महत्त्व है और इसे यूं ही कुछ घंटों में बर्बाद कर देना कहीं से भी समझदारी नहीं कही जा सकती है। खासकर रंगों के त्योहार होली में पानी की बर्बादी थोड़ी अखरती है। ऐसा नहीं होना चाहिए। आप बेशक इस त्योहार को उसी उमंग, उत्साह और बिंदासपन के साथ मनाएं, किंतु त्योहार की मस्ती में अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को कतई नहीं भूलना चाहिए। इस तथ्य से कौन इनकार कर सकता है कि धरती पर भीषण जल संकट है।
फकी लगभग सवा छह अरब आबादी में से एक अरब जनसंख्या को पीने का साफ पानी भी उपलब्ध नहीं है। जबकि विभिन्न इलाकों में पानी के लिये लड़ाइयां जारी हैं। ऐसे में हम अपना त्योहार कम-से-कम पानी से मनाएं तो अच्छा होगा। पानी ऐसी चीज है, जिसे सब देखते हैं, इस्तेमाल करते हैं लेकिन उसका महत्त्व नहीं जानते। कई लोग बिना सोचे-समझे पानी का विवेकहीन तरीके से इस्तेमाल करता है। जबकि पानी के सही उपयोग से हम कई दुारियों से बच सकते हैं। पिछले कई सालों से देश के कई हिस्सों में भू-जल के गिरते स्तर से जनता, जल विशेषज्ञ और सरकार हलकान हैं। गर्मी शुरू होते ही पानी के लिए संघषर्, हिंसा और वाद-विवाद होने लगते हैं। घंटों पानी के लिए लाइन में महिलाओं के लगे होने के दृश्य या मीलों दूर से मर्तबान में पानी ढोने के दारूण दृश्य वाकई में दिल को दुखी कर जाते हैं।

चूंकि होली जैसे पर्व में पानी को निर्दयता से बेकार किया जाता है, इसलिए इस पर हर किसी की समझदारी और जागरूकता पानी बचाने के लिए बढ़नी ही चाहिए। यह वक्त की मांग है। कोई भी त्योहार तभी सार्थक हो सकता है, जब उसकी भावना के अनुरूप उसे मनाया जाए। होली पर बहुत बड़ी मात्रा में पानी की बर्बादी होती है। दिल्ली में हालत यह है कि बहुत से लोगों को पीने का पानी भी खरीदना पड़ता है। वैसे सिर्फ दिल्ली ही नहीं देश के कई शहरों (छोटे और बड़े) में अब लोग खरीदकर पानी पीने लगे हैं। यह सब इसलिए कि हमने पानी को बचाने या उसके अंधाधुंध दोहन को रोकने के लिए रत्ती भर भी प्रयास नहीं किया है। आंकड़ों के मुताबिक पृथ्वी पर कुल जल का ढाई प्रतिशत भाग ही पीने के योग्य है। इनमें से 89 प्रतिशत पानी कृषि कार्यों एवं 6 प्रतिशत पानी उद्योग कार्यों पर खर्च हो जाता है। शेष 5 प्रतिशत पानी ही पेयजल पर खर्च होता है। यही जल हमारी जिंदगानी को संवारता है। आने वाला दिन खुशहाली और संकटरहित बीते; इस नाते लोग सूखी होली खेलें। इस बारे में बच्चों को जागरूक करना निहायत जरूरींहै। हो सके तो सभी लोग प्राकृतिक रंग-गुलाल के साथ बिना पानी के होली खेलें और पर्यावरण को स्वस्थ बनाए रखने में सहयोग करें। मगर सिर्फ होली के मौके पर ही पानी की बेहिसाब बर्बादी होती है; ऐसा भी नहीं है। कई बार नल खुल रह जाने से भी पानी बह जाता है। कई बार तो यह देखा गया है कि जल विभाग की पाइपलाइन में खराबी आ जाने से घंटों हजारों लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। ऐसा क्यों नहीं किया जाता कि जहां से भी पेयजल की पाइप गुजरती हो, वहां डिस्प्ले बोर्ड लगाए जाएं जिसमें जलकल विभाग के अधिकारियों के मोबाइल और कार्यालय के लैंडलाइन नंबर दिए जाएं। अध्यययन में यह बात सामने आई है कि पानी के वर्तमान संकट और पाताल तक जा भू-जल स्तर को अगर पटरी पर नहीं लाया गया तो आने वाली पीढ़ी को जल का अभूतपूर्व संकट का सामना करना पड़ेगा।
कहते हैं कि ‘चैरिटी बिगिन्स ऐट होम’ या महात्मा गांधी के शब्दों में, आप जो बदलाव समाज में चाहते हैं, वो पहले खुद में लाएं। लिहाजा पानी बचाने का संदेश देने वालों को खुद ऐसे मामलों पर पैनी निगाह रखनी होगी। यह समाज के हर शख्स की जिम्मेदारी है। और बिना एकजुट हुए इस समस्या पर जीत हासिल नहीं की जा सकती है। दूसरी अहम बात यह भी कि न सिर्फ होली बल्कि दूसरे पर्व-त्योहार में भी पानी की घोर बर्बादी होती है। इसलिए हर धर्मावलंबी को संकुचित दिलोदिमाग से ऊपर उठकर देशहित में आगे आना होगा। कई रेजिडेंट एसोसिएशन और समाज के प्रबुद्ध लोगों की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वो लोगों को पानी बचत का महत्त्व समझाएं। बुंदेलखंड में पानी की घनघोर कमी को देखते हुए बुंदेली समाज ने होली में पानी बर्बाद न करने का संकल्प लिया। कई और समाज ऐसी पहल कर सकते हैं। ध्यान रखिये पानी बनाया नहीं जा सकता है, इसे सिर्फ बचाया जा सकता है। तो पानी की कीमत को समझिए।

राजीव मंडल


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment