बतंगड़ बेतुक : भौं-भौं खों-खों हुआं-हुआं हुर्र-हुर्र
झल्लन ने हमारी तरफ रुख किया और हमने पूछ लिया, ‘क्या खबर लाया है, कहीं कुछ अच्छा सुन-समझकर आया है?’ झल्लन ने हमारी ओर अचीन्हे अंदाज में देखा और बोला, ‘हुआं-हुआं हुर्र-हुर्र भौं-भौं खों-खों।’
बतंगड़ बेतुक : भौं-भौं खों-खों हुआं-हुआं हुर्र-हुर्र |
हमने कहा, ‘तेरा दिमाग तो ठीक है, ये क्या हुआं हुर्र कर रहा है, सही-सही बता क्यों दिमाग का दही कर रहा है?’ झल्लन मुस्कुराया फिर अपनी असलियत पर उतर आया, ‘क्या ददाजू, सियासी संवाद के मुहावरे तक को नहीं जानते, सिर्फ यही प्रचलित है मगर आप नहीं पहचानते।’ हमने कहा, ‘लगता है तेरा दिमाग फिर गया है या पक्का तू किसी घातक वायरस से घिर गया है, तभी ये ऊलजलूल बक रहा है और तेरी इस बक-बक से हमारा दिमाग सटक रहा है।’
झल्लन बोला, ‘देखो ददाजू, अगर हुर्र-हुआं वायरस है तो समझ लो यह वायरस सड़क से संसद और टीवी से सोमी तक सब जगह पसर गया है और हमारे दिमाग तक भी इसका असर आ गया है। हमारे अंदर यही वायरस पल रहा है तभी हर सवाल पर हमारे मुंह से हुर्र हुआं भौं खों निकल रहा है।’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, इससे पहले कि यह वायरस नियंत्रण से बाहर हो जाये और तेरे दिमाग को पूरी तरह पंगु कर पाये, किसी अच्छे डॉक्टर से सलाह क्यों नहीं ले लेता, अपने इलाज का इंतजाम क्यों नहीं कर लेता?’ झल्लन हंसा, ‘भली सलाह ददाजू, पर क्या अकेले हमारा इलाज कराओगे, पूरा देश इस वायरस की चपेट में है उसे कैसे बचाओगे? अब देखिए, जो भी जहां भी जो कुछ बोल सकता है वह हुआं हुर्र भौं खों कर रहा है। न अपनी ठीक से सुना रहा है और न दूसरों की ठीक से सुन रहा है, खुद भौं-भौं खों-खों कर रहा है और दूसरों से भी भौं-भौं खों-खों करवा रहा है।’
हमने कहा, ‘तू गलत आकलन कर रहा है झल्लन, तुझे वायरस ने पकड़ लिया है तो इसका मतलब यह नहीं कि सब वायरस की चपेट में हैं या हुर्र हुआं की लपेट में हैं। बहुत से लोग बहुत अच्छी-अच्छी बातें कर रहे हैं जिनको सुनना चाहिए उन्हें सुन रहे हैं, और जिनको सुनाना चाहिए उनको सुना रहे हैं।’
झल्लन बोला, ‘पता नहीं ददाजू, आप कौन लोक में रहते हैं, बात यहां की है आप वहां की कहते हैं। कहने-सुनाने की सबसे बड़ी जगह तो संसद है पर देखिए, वहां क्या हुआ। सत्र शुरू भी नहीं हुआ पर शुरू हो गया हुर्र-हुर्र हुआं-हुआं। सबने जमकर भौं खों हुर्र हुआं किया, सबने अपनी-अपनी कही किसी और पर ध्यान दिया? और ददाजू, हुर्र हुआं का यह वायरस अकेला नहीं आया है, नफरत के वायरस का कैरियर बनकर आया है।’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, संसद ही देश नहीं है, देश संसद से बाहर भी है और बहुत बड़ा है जो आज भी शान से सर उठाकर खड़ा है। लोग नफरत के विरुद्ध आवाज उठा रहे हैं, लोगों में एक-दूसरे के लिए मुहब्बत का जज्बा जगा रहे हैं।’
झल्लन बोला, ‘पता नहीं ददाजू, आप किस देश में रहते हो जो आपके मुंह से ऐसी बातें निकल रही हैं, पता नहीं ये कौन सी आवाजें हैं जो आपको हुर्र हुआं से ऊपर सुनाई दे रही हैं, नफरत से ऊपर उठी दिखाई दे रही हैं। जो राष्ट्र के नाम पर बोलते हैं वे भी नफरत की जमीन पर खड़े होकर बोलते हैं और जो संविधान की दुहाई देकर बोलते हैं वे भी नफरत का जहर घोलते हैं। जो हिंदुत्व की जमीन पर खड़े हैं उनके अंदर भी नफरत सुलग रही है और जो इस्लामियत की जमीन पर खड़े हैं उनके दिलों में भी नफरत की आग दहक रही है। सच बात यह है ददाजू, जो दिमाग बंद कर हिंदू-मुस्लिम एकता का नारा लगा रहे हैं वे भी इस-उस के खिलाफ नफरत का पलीता लगा रहे हैं।’
झल्लन जो कह रहा था उसमें बहुत कुछ सही लग रहा था, फिर भी हमारा मन यह मानने को तैयार नहीं था कि जो भी इस या उस के पक्ष में खड़ा है वह सिर्फ नफरत फैलाने पर अड़ा है। हमने कहा, ‘जब तू यह सब बताता है तो सेक्यूलरिस्टों को क्यों भूल जाता है?’ झल्लन व्यंग्य से मुस्कुराया और अपना मुंह हमारे कान के पास ले आया।
बोला, ‘ददाजू, आप गलतफहमी में रहें तो रहें हम नहीं रह सकते और जो खुली आंखों से देख रहे हैं उसे अनदिखा नहीं कर सकते। सेकुलरिस्टों की भूमिका से मुसलमान थोड़ा और मुसलमान हो गया है और हिंदू थोड़ा और हिंदू हो गया है। ये न मुसलमानों को इस्लामियत से बाहर निकाल पा रहे हैं न हिंदुओं को हिंदुत्व से बाहर निकाल पा रहे हैं। आज समझदारी की बात करने वाला हर सच्चा सेकूलर मुसलमान मुसलमानों के लिए काफिर और कौम का गद्दार हो गया है। उसी तरह हिंदुत्व की आलोचना करने वाला हर सेकूलर हिंदू हिंदुओं के लिए देशद्रोही, नपुंसक, नाकारा और बेकार हो गया है।’
हमने कहा, ‘पर झल्लन, यह बड़ा कठिन समय है, हमें उठना चाहिए, कुछ न कुछ करना चाहिए।’ झल्लन हमारी बात हवा में उड़ाते हुए बोला, ‘ददाजू, हुआं-हुआं, हुर्र-हुर्र, आप उतें अपनी गैल गहो हम इतें फुर्र।’
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