सरोकार : कॉरपोरेट्स का दिखावा और महिला दिवस

Last Updated 08 Mar 2020 03:19:28 AM IST

दुनिया भर में महिलावादी इस महिला दिवस पर एक चिंता से ग्रस्त हैं। बाजार कैसे उनकी विचारधारा को हथिया कर अपना उल्लू सीधा करने में लग जाता है।


सरोकार : कॉरपोरेट्स का दिखावा और महिला दिवस

हर साल की तरह इस बार भी कॉरपोरेट र्वल्ड अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को कॉरपोरेट वेलेंटाइन डे की तरह मनाने का इरादा रखता है। महिला अधिकारों की वकालत की बजाय अपने ब्रांड्स को चमकाने की फिराक में है। आम तौर पर लाल गुलाब और नारों वाली टी शर्ट्स से कंपनियां  ग्राहकों को लुभाने में लग जाती हैं। महिलावादी चाहते हैं कि कंपनियां महिला अधिकारों पर काम करें-न कि उसे एक प्रमोशनल एक्टिविटी का दिन बनाएं।
कई साल पहले मैकडोनाल्ड जैसी फास्टफूड चेन ने अपने लोगो में एम को उलट क र डब्ल्यू बनाकर महिला दिवस मनाया था। ब्रयूडॉग जैसी स्कॉटिश पब चेन ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पिंक बियर जारी की थी। इस साल फॉसिल ने इलस्ट्रेटर बिजुई कारमन के साथ मिलकर कैप्सूल कलेक्शन निकाला है। इसमें चार घड़ियां, दो ईयर रिंग्स और दो टोट बैग्स हैं। एसेसरी ब्रांड पंडोरा ने लंदन में एक कंसर्ट किया है। इसके टिकट्स से होने वाली कमाई यूनिसेफ को दिया जाना तय है। 

पर सवाल गैर-बराबरी का भी है। महिलावादियों को लगता है कि कंपनियों का महिला कर्मचारियों को समान वेतन देने की बजाय ऐसी सेक्सिस्ट एडवरटाइजिंग किसी काम की नहीं है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरु आत भी इसी उद्देश्य से हुई थी कि महिलाओं को हर क्षेत्र में समानता प्राप्त हो। 1908 में न्यूयॉर्क में मजदूर महिलाओं ने बड़ी संख्या में प्रदशर्न किया था। वे काम के कम घंटों, अच्छे वेतन और मतदान का अधिकार मांग रही थीं। उसके अगले साल से राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाने लगा। इसी भावना के साथ लंदन का मिलियन विमैन मार्च हर साल महिला दिवस के एक पहले शनिवार को प्रदशर्न करता है। इस साल की थीम थी, हैशटैगईचफॉरइक्वल। इसमें भाग लेने वाली महिलाओं से कहा गया है कि स्टीरियोटाइप्स को चुनौती दें। इस साल यूएन विमैन की स्थापना के 10 साल पूरे हुए हैं। महिला, शांति और सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1325 की 20वीं वषर्गांठ भी इसी साल है। बात हर क्षेत्र में बराबरी की है। कॉरपोरेट्स इसका कोई ध्यान नहीं रखते। वहां एक से काम के लिए पुरु षों को अलग वेतन मिलता है, औरतों को अलग। र्वल्ड इकोनॉमिक फोरम की सालाना ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में हाल में कहा गया कि देश तरक्की कर रहे हैं, पर औरतें नहीं। इस सर्वे में 144 देश शामिल थे। सबसे अमीर देशों में भी-जिसका अर्थ यह है कि कमाई बढ़ने के बावजूद औरतों को लाभ में अपना हिस्सा नहीं मिल रहा।
अपने देश का हाल भी सुन लीजिए। पिछले कई सालों के दौरान भारत का स्थान इस सूची में लगातार गिरा ही है। वैसे भारत में आदमियों और औरतों की कमाई पर मॉन्स्टर सैलरी इंडेक्स (एमएसआई) में कहा गया है कि औरतों की कमाई आदमियों से औसतन 25% कम है। मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में उन्हें 29.5% और एजुकेशन एवं रिसर्च के क्षेत्र में 25.8% कम तनख्वाह मिलती है। भारत का आईटी सेक्टर 135 बिलियन डॉलर का है, जिसमें सबसे ज्यादा तनख्वाह मिलती है। इसमें तो यह गैर-बराबरी सबसे ज्यादा है। इसीलिए महिला दिवस पर कॉरपोरेट्स को सलाह यह है कि ब्रांडिंग से ज्यादा असलियत में कुछ ठोस काम करें।

माशा


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