सामयिक : महिला उद्यमियों की चुनौतियां

Last Updated 06 Mar 2020 02:29:04 AM IST

साक्ष्यों से पता चलता है कि महिलाओं में कम अभिमान और अत्यधिक विनम्रता का भाव होता है, जो नकारात्मक रूप से एक उद्यमी के रूप में जोखिम लेने वाले व्यवहार और उद्यमिता में बड़े स्तर पर भागीदारी को प्रभावित करता है।


सामयिक : महिला उद्यमियों की चुनौतियां

दुर्भाग्यवश, केवल कम अभिमान ही एक कारण नहीं है जो भारत में महिलाओं को सफल उद्यमी बनने से रोक रहा है।
भारत में महिलाओं के स्वामित्व वाले 13.5 और 15.7 मिलियन उद्यम हैं। सरकार के हस्तक्षेप, वित्तीय पहुंच में सुधार और शिक्षा तक पहुंच के कारण पिछले दशक में महिलाओं के स्वामित्व वाले उद्यमों में 14% से 20% की वृद्धि हुई है। हालांकि, मास्टर कार्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का कारोबारी माहौल महिला उद्यमियों के लिए अनुकूल नहीं है। अधिकांश महिलाएं आज भी सहायक कार्य के रूप में व्यावसायिक गतिविधियों को आगे बढ़ा रही हैं क्योंकि घर के अधिकांश कामों को करना जारी रखती हैं। अक्सर बच्चों और बुजुगरे की देखभाल करने में प्रमुख भूमिका निभाती हैं। जिस प्रकार का व्यवसाय महिलाएं करती हैं, उसकी प्रकृति भी पुरु षों की तुलना में अलग है, इसलिए ऋण और समरूपी ऋण की उनकी आवश्यकता अलग है। हालांकि विश्व बैंक के ग्लोबल फाइंडेक्सि डेटाबेस के अनुसार,  महिलाओं की तुलना में अधिक भारतीय पुरु षों ने एक वित्तीय संस्थान से उधार लेने या क्रेडिट कार्ड का उपयोग करने की जानकारी दी है। वित्तीय बाजारों और उत्पादों तक पहुंच से जुड़े अनेक मुद्दों के कारण लिंग अंतर मौजूद है। भले ही महिलाओं के पास समान संपत्ति का अधिकार हैं, लेकिन उन्हें आम तौर पर अपने परिवार से विरासत में संपत्ति नहीं मिलती।

नीति आयोग का डिजिटल प्लेटफार्म महिला उद्यमिता मंच ऐसी पहल है, जो महिला उद्यमियों को जरूरी जानकारी हासिल करने में आने वाली दिक्कतों को दूर करता है। इच्छुक महिला उद्यमी इस पोर्टल पर पंजीकरण कराकर विभिन्न सरकारी योजनाओं की जानकारी प्राप्त कर सकती हैं। साथ ही, अपने व्यवसाय के लिए लेखाकार जैसे सेवा प्रदाताओं से भी सपंर्क कर सकती हैं। डिजिटल वित्तीय साधन महिला उद्यमियों को वित्तीय संस्थाओं तथा पूंजी की उपलब्धता से जुड़ी जानकारियां हासिल करने में मदद कर सकता है। इसके जरिए महिला उद्यमी मोबाइल फोन या इंटरनेट के माध्यम से अपने  बैंक खातों से लेन-देने कर सकती हैं। इससे बैंक तक जाने-आने में लगने वाले समय तथा होने वाले यात्रा खर्च की बचत हो सकती है, और यह समय अपने कारोबार को बढ़ाने में लगा सकती हैं। इस तरह की बचत महिला उद्यमियों के लिए काफी फायदे की इसलिए होती है क्योंकि उनका उद्यम ज्यादातर छोटे आकार का होता है, जिसमें बिक्री और मुनाफा, दोनों कम होता है। डिजिटल वित्तीय साधन महिला उद्यमियों के उन परिवारजनों  की सुरक्षा चिंताओं का भी समाधान करते हैं, जो नहीं चाहते कि उनकी पत्नियां या बेटियां कारोबारी जरूरतों के लिए अकेले यात्रा करें। इसका एक लाभ यह भी है कि तैयार उत्पादों तथा खरीद प्रक्रिया का डिजिटल लेन-देन के रिकॉर्ड से बेहतर प्रबंधन संभव हो पाता है।
ग्राहक सेवाओं से जुड़े बिलों के नियमित भुगतान और इन्वेंट्री प्रबंधन के लिए खास तौर से तैयार डिजिटल वित्तीय साधन ऐसे नये उद्यमों के लिए कर्ज और उनकी अदायगी को ब्यौरा रखने में काफी मददगार हो सकते हैं, जिनके पास पहले से ऐसा कोई ब्यौरा नहीं होता या फिर जो कर्ज के एवज में किसी तरह की कोई गांरटी नहीं दे सकते। बैंक खातों में अनिवार्य न्यूनतम राशि रखने से छूट, छोटे और मध्यावधि कर्ज के प्रावधान तथा माइक्रो सेविंग आदि कुछ ऐसे वित्तीय उत्पाद हैं, जो डिजिटल साधनों के माध्यम से हासिल किए जा सकते हैं। महिला उद्यमियों के बैंक खातों में सीधे पैसा भेजने की व्यवस्था से महिलाओं को ज्यादा वित्तीय स्वायत्तता हासिल हो सकती है जिससे वे ज्यादा बचत कर सकती हैं। अपने कारोबार में निवेश बढ़ा सकती हैं। नीति आयोग गो डिजिटल प्लेटफार्म महिला उद्यमियों में बहीखाता तैयार करने, आयकर में छूट के लिए लेखाकारों से संपर्क करने, सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने तथा प्रभावी निवेश प्रबंधन जैसे कौशल विकसित करने में भी काफी मददगार हो सकता है। वैसे तो प्रौद्योगिकी में महिला उद्यमियों के कारोबार की दक्षता बढ़ाने की व्यापक क्षमता होती है, लेकिन प्रौद्योगिकी तक उनकी पहुंच अत्यंत सीमित होती है। बिजली तक सीमित पहुंच और सुदृढ़ एवं सर्वव्यापी डिजिटल नेटवर्क का अभाव भारत में डिजिटल वित्तीय क्रांति के मार्ग में बाधाएं हैं।
इसके अलावा, भारत में पुरु षों की तुलना में अपेक्षाकृत कम महिलाओं के पास मोबाइल हैंडसेट अथवा इंटरनेट की सुविधा होती है। यही नहीं, महिलाओं द्वारा स्मार्टफोन का उपयोग करने और नये वित्तीय उत्पादों तथा किसी नई प्रौद्योगिकी के साथ प्रयोग करने की कम संभावना रहती है। यह भी पाया गया है कि वैसे तो महिलाएं सोशल मीडिया एप्लीकेशंस से अवगत रहती हैं, लेकिन उन्हें उन विभिन्न वित्तीय साधनों अथवा उत्पादों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं होती जो उनका कारोबार बढ़ाने में मददगार साबित हो सकते हैं। वैसे तो देश में पुरु षों और महिलाओं की शिक्षा में अंतर काफी घट गया है, लेकिन पुरुषों और महिलाओं की वित्तीय साक्षरता में व्यापक अंतर होने से उनका कारोबार काफी प्रभावित हो सकता है। ये चुनौतियां महिलाओं द्वारा डिजिटल ढंग से वित्तीय साधनों अथवा उत्पादों का उपयोग करने व उद्यमी के रूप में उनकी उत्पादकता को काफी सीमित कर देती हैं।
डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग कर वित्तीय साधनों या उत्पादों तक पहुंच बढ़ाना उद्यमिता में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की दृष्टि से प्रभावकारी है। हालांकि यह इस समस्या के समाधान का केवल एक हिस्सा है। ऐसी कई अन्य सामाजिक-आर्थिक चुनौतियां भी हैं, जिनके मोर्चे पर सुधार की जरूरत है। सरकार, निजी क्षेत्र और गैर-लाभकारी संगठनों ने महिलाओं के स्वामित्व  वाले कारोबार में मदद के लिए कई योजनाओं एवं पहलों का शुभारंभ किया है।
महिलाओं के स्वामित्व वाली 3 प्रतिशत एमएसएमई फर्मो से अनिवार्य खरीद अथवा महिला उद्यमियों से जुड़े कौशल प्रशिक्षण और प्रमाणन कार्यक्रम इसके कुछ उदाहरण हैं। बच्चो व बुजुगरे के लिए ‘दिन के समय सुरक्षित, किफायती और सुगम्य देखभाल वाली विसनीय व्यवस्था’, सामाजिक संरक्षण योजनाओं व घरेलू कामकाज में पुरुषों व महिलाओं की समान भागीदारी ऐसे सामाजिक सुधार हैं, जो महिला उद्यमियों को आने वाले दशक में भारत की विकास गाथा का अहम हिस्सा बनने में मददगार साबित हो सकते हैं।
(लेखक नीति आयोग के उपाध्यक्ष हैं।)
सहयोग-पंखुड़ी दत्त

डॉ. राजीव कुमार


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment