मुद्दा : रक्षा खर्च की होड़ रुके
विकास को लेकर कभी-कभी अर्थशास्त्र में भी विरोधाभासी बातें दिखाई देती हैं। अर्थशास्त्र में कहा गया है कि किसी देश का विकास तभी सुनिश्चित होता है, जब उसकी सीमाएं चहुंओर से सुरक्षित हों और देश के अंदर अमन-चैन हो।
मुद्दा : रक्षा खर्च की होड़ रुके |
बात भी सही है अगर जान सलामत है तो दुनिया में सब कुछ है। जब जान ही नहीं है तो माल-असबाब किस काम के। जब धन और जीवन सुरक्षित होगा तभी कोई धन कमाने की कोशिश करेगा। इसलिए विकास के लिए देश की सीमाओं के सुरक्षित होने के साथ देश में शांति का होना लाजिमी है। पर दुर्भाग्य से इस समय देश को सीमाओं की सुरक्षा और अंदरूनी शांति, दोनों के मोचरे पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
उत्तर में अपने चिरपरिचित शत्रु राष्ट्र पाकिस्तान से निरंतर नित नई साजिशों और घात का सामना करना पड़ रहा है। चीन भी गाहे-बगाहे हमारी सीमा में घुसपैठ कर हमारे धैर्य की परीक्षा लेता रहता है। नेपाल के रास्ते पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों ने हमारे देश की शांति भंग करने के लिए कई बार आतंकवादी भेजे हैं। पूर्व में बांग्लादेश और म्यांमार तथा दक्षिण में श्रीलंका की ओर से भी हम आंख मूंदकर नहीं बैठ सकते।
बेशक, अभी इन देशों से हमें कोई प्रत्यक्ष चुनौती नहीं मिल रही है, लेकिन बांग्लादेश और म्यांमार की ओर से हमारे देश में बड़े स्तर पर घुसपैठ हुई है, जो देश की सुरक्षा और विकास के लिए नकुसानदेह है। श्रीलंका को अपने पक्ष में करने के लिए पाकिस्तान और चीन को जब भी मौका मिलता है, उस पर डोरे डालते रहते हैं। ऐसे में हमारे पास अपने देश की सीमाओं को बेहद मजूबत बनाने के लिए कोई चारा नहीं रह जाता। इसके लिए रक्षा बजट बढ़ाना मजबूरी हो जाता है।
रक्षा बजट बढ़ाने पर शत्रु देशों के साथ रक्षा खर्च बढ़ाने की होड़ शुरू हो जाती है। इसका उनके साथ हमें भी नुकसान होता है क्योंकि इसके चलते बजट की विकास संबंधी अन्य मदों के खर्च में कटौती करनी पड़ती है। ऐसे में विकास के कार्यों पर उतना खर्च नहीं हो पाता है, जितना होना चाहिए।
इसके चलते विकास की दौड़ में शत्रुता की होड़ में शामिल राष्ट्र पिछड़ते चले जाते हैं। इस मामले में पाकिस्तान का उदाहरण सबके सामने है। इतना ही नहीं बड़े रक्षा खर्च के चलते हमारा देश भी उतनी तरक्की नहीं कर पाया जितनी कर सकता था। भारत, पाकिस्तान और चीन में रक्षा खर्च को लेकर कितनी होड़ है, इस बात को इनके रक्षा बजट के आंकड़ों को देखकर समझा जा सकता है। अभी फरवरी, 2020 में पेश किए गए बजट में अपने देश ने रक्षा खर्च के लिए 471,378 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। वर्ष 2019-20 में यह राशि 3,19 लाख करोड़ थी। इस तरह इस बार रक्षा बजट में सात फीसद का इजाफा किया गया। इतना ही नहीं हमारा रक्षा खर्च कुल बजट का 15.49 फीसद है। दूसरी तरफ चीन का उदाहरण देखिए।
2019 में चीन का रक्षा बजट 177.61 अरब डालर था। यह भारत के रक्षा बजट का तीन गुणा था। चीन ने वर्ष 2018 के 165 अरब डालर के बजट की तुलना में इसमें 7.5 फीसद का इजाफा किया था। आइए, अब पाकिस्तान का हाल देखते हैं। वर्ष 2019-20 में पाकिस्तान का रक्षा बजट 1152 अरब रुपए था। 2018-19 की तुलना में इसमें 4.5 फीसद की बढ़ोतरी की गई। तब इसका बजट 1137 अरब रुपए था। 2018 में उसका रक्षा खर्च कुल बजट का 18.5 फीसद और 2019 में 14 फीसद था। रक्षा बजट को इतनी बड़ी राशि वह तब दे रहा है, जब उसकी अर्थव्यवस्था कंगाली की हालत किसी से छिपी नहीं रह गई है। इन हालात में पड़ोसी देश के साथ बढ़ते रक्षा खर्च की होड़ रोकनी जरूरी है। इसके लिए प्रयास करने की जितनी जिम्मेदारी हमारी बनती है, उतनी ही पड़ोसी देशों की भी। इसके लिए ईमानदार और भरोसेलायक पहल और उपाय जरूरी हैं।
भरोसेलायक पहल और उपाय के तहत हमें अपने पड़ोसी देशों के साथ कूटनीतिक व मैत्रीपूर्ण संबंध और प्रगाढ़ करने होंगे। खास तौर पर नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका और अफगानिस्तान के साथ। पाकिस्तान के साथ जारी अनवरत शत्रुतापूर्ण संबंधों के चलते हमारे लिए अफगास्तिान का विशेष सामरिक महत्व है। इसके लिए हमें इन देशों के साथ व्यापार बढ़ाने के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी बढ़ाना होगा। साथ ही, इनके साथ खेलों को भी प्रोत्साहन देना होगा। इन देशों के विकास में भी हमें अपना योगदान देना होगा। तभी जाकर हम इन देशों को पाकिस्तान और उसके घनिष्ठ मित्र चीन के चंगुल में जाने से बचा पाएंगे। इतना ही नहीं हमें कूटनीतिक स्तर पर भी पाकिस्तान और चीन की घेराबंदी जारी रखनी होगी। सौभाग्य से मौजूदा नरेन्द्र मोदी सरकार इन सभी बातों पर बड़ी संजीदगी से ध्यान दे रही है।
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