भ्रष्टाचार-निरोध : अब प्रधानमंत्री तय करें
अक्सर देश के बड़े मीडिया समूह, दिल्ली में राष्ट्रीय समस्याओं पर सम्मेलनों का आयोजन करते हैं, जिनमें देश और दुनिया के तमाम बड़े नेता और मशहूर विचारक भाग लेते हैं।
भ्रष्टाचार-निरोध : अब प्रधानमंत्री तय करें |
इन सम्मेलनों में ऐसी सभी समस्याओं पर काफी आंसू बहाये जाते हैं और ऐसी भाव-भंगिमा से बात रखी जाती है कि सुनने वाले यही समझे कि अगर इस वक्ता को देश चलाने का मौका मिले तो इन समस्याओं का हल जरूर निकल जाएगा। हकीकत यह है कि इन वक्ताओं में से अनेक को कई बार सत्ता में रहने का मौका मिला और ये समस्याएं इनके सामने तब भी वैसे ही थीं, जैसी आज हैं। इन नेताओं ने अपने शासन काल में ऐसे कोई क्रांतिकारी कदम नहीं उठाये जिनसे देशवासियों को लगता कि वह ईमानदारी से इन समस्याओं का हल चाहते हैं।
अगर उनके कार्यकाल के निर्णयों को बिना राग-द्वेष के मूल्यांकन किया जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि जिन समस्यों पर ये नेतागण आज घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं, उन समस्याओं की जड़ में इन नेताओं की भी अहम भूमिका रही है। पर इस सच्चाई को बेबाकी से उजागर करने वाले लोग उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। मजे कि बात यह कि इन गिने-चुने लोगों की बात को भी जनता के सामने रखने वाले मीडिया समूह उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। विरोधाभास ये कि प्रकाशन समूह जिन समस्याओं पर अंतरारष्ट्रीय सम्मेलन करते हैं और दावा करते हैं कि इन सम्मेलनों में इन समस्याओं के हल खोजे जा रहे हैं, वे भी इन सम्मेलनों में सच्चाई को ज्यों का त्यों रखने वालों को नहीं बुलाते। इसलिए सरकारी सम्मेलनों की तरह ये अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन भी एक हाई प्रोफाइल जन सम्पर्क महोत्सव से ज्यादा कुछ नहीं होते।
यह बड़ी चिंता की बात है कि ज्यादातर राष्ट्रीय माने जाने वाले मीडिया समूह अब जिम्मेदार पत्रकारिता से हटकर जनसम्पर्क की पत्रकारिता करने लगे हैं। लिहाजा, पत्रकारिता भी अपनी धार खोती जा रही है। इसलिए क्षेत्रीय मीडिया समूह का प्रभाव और समाज पर पकड़ बढ़ती जा रही है। ऐसे में देश के सामने जो बड़ी-बड़ी समस्याएं हैं, उनके हल के लिए क्षेत्रीय मीडिया समूहों को एक ठोस पहल करनी चाहिए। चिंता की बात यह कि आज कुछ क्षेत्रीय समाचार पत्र भी बयानों की पत्रकारिता पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। ऐसे अखबारों में विकास और समाधान पर खबरें कम या आधी-अधूरी होती है और छुटभैये नेताओं के बयान ज्यादा होते हैं। इससे समाज को कुछ नहीं मिलता, न तो मौलिक विचार और न हीं उनकी समस्याओं का हल। लोकतंत्र तभी मजबूत होता है, जब आम आदमी तक हर सूचना पहुंचे और समस्याओं के समाधान तय करने में आम आदमी की भी भावना को तरजीह दी जाए। जो मीडिया समूह इस परिप्रेक्ष्य में पत्रकारिता कर रहे हैं, उनके प्रकाशनों में गहराई भी है और वजन भी। पर चिंता की बात यह कि देश के अनेक क्षेत्रों में ऐसे लोग मीडिया के कारोबार में आ गए हैं, जो आज तक तमाम अवैध धंधे और अनैतिक काम करते आये हैं। उनका उद्देश्य मीडिया को ब्लैकमेलिंग का हथियार बनाने से ज्यादा कुछ भी नहीं है, जिनसे समाज के हक में किसी सार्थक पहल की उम्मीद नहीं की जा सकती। मिसाल के तौर पर ऐसे सम्मेलनों में अगर कोई भी मंत्री या सत्तापक्ष का नेता अगर कहता है कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है तो क्या वे वास्तव में ऐसा कर रहे हैं?
ताजा उदाहरण भारत सरकार के एक सार्वजनिक प्रतिष्ठान ‘एनएचपीसी लिमिटेड’ के एक वरिष्ठ अधिकारी अभय कुमार सिंह से सम्बन्धित है। सिंह के खिलाफ तमाम पुख्ता सुबूत और शिकायतों के बावजूद उन्हें मौजूदा सरकार के कुछ भ्रष्ट अधिकारियों की वजह से बिना किसी जांच के न सिर्फ दोषमुक्त किया गया बल्कि उन्हें ‘एनएचपीसी लिमिटेड’ के प्रबंध निदेशक पद पर नियुक्त किया गया है। सिंह पर ‘एनएचपीसी लिमिटेड’ में कई अनियमितताओं के आरोप हैं जिनके चलते जहां एक ओर एनएचपीसी लिमिटेड को भारी नुकसान उठाना पड़ा और वहीं दूसरी ओर, सिंह की निजी जायदाद में काफी बढ़ोतरी हुई। सीबीआई और सीवीसी भी आंखें मूंद कर बैठी रही, और बिना किसी ठोस जांच के ऐसे भ्रष्ट अधिकारी को ‘एनएचपीसी लिमिटेड’ के सर्वोच्च पद पर जाने दिया गया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब 2014 में सत्ता में आए थे, तो उन्होंने घोषणा की थी कि ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ लेकिन ऐसा लगता है कि सरकारी तंत्र में कुछ भ्रष्ट अधिकारी ऐसे हैं, जो प्रधानमंत्री की इस घोषणा को झूठा साबित करने में तुले हुए हैं और अभय कुमार सिंह जैसे भ्रष्टाचारियों के हौसलों को बढ़ावा दे रहे हैं। मोदी जी ने कई क्रांतिकारी निर्णय लेकर, अपने लौहपुरुष होने का प्रमाण दिया है। जिनमें से कुछ निर्णयों के लाभ आज नहीं तो कल जनता के सामने आएंगे। पर मुझे यह कहते हुए दुख: भी है और चिंता भी कि जहां उनकी सोच वैश्विक है और वे योग्यता और ‘प्रोफेशनलिज्म’ को वरीयता देते हैं और स्वयं सिद्ध लोगों का सम्मान करते हैं, वहीं आज भी अनेक सतही और दलालनुमा लोगों का धंधा सरकारी परियोजनाओं में पुराने र्ढे के अनुसार फल-फूल रहा है, जिन्हें नौकरशाही के भ्रष्ट सदस्यों और राजनीतिज्ञों का पूरा समर्थन प्राप्त है। सत्ता के अहंकारवश यह वर्ग कोई भी सही बात सुनने या सलाह मानने को तैयार नहीं है। प्रमाण सामने है कि गत कई चुनावों में पूरी ताकत झोंकने के बाद भी मतदाता भाजपा के प्रति वैसे आकषिर्त नहीं हुए, जैसा मोदी जी के नेतृत्व में आस्था होने के कारण, उसे होना चाहिए था। यह उनके लिए चिंता की बात होनी चाहिए।
एक बात जो मैं गत 30 वर्षों से हर नए प्रधानमंत्री को अपने लेखों के माध्यम से संबोधित करते हुए, लिखता आ रहा हूं, वह एकबार फिर मोदी जी को सीधे संबोधित करते हुए कहना चाहता हूं ‘माननीय प्रधानमंत्रीजी! हर वह सम्राट महान कहलाया है, जिसके सलाहकार योग्य, ईमानदार और संवेदनशील रहे हैं। कोई भी राजा या शासक अकेले अपने बूते बहुत लंबे समय तक न तो राज कर सकता है और न लोकप्रिय बना रह सकता है। इसलिए उसे सही लोगों की जरूरत होती है। अगर इच्छा हो तो ऐसे लोगों को हर क्षेत्र में ढूंढ़कर आपका मिशन पूरा करने के काम पर लगाया जा सकता है। पर यह पहल आपको ही करनी होगी। आपकी ‘रिफ्लैक्टेड ग्लोरी’ से दमकने वाले कभी ऐसे लोगों को आगे नहीं आने देंगे। जिससे उन्हें तो लाभ होगा पर आपको भारी हानि होगी। अब निर्णय आपको करना है।’
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