महंगाई : ठोस रणनीति बने और अमल भी हो
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने हाल में लोक सभा में बताया है कि 2019 में खाने-पीने की 22 जरूरी चीजों में से 20 के दाम काफी बढ़ गए हैं।
महंगाई : ठोस रणनीति बने और अमल भी हो |
जरूरी चीजों में से प्याज की कीमत में सबसे अधिक उछाल आया और इस साल जनवरी से दिसम्बर के बीच इसके दाम करीब चार गुना बढ़े। महंगी होने वाली आवश्यक वस्तुओं की इस सूची में चावल, गेहूं, आटा, दाल, तेल, चाय, चीनी, गुड़, सब्जी और दूध भी शामिल हैं, जिनका इस्तेमाल हर इंसान रोजमर्रा के जीवन में करता है। रिपोर्ट के मुताबिक, इन चीजों के दाम में जनवरी के मुकाबले साल के आखिरी महीने दिसम्बर में बढ़ोतरी हुई है।
ऐसे समय में जब रोजमर्रा की तमाम जरूरी वस्तुओं के दाम बढ़ रहे हों तो आम उपभोक्ताओं को जीवन-निर्वाह के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ता है, और आय में बढ़ोतरी नहीं होने के कारण निम्न मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग को जीवन निर्वाह करने के लिए कतरब्योंत यानी पेट काटने को मजबूर होना पड़ता है। महंगाई की समस्या से देश का नागरिक परेशान हो रहा हो तो निश्चित रूप से सरकार को इसे रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए। यह ऐसी समस्या है, जिससे कुछ वगरे को छोड़ कर कमोबेश हर इंसान परेशान है। यही वजह है कि हाल के दिनों में संसद में भी महंगाई विशेषकर प्याज की बढ़ती कीमतों को लेकर जबर्दस्त हंगामा हुआ और इस पर चर्चा हुई हैं।
साथ ही, देश के कई हिस्सों में लोग विरोध जताने के लिए सड़कों पर उतर आए। खाने-पीने के आवश्यक वस्तुओं में महंगाई की यह दर तब है, जब देश की अर्थव्यवस्था पहले से ही सुस्ती से जूझ रही है, और चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर 4.5 फीसद रही है। देश में निश्चित रूप से रोजगार की समस्या बढ़ी है। ऊपर से खाने-पीने की आवश्यक वस्तुओं की कीमत बढ़ जाए तो नागरिकों पर एक तरह से दोहरी मार ही तो है। हमें समझना होगा कि उपभोक्ता विभाग द्वारा निगरानी की जाने वाली 22 आवश्यक वस्तुओं में से ज्यादातर के दामों में लगातार वृद्धि का सिलसिला जारी है। खास तौर से आलू, टमाटर और प्याज के दाम में ज्यादा वृद्धि हुई है। चावल और गेहूं के दामों में तकरीबन 10 फीसद की वृद्धि हुई तो दालों के दाम में 30 फीसद तक की बढ़ोतरी हुई है। आलू के दाम भी 40 फीसद तक बढ़ चुके हैं।
केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने एक सवाल के जवाब में लोक सभा में स्वीकार किया कि मांग और आपूर्ति में अंतर के चलते इस साल खाने-पीने की कई चीजों के दाम बढ़े हैं। कई इलाकों में खराब मौसम के चलते उत्पादन में कमी आई है। बताया कि ट्रांसपोर्ट लागत बढ़ने, भंडारण की कमी, कालाबाजारी और जमाखोरी के चलते भी कई चीजों के दाम बढ़े हैं। इस बयान से स्पष्ट प्रतीत हो रहा है कि मांग और आपूर्ति का संतुलन बिगड़ गया है। मौसम की मार का असर उत्पादन पर हुआ है। उचित भंडारण व्यवस्था नहीं होने से समस्या गंभीर हुई है। कोल्ड स्टोरेज में फसल खराब होकर सड़ जाती है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि सरकार इन खामियों को दूर करने के लिए क्या प्रयास कर रही है? समस्याएं गिनवा कर और दलीलें देकर पल्ला नहीं झाड़ सकती। अगर ये समस्याएं हैं, तो सरकार को बताना चाहिए कि उसने इन्हें दूर करने के लिए क्या प्रयास किए? क्या परिणाम मिले? उसके प्रयासों का कोई ठोस परिणाम मिला होता तो शायद उसे महंगाई के मुद्दे पर संसद में बयान देने की जरूरत नहीं पड़ती।
आजादी के इतने सालों और वैज्ञानिक तरक्की के बावजूद सरकार को समस्याएं नहीं गिनानी चाहिए, बल्कि उनका समाधान करना चाहिए। सरकार को यह समझना होगा कि आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों का तार कहीं ना कहीं देश के कृषि संकट और किसानों की दयनीय स्थिति से भी जुड़ा हुआ है। आज के समय में लोग खेती और पशुपालन नहीं करना चाहते हैं, और दिनों-दिन जोत का आकार भी सिमटता जा रहा है। ऐसे में निश्चित रूप से उत्पादन पर इसका असर पड़ता है। साथ ही खेती करना काफी महंगा सौदा हो गया है, और कमरतोड़ मेहनत के बावजूद इसमें मुनाफा काफी कम मिलता है। ऊपर से कई बार खराब मौसम के कारण फसल खराब भी हो जाती है, और किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। हमें सोचना होगा कि देश में कृषि क्रांति और दुग्ध क्रांति की बात क्यों नहीं होती है, और उस दिशा में प्रयास क्यों नहीं किए जा रहे हैं? अगर हालात सामान्य बनाने हैं, और महंगाई दर को कम कर कृषि संकट को हल करने की दिशा में सोचना है, तो निश्चित रूप से सरकार को प्रयास करने ही पड़ेंगे। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह न सिर्फ ठोस और व्यापक रणनीति बनाए, बल्कि उस पर अमल भी करे।
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