पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष : एक्सटेंशन पर कानूनी संकट
पड़ोसी देश पाकिस्तान में सेना की ताकत और रुतबे से हर कोई वाकिफ है।
पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष : एक्सटेंशन पर कानूनी संकट |
इस बात पर रत्ती भर संदेह नहीं है कि वहां वास्तविक सत्ता का उपयोग थल-सेना के 20-22 बड़े अफसर, जिन्हें कोर कमांडर भी कहा जाता है, करते हैं और सैन्य प्रमुख देश का सबसे ताकतवर व्यक्ति होता है। यदा-कदा कुछ अपवादों को छोड़कर देश के किसी भी अन्य संस्थान ने सेना के समक्ष कोई मजबूत चुनौती नहीं पेश की। यहां तक कि उसके द्वारा किए गए विभिन्न तख्तापलटों को देश की सर्वोच्च अदालत ने भी ‘डॉक्ट्रिन ऑफ नेसेसिटी’ की आड़ में उचित ठहराया।
पाकिस्तान में अब तक कुल छह सेनाध्यक्षों ने अपनी निर्धारित कानूनी अवधि से अधिक समय तक पद को सुशोभित किया। इनमें से चार ने अपना कार्यकाल खुद ही बढ़ा लिया था, जबकि दो के कार्यकाल को तत्कालीन सरकारों ने बढ़ाया था। पिछले दो दशक में केवल जनरल राहील शरीफ ही एक मात्र ऐसे सेनाध्यक्ष रहे हैं, जो बिना किसी एक्स्टेंशन के अपने निर्धारित कार्यकाल की अवधि समाप्त होने पर सेवानिवृत्त हो गए। वर्तमान सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा, जिनका कार्यकाल 28 नवम्बर 2019 की मध्यरात्रि को समाप्त हो रहा था, को भी इमरान खान की सरकार ने बीते 19 अगस्त को अगले तीन साल के लिए बढ़ा दिया था। मगर इस मामले में एक बेहद पेचीदा मोड़ उस वक्त आ गया, जब बीती 26 नवम्बर को देश की सर्वोच्च अदालत ने एडवोकेट रियाज हनीफ राही की अर्जी पर सुनवाई करते हुए बाजवा को एक्सटेंशन देने कि अधिसूचना को प्रक्रियात्मक असंगति के आधार पर निलंबित कर दिया।
साथ ही मामले को आगे बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और संघीय सरकार को नोटिस जारी किया। यहां यह भी महत्त्वपूर्ण है कि रियाज हनीफ राही ने सुनवाई से ठीक पहले अदालत से अपनी अर्जी वापस लेने का लिखित अनुरोध भी किया था मगर तीन जजों की पीठ ने उसे यह कहते हुए ठुकरा दिया कि उसमें आर्टकिल 184 (3) के अंतर्गत लोक-महत्त्व के विषय जिसमें मूल अधिकारों को लागू करने का भी उल्लेख है। इस मामले की सुनवाई तीन बिन्दुओं के इर्द-गिर्द की है; पहला कि कानून क्या कहता है, दूसरा इसमें किस तरह की प्रक्रिया अपनाई गई है और तीसरा किन आधारों पर सेनाध्यक्ष का कार्यकाल बढ़ाया गया है? मामले की सुनवाई के पहले दिन ही यह स्पष्ट हो गया कि सरकार ने बिना किसी कानूनी आधार के सेनाध्यक्ष का कार्यकाल बढ़ाया है और वह भी बिना सही प्रक्रिया अपनाए हुए। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सरकार की खामियों को उजागर करने के पश्चात आनन-फानन में प्रधानमंत्री इमरान खान और राष्ट्रपति डॉ. आरिफ अल्वी ने एक नई अधिसूचना अनुमोदित करते हुए सेनाध्यक्ष के कार्यकाल को फिर से तीन वर्ष के लिए बढ़ा दिया। चूंकि पाकिस्तानी सेना से सम्बंधित कानून में कहीं भी सेनाध्यक्ष की पुनर्नियुक्ति या उनके कार्यकाल को बढ़ाने का कोई जिक्र नहीं था इसलिए संघीय कैबिनेट ने ‘आर्मी रूल्स एण्ड रेग्युलेशंस’ के सेक्शन 255 में संशोधन करके ‘एक्स्टेंशन इन टेन्योर’ जोड़ दिया ताकि सर्वोच्च न्यायालय इस नई अधिसूचना को भी निलम्बित न कर दे।
सर्वोच्च न्यायालय ने दूसरे दिन की सुनवाई के दौरान इस नई अधिसूचना पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि 26 नवम्बर की कैबिनेट की बैठक के बाद प्रधानमंत्री इमरान खान ने राष्ट्रपति आरिफ अल्वी को जो संक्षिप्त विवरण अनुमोदन के लिए भेजा वह सेनाध्यक्ष के सेवानिवृत्त होने पर आर्टकिल 243 (4) के अंतर्गत उनकी पुनर्नियुक्ति के लिए था, लेकिन इसके बाद जारी की गई अधिसूचना सेनाध्यक्ष को तीन साल का दूसरा कार्यकाल दिए जाने का था। इसके अतिरिक्त मुख्य न्यायाधीश आसिफ सईद खान खोसा ने यह भी रेखांकित किया कि ‘आपने मंगलवार की बैठक में सेना से संबंधित कानून के रेग्युलेशन 255 को संशोधित किया है, जबकि इसका संबंध सेनाध्यक्ष की नियुक्ति से न होकर अन्य अधिकारियों की नियुक्ति से है।’ देश की सर्वोच्च अदालत द्वारा सरकार के मनमाने तरीके से सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा के कार्यकाल बढ़ाने पर प्रश्नचिह्न लगाने से देश के एक विशेष तबके में एक तरह की झुंझलाहट दिखाई दी। इसका असर यह हुआ कि सोशल मीडिया में शीघ्र ही न्यायाधीशों के विरुद्ध अनाप-शनाप बयानबाजी की जाने लगी।
कुछ सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने तो न्यायाधीशों को भारत और अमेरिकी खुफिया एजेंसी सी.आई.ए. का एजेंट भी बताना शुरू कर दिया। तीसरे दिन की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश आसिफ सईद खान खोसा ने इसका जिक्र करते हुए खेद व्यक्त किया और कहा कि ‘जब हमने कल आर्मी एक्ट की जांच की तो हमें भारत और सी.आई.ए. का एजेंट बताया गया।’ बीती 28 नवम्बर की सुनवाई के दौरान यह पूर्णतया स्पष्ट हो गया कि पाकिस्तान के कानून में काफी विसंगतियां और अस्पष्टताएं हैं, जिनकी वजह से यह समस्या उत्पन्न हो गई है। न्यायालय ने इस बात पर भी आश्चर्य व्यक्त किया कि कैसे इतने वर्षो से ऐसा होता आया और किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया। मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि एक संवैधानिक पद पर नियुक्ति से संबंधित विषय पर पूरी पारदर्शिता होनी चाहिए और अटार्नी जनरल से पूछा कि सरकार को इस संदर्भ में कानून बनाने में कितना वक्त लगेगा। अटार्नी जनरल ने न्यायालय को बताया कि ऐसा तीन महीने में किया जा सकता है। तीन दिनों की सुनवाई के बाद 28 नवम्बर को न्यायालय ने एक संक्षिप्त फैसला सुनाया, जिसके अनुसार पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष के कार्यकाल को 28 नवम्बर से अगले छह माह तक बढ़ा दिया है और सरकार को इस दौरान कानून बनाकर इस मामले का पटाक्षेप करे। अपना संक्षिप्त निर्णय सुनाने से पहले न्यायालय ने सरकार से इस बात का आश्वासन मांगा था कि वह अगले छह महीने में सेनाध्यक्ष की नियुक्ति/एक्स्टेंशन से संबंधित कानून बनाएगी और पुरानी अधिसूचना में जरूरी बदलाव करेगी।
यदि संसद इस संदर्भ में नियति अवधि में कानून नहीं बना पाती है तो सेनाध्यक्ष को पद छोड़ना पड़ेगा। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस मामले में इमरान खान सरकार की फजीहत करने के बाद उन्हें तात्कालिक राहत देकर एक तरह से अराजक स्थिति उत्पन्न होने की संभावना को तो विराम दिया है लेकिन इस मुकदमे से यह जरूर साबित हो गया है कि किस तरह से बिना किसी कानूनी और संवैधानिक आधार के पाकिसतानी सेना के सबसे ताकतवर पद पर नियुक्ति और एक्सटेंशन का खेल दशकों से खेला जा रहा है।
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