पिंक बॉल टेस्ट : कई दिक्कतें हैं बरक्स

Last Updated 29 Nov 2019 05:35:48 AM IST

भारत में कोई दो-ढाई दशक पहले टेस्ट मैचों में भरपूर तादाद में दर्शक आया करते थे। लेकिन पहले वनडे और फिर टी-20 की लोकप्रियता की वजह से टेस्ट क्रिकेट से दर्शकों की दूरी बनती चली गई।


पिंक बॉल टेस्ट : कई दिक्कतें हैं बरक्स

दक्षिण अफ्रीका के साथ रांची में पिछले दिनों खेले गए टेस्ट के दौरान तो इतने कम दर्शक आए कि कप्तान विराट कोहली को कहना पड़ा कि पांच सात स्थाई टेस्ट केंद्रों पर टेस्ट मैचों का आयोजन करना चाहिए। मगर कोलकाता के ईडन गार्डन पर खेले गए पिंक बॉल यानी दिन-रात के टेस्ट मैच में सामने बांग्लादेश जैसी कमजोर टीम होने पर भी स्टेडियम के दर्शकों के खचाखच भरे होने से लगा कि इस तरह दर्शकों को स्टेडियम में खींचा जा सकता है। बांग्लादेश के खिलाफ यह टेस्ट दो दिन से कुछ ही ज्यादा चल सका पर 67000 दर्शकों की क्षमता वाला यह स्टेडियम भरा रहना अच्छे संकेत जरूर देता है।
अब सवाल यह है कि दिन-रात के टेस्ट मैचों को भविष्य में क्या इसी तरह सफलता मिलती रहेगी। इसको लेकर थोड़ा संशय है। क्योंकि यह पहला टेस्ट था, इसलिए लोगों के लिए यह खेल कम तमाशा ज्यादा था। साथ ही सौरव गांगुली के बीसीसीआई अध्यक्ष बनने के बाद उनके इस पहले प्रयास के समर्थन करने की वजह से भी भरपूर दर्शक स्टेडियम पहुंचे। इसके आयोजन में पहली समस्या तो खुद टीम इंडिया बन सकती है। टीम सूत्रों के मुताबिक खिलाड़ियों को इस मैच के दौरान लाइट में पिंक बॉल को देखने में मुश्किल हुई। इसलिए यह लगता है कि अब भविष्य में जब कभी विदेशी दौरे पर पिंक बॉल टेस्ट आयोजित करने का मौका आएगा, टीम प्रबंधन इसका विरोध कर सकता है। यह कहा जा रहा है कि 140 या इससे अधिक की गति से की जाने वाली गेंदबाजी के आगे बल्लेबाज को पिंक बॉल को ढंग से देख पाने में दिक्कत हुई। यही नहीं पिंक गेंद को पकड़ने में फील्डरों को भी दिक्कत हुई।

इस टेस्ट के अनुभव के आधार पर खिलाड़ियों को यह भी लगता है कि यह ज्यादा हार्ड होने की वजह से बल्लेबाज की तरफ लाल गेंद के मुकाबले ज्यादा तेजी से आती है। शायद इसी कारण बांग्लादेश के कुछ बल्लेबाज चोटिल भी हुए। यह सही है कि गांगुली के बीसीसीआई अध्यक्ष बनते ही उनके मन में कोलकाता टेस्ट को दिन-रात का कराने का विचार आया और उन्होंने तत्काल कप्तान कोहली से बात की और वह भी तुरंत राजी हो गए। विराट के राजी होने की वजह शायद बांग्लादेश जैसी कमजोर टीम से खेलना था। अगर यह सीरीज ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हो रही होती तो सौरव दादा का पिंक बॉल टेस्ट कराने का सपना इतनी जल्दी पूरा होने वाला नहीं था। पर इस टेस्ट के अनुभव के बाद लगता नहीं है कि टीम इंडिया भविष्य में पिंक बॉल टेस्ट के लिए आसानी से राजी होने वाली है। इसकी वजह यह है कि भारत ने दुनियाभर में अपनी मजबूत टीम वाली छवि बनाई है और वह मजबूत टीमों के खिलाफ विदेशी दौरों पर इस छवि को कतई नहीं तोड़ना चाहेगी। भारत को अगले साल के शुरू में न्यूजीलैंड दौरे पर जाकर टेस्ट सीरीज खेलनी है, इसमें दिन-रात के टेस्ट के लिए शायद ही दवाब पड़े। मगर साल के आखिर में ऑस्ट्रेलिया के साथ होने वाली टेस्ट सीरीज में दिन-रात के टेस्ट के लिए दवाब जरूर पड़ेगा। पर भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उसके घर में दिन-रात के टेस्ट के लिए राजी होगी, लगता नहीं है। इसकी एक वजह तो ऑस्ट्रेलिया का इस मामले में अनुभवी होना है। दूसरे वहां इस्तेमाल होने वाली कूकाबुरा गेंदों को यहां इस्तेमाल की गई एसजी गेंदों से एकदम से अलग व्यवहार होना है। कूकाबुरा गेंदें एक बार पुरानी पड़ते ही स्विंग करना बंद कर देती हैं और ओस में तो गेंद के स्विंग होने की संभावना ही खत्म हो जाती है। वहीं ओस में गेंद गीली होने पर स्पिन होने की संभावना भी कम हो जाती है।
हम सभी जानते हैं कि दिन-रात के टेस्ट मैचों के आयोजन का मकसद स्टेडियम से दूर चले गए दर्शकों को वापस लाना है। दिन-रात के मैच के बारे में यह कहा गया कि इसमें क्रिकेटप्रेमी दफ्तर के बाद आ सकेंगे। किंतु यह संभव नहीं दिख रहा है। भारत में ओस के डर की वजह से मैच एक बजे शुरू होंगे। इसका सीधा सा मतलब है कि क्रिकेटप्रेमी के दफ्तर छोड़ने के समय तक आधे से ज्यादा खेल हो चुका होगा। हां, इतना जरूर है कि कोलकाता के ईडन गार्डन में दर्शकों का टेस्ट मैच को देखने के लिए आना उत्साह बढ़ाने वाला जरूर है। पर भविष्य में कोलकाता के बाहर दिन-रात का टेस्ट आयोजित करने पर दर्शक इसी तरह खिंचे चले आएंगे, कहना मुश्किल है। इसलिए भविष्य में पिंक बॉल टेस्ट आयोजित करने से पहले इन समस्याओं के निराकरण जरूरी हैं।

मनोज चतुर्वेदी


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