हाफिज सईद- रिहाई की पहेली
पाकिस्तान में विडम्बनाएं अपनी हज़ार मौतों के बाद भी जिंदा रहती हैं, जो उसे कहीं न कहीं विडम्बनाओं के देश (लैंड ऑफ आयरनीज) के रूप में परिभाषित करती हैं.
![]() कुख्यात आतंकवादी हाफिज़ सईद. |
अभी ज्यादा समय नहीं बीता है जब देश की सर्वोच्च अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को पनामा पेपर्स से जुड़े मसले पर सत्ता में बने रहने के लिए अनुपयुक्त पाया था. इसके पश्चात नवाज़ शरीफ को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था और अब लाहौर उच्च-न्यायालय के तीन जजों से बनी प्रांतीय समीक्षा समिति ने बीते 22 नवम्बर को पंजाब सरकार के निवेदन को अस्वीकार करते हुए मुंबई हमलों के मुख्य कर्ता-धर्ता हाफिज़ सईद को रिहा करने का निर्देश जारी कर दिया. जिसके बाद 23 नवम्बर की शाम को 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर के इनामी और वैश्विक रूप से कुख्यात आतंकवादी हाफिज़ सईद को नजरबंदी से आज़ाद कर दिया गया. यह चौथा मौका है, जब हाफिज़ सईद को नजरबंदी के कुछ समय बाद बिना किसी प्रभावी कार्यवाही के रिहा कर दिया.
हालिया रिहाई के अगले ही दिन हाफिज़ सईद ने जमात-उद-दावा के मुख्यालय स्थित जामिया अल-कदसिया मस्जिद में न केवल जुमे की नमाज का नेतृत्व किया, बल्कि धर्मोपदेश के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ और भारत के खिलाफ जहर भी उगला. सईद ने नवाज़ शरीफ को भारत के प्रति उनके अपनाए गए ‘लचीले’ रवैये के लिए ‘गद्दार’ बताते हुए कहा कि उन्हें भारत के साथ दोस्ताना सम्बन्ध रखने और कश्मीर मसले को दरकिनार करने के लिए हटाया गया. इसके अतिरिक्त, सईद ने भारत पर पाकिस्तान के अंदर अतिवादिता एवं आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पाकिस्तान का दुष्टतम शत्रु बताया. इस ताजा घटनाक्रम से भारत-अमेरिका के साथ पाकिस्तान के रिश्तों में कड़वाहट और अधिक बढ़ गई है. भारत और अमेरिका ने पाकिस्तान द्वारा इस कुख्यात आतंकवादी की रिहाई पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है. भारत ने जहां इसे पाकिस्तान द्वारा अपनाई जा रही भारत-विरोधी नीतियों की निरंतरता और निषिद्ध आतंकवादियों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास बताया है, वहीं अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता हीथर नोएर्ट ने कहा कि अमेरिका इस मामले को लेकर गंभीर रूप से चिंतित है. पाकिस्तान स्थित अमेरिकी दूतावास ने भी लश्कर-ए-तय्यबा को एक नामित वैश्विक आतंकवादी संगठन कहा है और पाकिस्तानी सरकार को हाफिज़ सईद को गिरफ्तार करने तथा उस पर मुकदमा चलाने का सुझाव दिया है.
आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी कार्यवाही को लेकर लगातार बढ़ते हुए वैश्विक दबाव के मद्देनजर पंजाब की सरकार ने जनवरी 2017 में हाफिज़ सईद को आतंकवाद-विरोधी क़ानून 1997 की धारा 11-ईईई (1) के तहत 90 दिनों के लिए उसके घर में ही नजरबंद किया था. इसके फ़ौरन बाद उसे लोक-शांति बनाए रखने वाले अध्यादेश के अंतर्गत अगले तीस दिनों तक नजरबंद रखा गया. पाक संविधान की धारा 10 (4) के अनुसार किसी व्यक्ति को किसी विदेशी मामले में संलिप्तता या लोक-शांति बनाए रखने से सम्बंधित मामले में तीन महीने से अधिक समय तक नजरबंद रखने के लिए यथोचित समीक्षा समिति के अनुमोदन की जरूरत होती है.
इस मामले पर अब तक आयी वैश्विक प्रतिक्रियाओं के जवाब में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि हाफिज़ सईद की रिहाई का आदेश न्यायालय ने एक जटिल प्रकिया अनुपालन करने के पश्चात दिया है. कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने यह भी कहा कि सबूतों के नितांत अभाव में हाफिज़ सईद को और अधिक समय तक नजरबंद नहीं किया जा सकता था. यहां यह बात समझना महत्त्वपूर्ण है कि अपने हालिया इनकार के पहले, तीन जजों की समीक्षा समिति हाफिज़ सईद की नजरबंदी को जारी रखने के लिए लगातार अपनी सहमति देती चली आ रही थी. आतंकवाद-विरोधी क़ानून 1997 के अनुसार किसी व्यक्ति की नजरबंदी 12 महीने से अधिक नहीं बढ़ाई जा सकती है. यह पाकिस्तान और उसके विभिन्न संस्थाओं की जिम्मेदारी थी कि नजरबंदी की अवधि समाप्त होने से पहले उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत जुटाएं और जरूरी कार्यवाही करें लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण रूप से लगभग 300 दिनों या 10 महीने की नजरबंदी के दौरान पाकिस्तान द्वारा हाफिज़ सईद के खिलाफ न तो कोई मुकदमा चलाया गया, और न ही उसके ऊपर लगे आरोपों को सत्यापित करने के लिए कोई ठोस प्रयास किया गया. वह भी तब, जब पाकिस्तान स्वयं लगभग प्रत्येक वैश्विक मंच पर आतंकवाद का शिकार होने का ढिंढोरा पीटता फिरता है.
अब सवाल यह भी उठता है कि आखिर पाकिस्तानी सेना के द्वारा चलाए गए ऑपरेशन शेरदिल से लेकर राह-ए-रस्त, राह-ए-निजात, जर्ब-ए-अज्ब और रदद्-उल-फसाद का क्या फायदा जब पाकिस्तान के हाथ से एक वैश्विक रूप से नामित और 10 मिलियन डॉलर का इनामी आतंकवादी प्रक्रियात्मक कमियों का फायदा उठाते हुए फिसल जाता है? हाफिज़ सईद की रिहाई का समय भी अपने आप में एक पहेली से कम नहीं है, जो अपने अंदर बहुत से राज़ समेटे हुए है. हाफिज़ सईद का पाकिस्तान में आजाद होना निश्चित रूप से एक साजिश की तरफ इशारा करता है. इस वक्त भारत की और से दी जाने वाली प्रत्येक प्रतिक्रिया के जवाब में पाक खुद हाफिज़ को आगे कर सकता है.
इस हालिया घटनाक्रम से एक बात पुन: स्पष्ट हो जाती है कि पाकिस्तान आज भी आतंकवाद को एक ‘रणनीतिक परिसंपत्ति’ और ‘विदेश नीति के अस्त्र’ के रूप में देखता है. हाफिज़ सईद और उसके जैसे बहुत से अन्य अतिवादियों एवं आतंकवादियों को पाकिस्तान ‘अच्छे जिहादी’ की श्रेणी में रखता है क्योंकि वे कभी भी पाकिस्तान और उसकी सेना के लिए मुश्किल पैदा नहीं करते हैं. इन जेहादियों का उपयोग अक्सर भारत के लिए मुश्किलें खड़ी करने के लिए किया जाता है. ऐसे में भारत को चाहिए कि वह अपने मित्रों, सहयोगियों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर एक साझा रणनीति बनाए और उस पर अमल भी करे.
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