वैश्विकी : एक क्रांतिकारी नेता का हश्र
जिम्बाब्बे में राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे के खिलाफ सैनिक तख्ता पलट विश्व इतिहास की अनूठी घटना है.
वैश्विकी : एक क्रांतिकारी नेता का हश्र |
इस रक्तहीन सैनिक कार्रवाई के बाद दो रोचक तथ्य उभर कर सामने आए. एक, क्रांति के नेता मुगाबे निहित स्वार्थों से ऊपर नहीं उठ पाए और दूसरे, बर्बर मानी जाने वाली सेना ने आजादी की लड़ाई की भावना को कायम रखते हुए कहा कि ‘रॉबर्ट शक्तिहीन हो गए हैं, चापलूसों से घिरे हुए हैं, फिर भी हमारे लिए सम्मानित नेता हैं. वह अपना उत्तराधिकारी चुनें.’
सेना का यह आचरण एक मिसाल है. मुगाबे ने भले ही अब तक अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया है, लेकिन माना जा रहा है कि दुनिया में सबसे अधिक दिनों तक शासन करने वाले नेताओं में से एक मुगाबे का ऐतिहासिक राजनीतिक सफर समाप्त प्राय: है. उनकी सत्तारूढ़ राजनीतिक पार्टी जानू-पीएफ में उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी के चुनाव की प्रक्रिया तेज हो गई है. इसका मतलब है कि उनकी अपनी पार्टी और सेना दोनों ने उनका साथ छोड़ दिया है.
सत्ता और पत्नी मोह में फंसा सबसे उम्रदराज क्रांति के नेता का ऐसा हश्र होगा, यह किसी ने नहीं सोचा था. रॉबर्ट मुगाबे की दूसरी पत्नी ग्रेसी की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा उफान पर रही है. वह ग्रेसी को उपराष्ट्रपति बनाने का सपना पाल रहे थे. इसके लिए उन्हें अपने साथी और पार्टी के वरिष्ठ नेता और उपराष्ट्रपति रहे इमर्सन मनंगावा को बर्खास्त करने में भी हिचक नहीं हुई. यह दर्शाता है कि ेतों के निरंकुश शासन से अपने मुल्क को आजादी दिलाने वाला नायक कैसे खुद निरंकुश बना दिया जाता है. सेना और उनकी पार्टी ने उनके इस कदम का समर्थन नहीं किया.
ब्रिटिश साम्राज्यवाद के दो महत्त्वपूर्ण गढ़ थे-रोडेशिया (अब जिम्बाब्बे) और दक्षिण अफ्रीका. यहां अल्पमत ेतों बहुसंख्यक अेतों पर नस्लभेदी शासन कायम कर रखा था. गोरों के नस्लभेदी शासन के खिलाफ रोडेशिया में रॉबर्ट मुगाबे के नेतृत्व में क्रांति हुई और दक्षिण अफ्रीका में क्रांति का नेतृत्व नेल्सन मंडेला ने किया. दोनों अेत नेता वष्रों तक जेल में भी रहे. 1980 में रोडेशिया आजाद हुआ. उसके बाद दक्षिण अफ्रीका. लेकिन दोनों देशों की क्रांतियां अलग-अलग परिणाम लेकर आई.
दक्षिण अफ्रीका में गोरा शासक बोथा के साथ मंडेला का जो समझौता हुआ, उसके तहत नस्लभेद तो खत्म हुआ, लेकिन शासन में गोरों का प्रभुत्व बना रहा. रोडेशिया में क्रांति के ज्यादा सकारात्मक परिणाम आए और इसका श्रेय निश्चित तौर पर रॉबर्ट मुगाबे को जाता है. उन्होंने भूमि सुधार लागू किया, जिसके चलते कृषि भूमि पर से ेतों को बेदखल करके अेतों में वितरित किया गया.
लेकिन कृषि कार्य में अेतों की अकुशलता के कारण आर्थिक व्यवस्था चरमराने लगी. औद्योगिक कुप्रबंधन, खाद्यान्न की कमी, मुद्रा का अवमूल्यन और भ्रष्टाचार से देश की आर्थिक स्थिति खराब हो गई. मुगाबे के पतन का यह भी एक बड़ा कारण है. यह कहना मुश्किल है कि मुगाबे का उत्तराधिकारी इमर्सन होंगे या मूवमेंट फॉर चेंज के नेता चांग राई. पर इनमें जो भी होगा, उन पर देश की इकनॉमी को पटरी पर लाने की चुनौती बड़ी होगी. उन्हें आजादी और आर्थिक सुधार को अपना एजेंडा बनाना होगा.
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