अमेरिकी हमले के बाद

Last Updated 10 Apr 2017 04:46:39 AM IST

अमेरिका द्वारा सीरिया के वायु अड्डे पर 59 टॉमहॉक क्रूज़ मिसाइल दागने के बाद पूरी दुनिया में यह सवाल उठ रहा है कि अब क्या होगा?


सीरिया में अमेरिकी हमले के बाद हालात बिगड़े (फाइल फोटो)

ना अमेरिका ने कहा है कि यह उसकी ओर से अंतिम हमला है और न सीरिया के राष्ट्रपति बार अल असद का समर्थन करने वाले रूस ने ही इसे नजरअंदाज किया है. रूसी प्रधानमंत्री दिमित्री मिदवेदेव ने अमेरिका को चेतावनी दी है कि उसके द्वारा किए गए इस हमले के कारण मॉस्को और वाशिंगटन के बीच सैन्य टकराव केवल एक इंच दूर रह गया है. तो क्या अमेरिका और रूस में वाकई सैन्य टकराव हो सकता है? अगर हुआ तो इसका परिणाम क्या होगा?

रूस केवल मौखिक प्रतिक्रियाओं तक सीमित नहीं है. उसने अमेरिका के साथ अपना हॉटलाइन संपर्क तक काट दिया है. उसने क्रूज मिसाइलों से लैस अपने लड़ाकू जहाजों को काला सागर से लाकर सीरिया के बंदरगाह पर तैनात करने का आदेश जारी किया है. पुतिन ने सीरिया में पहले से ही बड़ी संख्या में तैनात सतह से हवा में मार करने वाली एस 400 और एस 300 मिसाइलों की नई खेप को भी तैनात करने का निर्देश दिया है. इसके समानांतर अमेरिका और हमले करने तथा सीरिया पर प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दे रहा है.  संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी दूत निकी हेली ने संयुक्त राष्ट्र के विशेष सत्र में हमले को बिल्कुल जायज कार्रवाई करार दिया. उन्होंने कहा कि रासायनिक हथियार दागकर दर्जनों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था, इसलिए यह कार्रवाई की गई. हेली ने कहा कि हम अभी ऐसे और हमलों के लिए तैयार है, लेकिन उम्मीद करते हैं कि इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी. इसके साथ ही सीरिया पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाने की बात भी कही गई.

पश्चिमोत्तर सीरिया के इदलिब प्रांत के शहर में रासायनिक गैस से छटपटाकर करीब 100 लोगों के मारे जाने तथा 400 से ज्यादा के घायल होने के बाद से ही अमेरिका और रूस आमने-सामने हैं. अमेरिका इसे असद की सेना द्वारा रासायनिक हमला कह रहा है जबकि सीरियाई सेना एवं रूस इससे इनकार करता है. पुतिन ने अमेरिकी सैन्य कार्रवाई को  गैरकानूनी बताते हुए कहा है कि अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन किया है. क्रेमलिन के प्रवक्ता ने बयान जारी कर कहा कि पुतिन अमेरिका के कदम को सीरिया की संप्रभुता के खिलाफ अमेरिकी आक्रामकता के तौर पर देख रहे हैं. इस कार्रवाई पर दुनिया बंटी दिख रही है. रूस, ईरान, इराक, वेनेजुएला और अल्जीरिया सीरिया के समर्थन में खड़े दिख रहे हैं. वहीं ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इस्रइल, जापान, सऊदी अरब और तुर्की ने अमेरिकी मिसाइल हमले को सही ठहराया है. हालांकि चीन खुलकर किसी के समर्थन में नहीं, लेकिन उसने सीरिया संकट का राजनीतिक ढंग से हल निकालने की बात कही है.



ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से यह पहली बड़ी सैन्य कार्रवाई है. सीरिया, यमन और इराक में जो ऑपरेशन चल रहे हैं, वे तय प्रक्रिया के तहत अमेरिकी सैन्य अधिकारियों की निगरानी में थे. इस हमले का आदेश सीधे ट्रंप की ओर से आया. इसका संदेश है कि नई सत्ता जवाबी हमले करने के लिए पूरी तरह तैयार है और कई बार बिना मौका दिए भी. ट्रंप प्रशासन ने जिस तेजी के साथ यह फैसला लिया और उसके बाद अमेरिकी अधिकारियों ने जिस तरह की प्रतिक्रिया दी है, वह असामान्य है. अधिकारियों के अनुसार उन्होंने सभी विकल्प तला लिए थे और अंत में यह कदम उठाना पड़ा. हालांकि अमेरिका द्वारा कार्रवाई के संकेत मिल चुके थे, पर वि समुदाय यह मानने को तैयार नहीं था कि यह इतनी जल्दी हो जाएगा. डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि सीरिया के रासायनिक हमले में मासूम बच्चों और महिलाओं को निशाना बनाया गया और यह मानवता के साथ क्रूरता है. हम इस क्रूरता को बर्दाश्त नहीं कर सकते. हम उन्हें कड़ा संदेश देंगे.

चीनी राष्ट्रपति शी जिनिपंग अमेरिका के दौरे पर हैं. उनसे बातचीत में ट्रम्प ने कहा था कि सीरिया को लेकर कोई फैसला हो सकता है. अमेरिकी राष्ट्रपति ने साफ कहा था कि सीरिया सरकार ने हदें पार कर दी है. इसलिए अमेरिका जिम्मेदारी निभाते हुए अकेले कार्रवाई करने को तैयार है. निक्की हैले ने संयुक्त राष्ट्र में आगाह किया था कि अगर वि संस्था कार्रवाई नहीं करता तो अमेरिका अकेले आगे बढ़ने को मजबूर होगा. ध्यान रखिए अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने सीरिया सरकार पर रासायनिक हमले का आरोप लगाते हुए बुधवार को सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव रखा था, लेकिन रूस इस पर सहमत नहीं था. तो साफ था कि अमेरिका हमला करने वाला है और पूर्वी भूमध्यसागर के अपने युद्धपोतों यूएसएस पोर्टर व यूएसएस रॉस के जरिये सीरिया के शरायत वायु ठिकानों पर 59 टॉमहॉक मिसाइलें दागीं. अमेरिका का मानना है कि सीरिया के विद्रोहियों वाले इलाके में जो रासायनिक हमले किए गए थे, वे इसी अड्डे से किए गए थे.

हालांकि, ट्रम्प ने ये भी साफ किया कि उन जगहों को निशाना नहीं बनाया जाएगा, जहां रूसी सेना तैनात है. किंतु रूस के लिए इससे कोई अंतर नहीं आता. उसने इसे 14 वर्ष पूर्व अमेरिका द्वारा इराक पर किए गए एकपक्षीय कार्रवाई का वर्तमान रूप माना है. दोनों देश दो ध्रुवों पर हैं. अमेरिका यह मानने को तैयार नहीं कि इदलिब प्रांत में उठी जहरीली गैस सीरियाई सेना की कार्रवाई नहीं है. दूसरी ओर रूस ने कहा कि हमले के बाद कोई भी उस क्षेत्र में नहीं जा सकता था. इसलिए अमेरिका और उसके सहयोगियों को जो भी सबूत मिले हैं, उन पर कैसे यकीन किया जा सकता है. सीरिया के विदेश मंत्री वालिद मौलेम ने कहा कि हमने कभी रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल न किया है और न करेंगे. यहां तक कि आतंकी समूहों के खिलाफ भी नहीं. उनके अनुसार अल नुसरा और आईएस जैसे समूह रासायनिक गैसों का जखीरा बन रहे हैं.

असद सरकार पर पहले भी रासायनिक हमलों के आरोप लगे थे. 2012 में सीरिया के सबसे बड़े शहर और उसके पूर्व वाणिज्यिक राजधानी अलेप्पो में रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल का आरोप लगा. उस  समय ही अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कार्रवाई की चेतावनी दी थी.

 

 

अवधेश कुमार


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