प्रदूषित पेयजल जानलेवा

Last Updated 10 Apr 2017 04:35:59 AM IST

आज समूची दुनिया प्रदूषित पानी की समस्या से जूझ रही है. हालात इतने भयावह हैं कि प्रदूषित पानी पीने से आज इंसान भयानक बीमारियों की चपेट में आकर अनचाहे मौत का शिकार हो रहा है.


प्रदूषित पेयजल जानलेवा (फाइल फोटो)

असलियत यह है कि पूरी दुनिया में जितनी मौतें सड़क दुर्घटना, एच आई वी या किसी और बीमारी से नहीं होतीं, उनसे कहीं गुना अधिक मौतें प्रदूषित पानी पीने से उपजी बीमारियों के कारण होती हैं. यदि संयुक्त राष्ट् की मानें तो समूची दुनिया में हर साल आठ लाख लोगों की मौत केवल प्रदूषित पानी पीने से होती हैं. संयुक्त राष्ट्र की बीते दिनों जारी एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका में हर साल तकरीब 35 लाख लोगों की मौतें दूषित पानी के संपर्क में आने से होने वाली बीमारियों के चलते होती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि यदि लोगों को पीने का साफ पानी और सेनिटेशन की उचित व स्तरीय सुविधाएं मुहैय्या करा दी जाती हैं तो समूची दुनिया में बीमारियों से पड़ने वाले बोझ को 9 फीसद और भारत समेत दुनिया के 32 सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में 15 फीसद तक कम किया जा सकता है.

संयुक्त राष्ट्र का आकलन है कि दुनिया में एक अरब से ज्यादा लोगों को पानी उपलब्ध नहीं है. विश्व संस्थाओं का यह अध्ययन सबूत है कि यदि लोगों को पीने का साफ पानी मुहैय्या करा दिया जाता है तो हर साल प्रदूषित पानी पीने से होने वाली अतिसार, मलेरिया और दूसरी अन्य बीमारियों से होती एक अरब साठ लाख मौतों को टाला जा सकता है. इसके लिए उक्त एजेंसियां अव्यवस्था, भ्रष्टाचार, नौकरशाही का संवेदनहीन रवैया, सक्षम संस्थानों की अनुपलब्धता और बुनियादी सुविधाओं और निवेश के मामलों में अभाव तथा नागरिकों से जुड़ी इन समस्याओं पर सरकार का अंकुश न होना अहम् मानती हैं.

जगजाहिर है कि दुनिया की कुल आबादी के पांचवें हिस्से को पानी मयस्सर नहीं है. दुनिया के 123 देशों में अपने नागरिकों को दूषित पानी पिलाने वाले देशों में भारत का नम्बर 121वां है, जबकि हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश साफ पानी के मामले में हमसे 80वें व श्रीलंका और पाकिस्तान हमसे 40 स्थान ऊंचे हैं. दुनिया में पानी के भारी संकट से प्रभावित होने वाले भारत और चीन की अकेली 40 फीसद आबादी को इसका सामना करना पड़ रहा है. जल उपलब्धता के मामले में भारत का स्थान 180 देशों में 133वां है. असलियत में दुनिया में 2.6 अरब आबादी को साफ-सफाई, स्वच्छ पेयजल और गंदे नाले के निकास जैसी बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं. वि स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में कुल मरने वालों में से 6 फीसद मौतें प्रदूषित पानी पीने से और सेनिटेशन की समुचित व्यवस्था के अभाव में होती हैं.



हमारे देश में ग्रामीण इलाकों में रहने वाले तकरीबन 6.3 करोड़ लोगों को साफ पानी तक मयस्सर नहीं है. यह तादाद ब्रिटेन की कुल आबादी के बराबर है. यह दावा करने वाली \'वाइल्ड वॉटर रिपोर्ट\' की मानें तो बढ़ती आबादी, पानी की जरूरत में दिनोंदिन हो रही बेतहाशा बढ़ोतरी, भूजल के स्तर में कमी लाने वाली कृषि पद्धतियां और सरकारी योजनाओं के अभाव के कारण पानी की उपलब्धता प्रभावित हो रही है. इसके कारण हैजा, मलेरिया, डेंगू, ट्कोमा जैसी बीमारियों के साथ-साथ कुपोषण के मामले बढ़ने की भी आशंका है. यही नहीं खेती पर निर्भर ग्रामीणों को बढ़ते तापमान के बीच खाद्यान्न पैदा करने और पशुओं को चारा जुटाने के लिए संघर्ष करना होगा. साथ ही पानी लाने की जिम्मेवारी उठाने वाली महिलाओं को शुष्क मौसम में अधिक दूरी तय करनी होगी.     

देश में हर साल मरने वाले 1.03 करोड़ लोगों में से करीब 7.8 लाख लोग प्रदूषित पानी पीने व गंदगी से पैदा होने वाली बीमारियों से मरते हैं. इनमें डायरिया से मरने वालों की तादाद 4.02 लाख, कुपोषण से 2.17 लाख तथा मलेरिया, डेंगू व जापानी इंसेफलाइटिस से मरने वाले करीब 19,000 के करीब हैं. विकसित देशों में प्रदूषित जल से मरने वालों की तादाद एक फीसद से भी कम है. संयुक्त राष्ट्र की मानें तो साफ पानी और साफ-सफाई की उचित व्यवस्था करने पर समूची दुनिया में तकरीब 7 अरब 34 करोड़ डॉलर बचाये जा सकते हैं. साथ ही 10 अरब डॉलर की सालाना प्रॉडक्टविटी बढ़ेगी और इन मौतों से होने वाले नुकसान की भरपाई कर सालाना 3.6 अरब डालर के बराबर अतिरिक्त आय अलग से पैदा की जा सकेगी.
 

 

 

ज्ञानेन्द्र रावत


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