प्रसंगवश : नर हो न निराश करो मन को
आज के कठिन समय में खुद को स्वस्थ व सक्रिय बनाए रखना बड़ी चुनौती होती जा रही है.
गिरीश्वर मिश्र, लेखक |
प्रगति और विकास के कोलाहल के बीच लोग अकेलेपन और अवसाद (डिप्रेशन) के शिकार हो रहे हैं. कार्य में उनकी संलग्नता और सामाजिक सरोकारों से उनका जुड़ाव कम हो रहा है. अपने में डूबे ये लोग निराशा के शिकार होकर विभिन्न व्यसनों का सहारा लेते हैं, रोग पालने लगते हैं और समाज से कट कर अपने और परिजनों के लिए भार से बनने लगते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, लगभग तीस करोड़ लोग अवसाद से पीड़ित हैं. विश्व स्वास्थ्य दिवस पर अवसाद को लेकर विशेष जागरूकता अभियान चलाने का आह्वान किया गया है.
मानसिक स्वास्थ्य का सीधा और गहरा रिश्ता हमारी भावनाओं से होता है. घर हो या विद्यालय शुरू से ही ज्ञान पर अधिक जोर रहता है, और भावनाएं उपेक्षित ही रह जाती हैं. ऊपर से जिंदगी भी एक ही मिलती है तो सब कुछ जल्दी-जल्दी ही पूरा करने का दबाव भी रहता है. अत: जो भी पाना है, इसी जीवन में पाना है. फलत: आक्रामकता और असुरक्षा बनी रहती है, और एक खास तरह की जीवन शैली अपनाई जा रही है. चीजों से रिश्ता, खुद की गरिमा और दूसरों के साथ संबंध को स्वार्थ भरी नजरों से देखा जाता है. इच्छाएं बढ़ती जा रही हैं. उन सबको पूरा करना असंभव होता जाता है. इच्छा पूरी न होने पर निराशा जन्म लेती है. इसका परिणाम क्रोध होता है. क्रोध से असंतुलन और अंततोगत्वा आदमी तबाह हो उठता है.
इच्छाओं की दासता विनाश की ओर ही ले जाती है. आज जरूरतों को बेचने और बढ़ाने का व्यापार हो रहा है, और हम सभी उसमें उलझते जा रहे हैं. ऐसी स्थिति में अवसाद आधुनिक जीवन की स्वाभाविक त्रासदी का रूप लेता जा रहा है. स्थिति यह है कि 15 पंद्रह से 29 साल की उम्र में अवसाद लोगों की मृत्यु का बड़ा कारण बन रहा है. एक अनुमान है कि हर पांच व्यक्तियों में से एक अवसादग्रस्त हो रहा है. महिलाओं में अवसाद ज्यादा पाया जाता है. अवसाद के कुछ आनुवंशिक कारण भी पहचाने गए हैं पर अभी भी किसी विशेष आनुवंशिक गुण या जीन की पहचान नहीं हो सकी है पर परिवार और पीढ़ियों में इसका संक्रमण भी होता है. तनाव तो मुख्य कारण है पर मानसिक और जैवरासायनिक कारण भी हैं.
नोरेपाइनेफाइनेफ्राईन और सेरटोनिन जैसे स्रव इससे जुड़े पाए गए हैं. जीवन की कठिन परिस्थितियां गरीबी, बेरोजगारी, किसी प्रियजन की मृत्यु, रिश्तों का टूटना, कठिन शारीरिक रोग, शराब और मादक द्रव्य का उपयोग आदि अवसाद के प्रमुख कारणों में शुमार हैं.
स्पष्ट होता जा रहा है हमारी मानसिकता ही अवसाद का मुख्य कारण है. योगसूत्र में पतंजलि ने पांच क्लेशों का ज़िक्र किया है. ये हैं अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश. ये सब व्यक्ति के सीमित संकुचित आत्मबोध के परिणाम हैं. परिवर्तन के साथ स्वयं को निरंतर बदलते रहना एक अंतहीन दौड़ में शामिल होने जैसा है. पर उतार-चढ़ाव के साथ बाहरी बदलाव और आंतरिक बदलाव की दुनिया से परे भी कुछ है. बहावों के साथ जुड़ना या बहना यानी जो अभी है, और अभी नहीं है वैसा ही बनते जाना बड़ा मुश्किल है. यही अवसाद का सबसे बड़ा कारण है.
अगर अपना स्थायी रूप पता चल सके तो पीड़ा का कारण ही समाप्त हो जाए. अस्मिता के चक्कर में ख़्ाुद को सिर्फ शरीर और मन मान बैठना सारी मुसीबत की जड़ है. इसी के तहत आत्मकेंद्रिकता और स्वार्थ की लीला शुरू होती है. प्रिय वस्तुओं से लगाव यानी राग होता है और अप्रिय के साथ द्वेष. हम प्रिय को पाना चाहते हैं, उसके पीछे दौड़ते हैं, और अप्रिय से दूर-दूर भागते हैं. पर जितना ही ऐसा करते हैं सुख और दु:ख बढ़ते ही रहते हैं, और उसी के साथ अवसाद भी बढ़ता है. देवत्व हमारी चेतना में हो तो कोई अवसाद न होगा. आनंद होगा. क्लेशों से मुक्ति होगी. स्वस्थ्य और प्रसन्न रहने के लिए रुपये-पैसे और संसाधनों से ज्यादा जरूरी है खुद को पहचानना और अपना उन्नयन करने का उद्योग करना. अवसाद से बचने और निवारण के लिए अपने स्व या आत्म का विस्तार करना होगा. दूसरों की सहायता करना, नये दोस्त बनाना, हंसने का अभ्यास करना, कार्यों के सहारे अर्थ की तलाश, दूसरों के साथ ‘माफ करो और भूल जाओ’ के नियम का पालन कुछ ऐसे ही उपाय हैं. इसके साथ ही शरीर के लिए नियमित व्यायाम, ध्यान लगाना, संगीत सुनना, पूरी नींद और अच्छा आहार भी जरूरी है. अपने जीवन पर अपना नियंत्रण स्थापित करना होगा.
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