ई-कॉमर्स : डिस्काउंट ने डुबोई नैया
नोटबंदी के बाद तो डिजिटल इंडिया को लेकर अलग तरह का विमर्श हुआ है यानी मजबूरी में कई लोगों को नकदविहीन लेन-देन करना पड़ा.
ई-कॉमर्स : डिस्काउंट ने डुबोई नैया |
फोर्रेस्टर रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार 2021 तक एशिया पैसिफिक क्षेत्र में कुल रिटेल सेल का पांचवां भाग ऑनलाइन सेल के जरिए आएगा.
ई-कॉमर्स की बढ़ोतरी के पीछे मुख्य कारण मोबाइल फोन का स्मार्ट होना है. आंकड़ों की मानें तो 2021 तक ऑनलाइन किए जाने वाले 78% से अधिक ऑर्डर मोबाइल द्वारा बुक किए जाएंगे. भारत में ई- कॉमर्स के बढ़ने के मुख्य कारणों में मोबाइल फोन पर शॉपिंग साइट्स की उपलब्धता के साथ-साथ रोजाना इस्तेमाल होने वाली चीजें हैं. पर अब बात सिर्फ सकारात्मक मसलों या ई-कॉमर्स के तेजी से फैलते कारोबार भर की नहीं है.
ई-कॉमर्स के बारे में इतनी सारी सकारात्मक बातें होने के साथ-साथ इसका दूसरा पहलू व्यापार के हिसाब से जरा-सा भी सकारात्मक नहीं है. ऑनलाइन कंपनियों ने सामान बेच कर अपने राजस्व में भले भी बढ़ोतरी दिखा दी हो लेकिन बात मुनाफे की आती है, तो लगभग सभी ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियां घाटे में ही जा रही हैं. ना सिर्फ घाटे में जा रही हैं, बल्कि छोटी कंपनियों का बड़ी कंपनियों में विलय भी हो रहा है.
भारत में ई-कॉमर्स कंपनियों के घाटे में जाने की मुख्य वजहों पर नजर डाली जाए तो तीन मुख्य वजह उभर कर आती हैं. पहली, ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स का सेल साइट में परिवर्तित हो जाना. भारतीय उपभोक्ता मूल रूप से डिस्काउंट पर सामान खरीदने का आदी रहा है. डिस्काउंट के लिए पहले वह अपनी मनपसंद दुकानों में आने वाली त्योहारी सेल का इंतजार करता था वहीं अब ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स ने उसे हर दिन यह अवसर उपलब्ध करा दिया है. ये ऑनलाइन कंपनियां कभी त्योहार तो कभी क्लियरेंस तो कभी बस यों ही सेल के ऑफर निकाल देती हैं. ऐसे में कंपनियों के खाते में कुल बिक्री तो ज्यादा नजर आ जाती है, लेकिन जब बात मुनाफे की होती है तो उसकी सुई घाटे की ओर चली जाती है.
समझने की बात यह है कि कई बार सेल बढ़ाने से घाटा बढ़ जाता है. सेल बढ़ाकर हमेशा मुनाफा नहीं मिलता. जैसे सौ रु पये की लागत की कोई वस्तु ऑनलाइन दुकान डिस्काउंट पर अस्सी रु पये की बेच रही है, इस उम्मीद में कि चलो ग्राहक तो पकड़ा, तो प्रति इकाई घाटा बीस रु पये हो रहा है. जब एक इकाई का घाटा बीस रुपये है, तो ज्यादा इकाई बिकने पर तो घाटा ज्यादा ही होगा. तो कुल मिलाकर बढ़ी हुई बिक्री बढ़े हुए घाटे को ही दिखा रही है. जो छोटी ऑनलाइन दुकानें घाटा नहीं झेल पा रही हैं, उनका विलय किसी दूसरी ऑनलाइन दुकान में हो रहा है. इन कंपनियों के घाटे में जाने की मुख्य वजहों में से दूसरी मुख्य वजह है विज्ञापन. कंपनी का अच्छा खासा बजट विज्ञापन के लिए होता है.
लेकिन जब कंपनी को व्यापार में घाटा हो रहा हो ऐसे में ये विज्ञापन कंपनी के ऊपर भार से अधिक कुछ नहीं होते. इसी के साथ-साथ ई कॉमर्स के क्षेत्र में खिलाड़ियों की बढ़ती जा रही संख्या भी इसकी एक वजह है. अभी जबकि भारतीय ऑनलाइन बाजार शुरु आती दौर में है, ऐसे में ज्यादा कंपनियों का पदार्पण सिर्फ गलाकाट होड़ को ही बढ़ावा देता है मुनाफे को नहीं. ई कॉमर्स मुख्य रूप से अमेरिका की संकल्पना है. अमेरिका में इसकी सफलता के दो मुख्य कारण हैं. पहला, वहां ऑनलाइन डिस्काउंट का उतना चलन नहीं है जितना कि हमारे यहां. इसी के साथ अमेरिका में ऑनलाइन कंपनियों की सफलता और भारत में उनकी विफलता का मुख्य कारण है भुगतान का सिस्टम.
अमेरिका में ज्यादातर ऑनलाइन शॉपिंग, ऑनलाइन पेमेंट द्वारा होती है वहीं भारत में अभी भी ज्यादातर लोग कैश ऑन डिलीवरी को ही पसंद करते हैं. कैश ऑन डिलीवरी में ऑर्डर के कैंसिल होने की संभावना ज्यादा हो जाती है. कोई ग्राहक किसी सामान को घर पर बुला लेता है यानी घर तक सामान पहुंचाने की लागत तो खर्च हो चुकी होती है. घर पर सामान आने के बाद ग्राहक कैश देकर डिलीवरी लेने से इंकार कर देते हैं. और ऐसी सेल कंपनी के लिए घाटे का सौदा साबित होती है.
भारत में व्यापार करने वाली ऑनलाइन कंपनियों को समझना होगा कि भारतीय और अमेरिकी ग्राहक की सोच अलग है. इसलिए व्यापार का जो मॉडल अमेरिका में सफल है, जरूरी नहीं कि भारत में भी चल जाए. भारत में व्यापार के लिए इसके बाजार का गहन विश्लेषण और पर्याप्त समय की आवश्यकता है. सिर्फ सेल बढ़ाकर मुनाफे पर ध्यान न देना लंबे समय तक नहीं चल सकता. यही फिलहाल भारत के ई-कॉमर्स के धंधे में दिखाई दे रहा है.
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