नजरिया : नये विचारों से निकलेगा समाधान
कश्मीर की समस्या कोई नई नहीं है. भारत के बंटवारे के बाद से कश्मीर भारत के सामने एक बड़ी चुनौती के रूप में भी रहा है.
नजरिया : नये विचारों से निकलेगा समाधान |
और पाकिस्तान किस तरह से लगातार वहां पर जहर डालता रहा है, इस चीज को भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया ने देखा है. यह कोई अब लुकी-छिपी की बात नहीं रह गई है. जब अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे, तब उन्होंने कश्मीर समस्या के स्थायी समाधान के लिए एक फार्मूला दिया था. इंसानियत, कश्मीरियत और हिंदुस्तानियत इन तीन बिंदुओं के इर्द-गिर्द कश्मीर समस्या के समाधान तलाशने की बात की थी. और इस पर पहल के कुछ सकारात्मक परिणाम भी आए थे.
ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कश्मीर समस्या को वाजपेयी जी की नजर से देखने की कोशिश नहीं की थी. अगर बात इंसानियत की की जाए तो प्रधानमंत्री मोदी ने, कश्मीर में 2014 में जब भीषण बाढ़ और प्राकृतिक आपदा आई थी, तब व्यक्तिगत सक्रियता दिखाते हुए राहत कार्यों की समीक्षा की और हालात पर लगातार नजर रखी. वो खुद कश्मीर गए भी. इसके अलावा, भारतीय सेना ने भी अपने स्तर से कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और दिन-रात राहत कार्यों में जुटी रही. इससे बाढ़ के बाद एक अच्छा माहौल भी दिखा और एक अच्छा संदेश भी गया. दूसरी बात जो कश्मीरियत की है, चुनाव के बाद जब राज्य में किसी को बहुमत नहीं मिला तब पीडीपी के साथ सरकार बनाने की उन्होंने पहल की और और तमाम आशंकाओं और भविष्यवाणियों को झुठलाते हुए गठबंधन सरकार का गठन कराया. यह सरकार आज भी चल रही है.
यह पहल इसलिए बेहद महत्त्वपूर्ण रही क्योंकि पीडीपी को अलगाववादियों से हमदर्दी रखने वाली पार्टी के रूप में देखा जाता रहा है. कश्मीरियत को बल मिले और अवाम के बीच सकारात्मक संदेश जाए, विशेषकर प्रधानमंत्री मोदी के प्रति लोगों का भरोसा बढ़े, इस दिशा में यह एक बड़ा प्रयास माना गया. आज महबूबा मुफ्ती राजनीतिक पंडितों को गलत साबित करते हुए वहां भाजपा के साथ गठबंधन सरकार चला रही हैं. और तीसरी बात जो हिंदुस्तानियत की थी, अब पहल करने की बारी कश्मीर की है. और पूरा देश आशा भरी निगाहों से महबूबा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार की तरफ देख रहा है. उसकी इच्छा है कि कश्मीर अमन और तरक्की के रास्ते पर बढ़े. इटालियन विचारक सेनिन्का ने कहा था कि जो देश अपने इतिहास को याद नहीं रखता वो अपने भविष्य का निर्माण नहीं कर सकता.
यह बात इसलिए भी यहां मौजूं है कि किसी भी कार्य को करने या किसी भी नवनिर्माण की चेतना जागृत करने से पहले अगर हमें अपने इतिहास का ठीक-ठीक ज्ञान हो तो हम उन भूलों को नहीं दोहराएंगे. जब जिन्ना ने पाकिस्तान को बनाने की बात की थी, तब कहा था कि भारत और पाकिस्तान के बीच ऐसा ही रिश्ता होगा जैसा अमेरिका और कनाडा के बीच है. यानी जैसे अमेरिका और कनाडा मैत्रीपूर्वक साथ-साथ रहते हुए विकसित हुए वैसे ही भारत और पाकिस्तान भी एक नया इतिहास बनाएंगे. आज जो हालात पाकिस्तान के हैं, या उसकी वजह से हैं, उनकी जड़ में धर्म के नाम पर पाकिस्तान का निर्माण रहा है. और जिस देश का निर्माण धर्म के आधार पर हुआ हो उससे धर्मनिरपेक्षता की उम्मीद बेमानी हो जाती है.
जिन्ना जब पाकिस्तन की मांग कर रहे थे, तब गांधी जी ने कहा था कि किसी भी उद्देश्य की पूर्ति के लिए साध्य और साधन, दोनों पवित्र होने चाहिए. यानी जो भावना और विचार पाकिस्तान निर्माण में इस्तेमाल हुए उसका प्रतिफल आज देखने को मिलता है. अगर हम इसे भारत के संदर्भ में देखें तो इंदिरा गांधी द्वारा पंजाब में अकालियों के खिलाफ भिंडरवाले का इस्तेमाल अंत में उनकी अपनी जान पर ही भारी पड़ा. यही नहीं, जिस तमिलनाडु को लेकर लिट्टे के प्रति उनके मन में हमदर्दी रही, उसी संगठन की वजह से उनके बेटे राजीव गांधी को भी अपनी जान गंवानी पड़ी. अगर राजनीति में प्रिसिपल ऑफ न्यूट्रल जस्टिस की बात की जाए तो उसका असर बाहर साफ-साफ देखने को मिला है. लेकिन कश्मीर का संकट भारत के भविष्य के लिए चिंता का विषय है. नोटबंदी के दौरान यह बात कही जा रही थी कि जिस काले धन के दम पर कश्मीर में अलगाववादी अपना आंदोलन चला रहे थे, उनकी अब कमर टूट चुकी है. लेकिन जिस तरह से पिछले कुछ समय में आतंकवादी घटनाएं बढ़ी हैं, वे इस धारणा को तोड़ती नजर आती हैं. खासकर जिस तरह युवाओं की भीड़ मुठभेड़ के दौरान आतंकवादियों को बचाने के लिए बीच में आ-जा रही है, वह कहीं ना कहीं बुनियादी भूल होती जा रही है. उस बुनियादी भूल या उस विचारधारा को रोकने के लिए कोई बेहतर और रचनात्मक विचारधारा नहीं ला पा रहे हैं.
मोदी सरकार इस साल मई में तीन साल पूरे कर रही है, लेकिन कश्मीर की दिशा में जितने कदम उसे चलने चाहिए थे, वह नहीं चल पाई है. और वहां के लोगों का भरोसा जीतने के लिए जो वैचारिक और रचनात्मक ताकत हमें वहां रोपनी चाहिए थी, हम वह नहीं रोप पाए हैं. धारा 370 के तहत हम वहां संसाधन मुहैया तो कराते हैं, लेकिन वहां सारी ताकत विद्रोह और असंतोष को रोकने में खप जाती है. और जब कोई व्यवस्था इस कदर असंतोष का रूप ले ले तो नये सिरे से प्रयास जरूरी हो जाता है. एक नया संतुलन सभी राजनीतिक दलों को मिलकर ढूंढ़ना होगा. इसके अलावा जो जवान सालों से अपनी सेवाएं वहां दे रहे हैं, और अपने साथियों को शहीद होते हुए देखते हैं, अगर उनका संयम चूक गया तो हालात बेहद कठिन हो जाएंगे. ऐसा सेना अध्यक्ष बिपिन रावत ने कुछ दिन पहले कहा था. कश्मीर समस्या उस दिन काफी हद तक सुलझ जाएगी जब पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग होगा. अफगानिस्तान के राष्ट्रपति ने कुछ दिन पहले ठीक ही कहा था कि पाकिस्तान की दोमुंही पर लगाम लगाए जाने की जरूरत है.
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