वैश्विकी : ममता से चलें हसीना के साथ

Last Updated 02 Apr 2017 02:29:49 AM IST

सात अप्रैल से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की भारत यात्रा शुरू हो रही है.


बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना

उनकी इस यात्रा की नई दिल्ली के लिए खास अहमियत है, क्योंकि तीस्ता जल बंटवारे को लेकर दोनों देशों के रिश्ते चुनौतीपूर्ण मोड़ पर आकर खड़े हो गए हैं. प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के तीस्ता जल बंटवारे को लेकर जारी अड़ियल रुख के कारण किसी ठोस घोषणा की उम्मीद नहीं की जा रही है. फिर भी प्रधानमंत्री मोदी के स्तर से इस मुद्दे पर उनकी सहमति पाने की कोशिशें जारी हैं. इसी के मद्देनजर शेख हसीना के सम्मान में दिए जाने वाले राष्ट्रीय भोज में ममता बनर्जी को भी आमंत्रित किया गया है. यह देखने वाली बात होगी कि वह इसमें शामिल होती हैं, या नहीं.

इसमें कोई दो राय नहीं कि ढाका की मौजूदा सत्ता का रुख भारत की चिंताओं के प्रति ज्यादा संवेदनशील, सकारात्मक और मित्रतापूर्ण बना हुआ है. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई (इंटर सर्विसेज इंटेलेजेंसी) भारत के लिए ही नहीं बांग्लादेश के लिए भी सिरदर्द है. भारत के उत्तर-पूर्व में सक्रिय अलगाववादी संगठनों को आईएसआई आर्थिक संसाधन और हथियार मुहैया कराती है. लेकिन शेख हसीना की सरकार ने उत्तर-पूर्व की अलगाववादी शक्तियों से निपटने में एक कदम आगे बढ़कर भारत का साथ दिया है. सही मायने में अलगाववादियों के खिलाफ बांग्लादेश की सख्त कार्रवाई ने भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्से को सुरक्षित रखा हुआ है.

आईएसआई बांग्लादेश में मुस्लिम कट्टरपंथी संगठनों को भी लगातार बढ़ावा दे रही है. इसलिए इस्लामिक आतंकवादियों के साथ-साथ मुस्लिम धार्मिक कट्टरपंथी वहां सक्रिय हैं. ढाका में इनके समर्थकों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है. शेख हसीना की सरकार इनके खिलाफ वास्तविक लड़ाई लड़ रही है. आईएसआई और मुस्लिम कट््टरपंथी भारत और बांग्लादेश, दोनों के लिए समान शत्रु हैं. इस मुद्दे पर नई दिल्ली और ढाका स्वाभाविक मित्र हैं. इसलिए उम्मीद की जा रही है कि भारत और बांग्लादेश की द्विपक्षीय वार्ता में यह मुद््दा अवश्य शामिल किया जाएगा.

दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी की पाकिस्तान को दक्षिण एशिया से अलग-थलग करने की नीति में बांग्लादेश सबसे बड़ा सहायक है. इसलिए भारत की सुरक्षा से संबंधित मसला हो या संपर्क मार्ग संबंधी चिंताएं और जरूरतें, बांग्लादेश इन मसलों को सकारात्मक तौर पर देखता है, लेकिन अहम सवाल है कि क्या भारत की ओर से भी बांग्लादेश के पक्ष में  कुछ सकारात्मक चीजें हो रही हैं, या नहीं? बांग्लादेश के मामले में ‘गुजराल सिद्धांत’ की कसौटी पर भारत पूरी तरह खरा नहीं उतर पाता. भारत दक्षिण एशिया का बड़ा देश है. अलबत्ता, उसका अपने पड़ोसी देशों के साथ सहयोग करने के बदले पाने की अपेक्षा करना ‘गुजराल सिद्धांत’ के प्रतिकूल ठहरता है. तो सवाल उठता है कि भारत-बांग्लादेश के सहज रिश्ते में अड़चन पैदा करने वाले तीस्ता जल विवाद का कोई सर्वमान्य हल निकल पाएगा. भारत सरकार की यह कोशिश होनी चाहिए वह ममता बनर्जी को इस मसले का हल ढूंढ़ने के लिए राजी करे क्योंकि दोनों देशों के मजबूत रिश्तों से क्षेत्रीय संतुलन को और मजबूती मिलेगी.

डॉ. दिलीप चौबे
लेखक


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