वैश्विकी : गलियारा दरअसल भारत-घेराव है
करीब तीन हजार किमी लंबे चीन और पाकिस्तान के आर्थिक गलियारे को लेकर भारत और पाकिस्तान में खूब विरोध हो रहा है.
डॉ. दिलीप चौबे |
यह 46 अरब डॉलर की संपर्क योजना है जो ग्वादर बंदरगाह को दक्षिण-पश्चिम पाकिस्तान के साथ-साथ सुदूर पश्चिम चीन के झिंजियांग प्रांत को जोड़ेगा. यह बीजिंग के उस वृद्ध योजना ‘वन बेल्ट, वन रोड’ का ही हिस्सा है जिसके जरिये चीन मध्य एशिया और रूस होते हुए यूरोप के साथ जुड़ना चाहता है. चीन को इसके माध्यम से कई राष्ट्रीय हितों को साधना है. पहला, एशिया में भारत को संतुलित करने के लिए पाकिस्तान को साधना उसकी पारंपरिक नीति का हिस्सा रहा है. अब वह इस गलियारे के माध्यम से इस्लामाबाद को विकास का सपना दिखाकर रिझाने की सफल कोशिश कर रहा है. दूसरे, वह अपने व्यापारिक हितों का विस्तार समुद्री रास्ते के बजाय जमीनी रास्तों से करना चाहता है क्योंकि समुद्री रास्तों पर अमेरिका व पश्चिमी देशों का दबदबा है.
दरअसल, वह गलियारा रणनीतिक तौर पर अहम और विवादित माने जाने वाले कश्मीर के गिलगिट-बाल्टिस्तान से होकर गुजर रहा है, जिसका विरोध वहां के स्थानीय लोग कर रहे हैं. ब्रसल्स में हुए यूरोपीय संसद, जिसमें सिंध, ब्लूचिस्तान और गिलगिट बाल्टिस्तान की आजादी के लिए आवाज उठाने वाले प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था, में भी इस गलियारे का भारी विरोध हुआ. आम राय थी कि इस गलियारे से सिर्फ चीन और पंजाब के नागरिकों को फायदा होगा. ब्लूची प्रतिनिधि मेहरान ब्लूच ने इस गलियारे को अवैध ठहराया और कहा कि इससे हमारी संस्कृति और पहचान खत्म हो जाएगी. विश्व सिंध कांग्रेस के चेयरपर्सन रूबीना ग्रीवुड भी आशंकित हैं कि चीन यहां के संसाधनों की लूटपाट करेगा. गिलगिट-बाल्टिस्तान थिंकर्स फोरम के अध्यक्ष वजाहत हसन की भी यही राय है.
भारत पर इस योजना में शामिल होने के लिए चीन-पाकिस्तान दबाव डाल रहे हैं. चीन भारत पर दबाव बनाने के लिए रूस से भी सहयोग लेने की कोशिश कर रहा है. लेकिन पीओके भारत का अभिन्न हिस्सा है. ऐसे में वह इस परियोजना में कैसे शामिल हो सकता है? उसे इस बात की भी आशंका है कि चीन-पाकिस्तान सैनिक कार्रवाई के लिए इस गलियारे का इस्तेमाल कर सकते हैं. इस आशंका को खारिज भी नहीं किया जा सकता. चीन अपनी संप्रभुता के मामले में जरूरत से ज्यादा संवेदनशील रहता है, लेकिन दूसरे की परवाह नहीं करता.
हालांकि चीन दावा करता है कि भारत को चिंतित होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह व्यापारिक-वाणिज्यिक मार्ग है. फिर भी यह स्वाभाविक है कि भारत जिस क्षेत्र पर अपना दावा करता आया है, वहां चीन-पाकिस्तान की संयुक्त योजना में कैसे शामिल हो सकता है! नेपाल ने चीन की प्रस्तावित ‘वन बेल्ट, वन रोड’ में शामिल होने का संकेत दिया है. अगर इसका कोई वैश्विक स्वरूप उभरता है, रूस, मध्य एशिया के देश भी यदि इसमें शामिल होते हैं तो भारत का विरोध कम हो सकता है. यदि चीन भारत को यह आश्वस्त करे कि इसका सैनिक उपयोग नहीं होगा और मसूद अजहर, न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप आदि मुद्दों पर वह भारतीय हितों का ध्यान रखते विश्वास जमाता है तो भारत भी इस परलचीला रुख अपना सकता है.
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