परत-दर-परत : किसका साथ देंगे आप?
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ की नियुक्ति पर सबसे अच्छी टिप्पणी एक काम वाली ने की है.
परत-दर-परत : किसका साथ देंगे आप? |
उसने मालकिन से कहा, जैसे सुंदर लड़की दिखा कर कुरूप से शादी करा दी जाती है, वैसा ही धोखा उत्तर प्रदेश के साथ हुआ है. मतदाताओं से वादा विकास का था पर थोप दिया गया हिंदुत्व. भाजपा को 312 विधायक मिले पर उनमें से एक को भी इस लायक नहीं माना गया कि मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई जा सके. जिन्हें शपथ दिलाई गई उनमें से किसी ने भी विधान सभा का चुनाव नहीं लड़ा था. सभी दलों के उच्च नेतृत्व को पालकी ढोने वाले चाहिए.
लेकिन मैं यहां लोकतंत्र बाहरी या भीतरी का प्रश्न उठाने नहीं जा रहा हूं. मेरी समझ से मामला यह है : उत्तर प्रदेश से अल्पसंख्यक मुसलमानों से युद्ध की उद्घोषणा कर दी गई है. तपस्वी मुख्यमंत्री की एक सूक्ति सुनिए : उन्हें अनुमति मिले तो वे देश की सभी मस्जिदों के अंदर गौरी-गणोश की मूर्ति स्थापित करवा देंगे. आर्यावर्त ने आर्य बनाए, हिंदुस्तान में हम हिंदू बना देंगे. पूरी दुनिया में भगवा झंडा फहरा देंगे. (बीबीसी) कुछ दूसरी सूक्तियां भी कम मर्मभेदी नहीं हैं. मुख्यमंत्री बनाए जाने की घोषणा पर : उत्तर प्रदेश में अब शस्त्र-शास्त्र दोनों चलेंगे. शपथ के बाद : जो मुसलमान वंदे मातरम नहीं कहेंगे, उन्हें हिंदुस्तान में रहने नहीं दिया जाएगा.
कई वर्षो से मेरे मन में यह बात घुमड़ रही है कि भारत में एक और गृह युद्ध बकाया है. शायद इस दु:स्वप्न का स्रोत शासन की देखरेख में बाबरी मस्जिद का विध्वंस है. यह अनुदार हिंदू की पहली महत्त्वपूर्ण सफलता थी. इसकी प्रतिक्रिया भी हुई परंतु पटाखेबाजी से ज्यादा कुछ नहीं थी. इसके सिर्फ छह साल बाद गुजरात में मुसलमानों के खिलाफ लंपट हिंसा हुई जिसकी सजा पंद्रह साल बाद भी किसी को नहीं मिल पाई है. बीच में कुछ दंगे हुए और मुसलमान घर-गांव छोड़ कर भागे भी. लेकिन पिछले तीन वर्षो में जो सबसे गंभीर बहस हुई है, वह यह है कि कौन देशभक्त है, और कौन देशद्रोही. फैसला पहले ही लिख दिया गया था : जो किसी भी तरह की आजादी, बराबरी और आत्म सम्मान का दावा करता है, देशद्रोही है. जो अपनी स्वतंत्र राय रखता है, देशद्रोही है. जो मुसलमानों और ईसाइयों से द्वेष नहीं करता, देशद्रोही है. विभिन्न जगहों पर कानून हाथ में ले कर बता भी दिया गया कि जो यह नई गुलामी स्वीकार नहीं करेगा, उसकी हत्या कर दी जाएगी. तानाशाही का विरोध हुआ पर वह लोगों तक नहीं पहुंच सका. असुरक्षा बनी रही. मोदी और मजबूत हुए.
आदित्यनाथ का चयन संघ परिवार की सहमति से हुआ है. किसी ने चूं तक नहीं की. ‘हिंदू हृदय सम्राट’ जानते हैं कि विकास का घोड़ा जल्द ही लड़खड़ा कर गिर पड़ेगा. करोड़ों लोगों की आकांक्षाएं धड़ाम से जमीन पर आ गिरेंगी. तब हिंदुत्व ही ‘हारे को हरि राम’ बचेगा. इसके लिए सत्ता में सैनिक तत्व बढ़ने की जरूरत है. इसके लिए नये रास्तों की तलाश करनी होगी. आज यूपी, तो कल आर्यावर्त. दक्षिणावर्त अलग-अलग रहे, तो कोई फर्क नहीं पड़ता. 2014 में लोक सभा के लिए भाजपा ने सात मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए थे. उनमें से एक भी जीत नहीं सका. उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया गया.
लोक सभा चुनाव में ही घोषणा कर दी गई थी : मुस्लिम वोट नहीं चाहिए. इस बार की घोषणा है : मुसलमान भी नहीं चाहिए. भारत के उच्चवर्गीय मुस्लिम नेतृत्व ने न केवल देश को तोड़ा, बल्कि भारत के मुसलमानों के साथ भी धोखा किया था. जिन्ना जितने मुसलमान अपने साथ ले गए थे, उससे कुछ ही कम भारत में छोड़ गए थे, जिनकी सुरक्षा की गारंटी किसी ने न दी, न किसी ने ली. सेक्यूलर भारत की सहानुभूति इन कमजोर और गरीब मुसलमानों के साथ थी, पर वह इनके लिए कुछ ठोस करना नहीं चाहता था, जैसे वह हिंदुओं, आदिवासियों और ईसाइयों के लिए कुछ करना नहीं चाहता था.
सो, कांग्रेस के समय से ही प्रशासन, सेना और पुलिस, व्यवहारत: हिंदू होते गए. करंसी पर गांधी जी थे और रिजर्व बैंक के गेट पर यक्षिणी पर देश का कोई भी महत्वपूर्ण प्रतीक या नाम गैर-हिंदू नहीं था. अगर कोई कहता है कि आचरण में भारत हिंदू राष्ट्र है, तो अतिश्योक्ति नहीं करता. फिर भी, यह हिंदू राज्य नहीं बन सका था. विभाजन ने भारत के मुसलमानों से ज्यादा हिंदुओं का दिल तोड़ा. ऊपर से पाकिस्तान आंखें तरेरता रहता था और ढाका पर भी कट्टरपंथी मुसलमान हावी हो गया. संघ ने अखंड भारत का अपना महत्वाकांक्षी और मिलिटरी स्वप्न तो छोड़ दिया पर बचे हुए भारत में हिंदुओं को महाबली के रूप में स्थापित करने की पचहत्तर साल पुरानी योजना पर जी-जान से लग गया : मुसलमानों ने सैकड़ों सालों तक भारत को लूटा था, अब उन्हें लुटने के लिए तैयार रहना चाहिए.
जाहिर है, यह गृह युद्ध लंबा चलेगा और देश को बुरी तरह झुलसा देगा. कौन जानता है, फैसला किसके हक में होगा? यह तक है कि मुसलमान बड़ी संख्या में मारे जाएंगे और उनके साथ सहृदय हिंदू भी. अंत में झगड़ा हिंदू बनाम हिंदू बन कर रह जाएगा जिसकी झलक सबसे पहले डॉ. लोहिया ने देखी थी. क्या संघ अपने इरादे में सफल हो जाएगा? या इस गृह युद्ध में संस्कारी और प्रगतिशील हिंदू की जीत होगी? प्रिय पाठक, आप को भी तय करना होगा कि आप इतिहास की किस धारा का साथ देंगे.
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