राजनीति : नारों से नहीं चलता काम

Last Updated 17 Mar 2017 03:40:51 AM IST

मुझे 1971 के लोक सभा चुनाव का दौर याद आता है. वरिष्ठ पत्रकार, कवि और लेखक श्रीकांत वर्मा ने कांग्रेस के लिए एक नारा लिखा, जिसने अखिल भारतीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई थी.


राजनीति : नारों से नहीं चलता काम

नारा था ‘वे कहते हैं इंदिरा हटाओ, इंदिरा कहती हैं गरीबी हटाओ-अब आप ही चुनिए?’ गरीबी तो आज तक नहीं हटी; पर कांग्रेस को 1971 में भारी विजय प्राप्त हुई और श्रीकांत वर्मा राज्य सभा पहुंच गए.

इसी प्रकार के अन्य कई लोकलुभावन नारे कांग्रेस ने दिए. ‘कांग्रेस लाओ, गरीबी हटाओ, ‘जात पर न पात पर, इंदिरा जी की बात पर मुहर लगेगी हाथ पर.’ प्रमोद महाजन का ‘इंडिया शाइनिंग’ और मायावती का भड़काऊ नारा ‘तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’ या लालू प्रसाद का ‘भूराबाल (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला यानी कायस्थ)  साफ करो’ भी खासे चर्चित हुए. पर, बीते दिनों सम्पन्न हुए पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव के दौरान शायद ही कोई नारा अपने लिए खास जगह नहीं बना सका. आखिरकार क्यों? क्या अब देश नारों से नहीं, बल्कि ठोस काम और ईमानदार वादों के आधार पर किसी दल के हक में वोट देने लगा है? इन चुनावों का एक बड़ा संकेत ये भी है. राजनीति के कई पंडित कह रहे थे कि नोटबंदी के चलते जिस तरह से देश की जनता को कष्ट हुआ, उसका खमियाजा भुगतना पड़ेगा भाजपा को विधान सभा चुनाव में. पर ये आशंका निर्मूल साबित होती रही.

उत्तर प्रदेश की जनता ने नोटबंदी पर अपनी सहमति की जबरदस्त मुहर लगा ही दी. उत्तर प्रदेश के नतीजे बता रहे हैं कि भाजपा नोटबंदी से उबर चुकी है. मोदी अपनी चुनावी सभाओं में मतदाताओं को समझाने में सफल रहे कि नोटबंदी देश हित में है. जनता ने मोदी की बात को समझा और उनके पक्ष में वोट दिया. यानी नारों से दिल जीत की कोशिश नहीं हुई.  जमीनी काम दिखाकर ही कायदे की बात से बात बनी. अब यह सवाल गौण हो चुका है कि इस नोटबंदी के लागू किए जाने को लेकर वोटर परेशान हुए या नहीं, क्योंकि उन्होंने अपने वोट भाजपा को देकर साफ तौर पर यह फैसला कर दिया कि प्रधानमंत्री मोदी की ईमानदारी और गरीबों के लिए लगातार किए जा रहे काम में विश्वास रखते हैं और  इसलिए वोट उनकी पार्टी को ही देंगे. बेशक, इस नारा विहीन चुनाव में मोदी की लहर उन सबको दिख रही थी, जो चुनाव अभियान के दौरान उत्तर प्रदेश की खाक छान रहे थे.

और इसमें कोई संदेह भी नहीं है कि जनता से सीधा संवाद करने का मोदी का नायाब तरीका अभी भी पूरी तरह कारगर है. वे जनता से क्षण भर भर में ही सीधा संवाद बना लेते हैं. पाकिस्तान के खिलाफ ‘निर्णायक’ कार्रवाई करके प्रधानमंत्री मोदी ने सारे संसार को यह संदेश दे दिया था कि अब भारत सीमा के उस तरह से होने वाली आतंकी कार्रवाई पर सिर्फ ‘निंदा’ और ‘कड़ी निंदा’ ही नहीं करेगा बल्कि कड़ी कार्रवाई करेगा. सर्जिकल स्ट्राइक से भारत की एक मजबूत छवि उभरी है. और उत्तर प्रदेश की जनता ने भाजपा के हक में वोट देकर सर्जिकल स्ट्राइक का समर्थन किया है.

मोदी सरकार द्वारा  2017-18 को ‘गरीब कल्याण वषर्’ घोषित करने और ढाई वर्षो में 93 कल्याणकारी योजनाओं के लागू करने से भी भाजपा को लाभ हुआ. गांव-गांव शौचालय बने. गरीबों के घरों में भी उज्जवला योजना के तहत गैस के चूल्हे मिले और धुंआ और प्रदूषण से मुक्ति मिली. मात्र 12 रु पये में दो लाख का दुर्घटना बीमा, अटल पेंशन योजना, जन धन योजना, सुकन्या योजना, न्यूनतम वेतन में वृद्धि, महिला कामगारों को 6 माह का सवैतनिक गर्भावस्था अवकाश आदि योजनाओं के जमीनी कार्यान्वयन ने गरीबों का दिल छू लिया. इन सभी योजनाओं की विशेषता यह रही कि इनमें धर्म, जाति, अगड़े-पिछड़े और दलित-महादलित के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया गया.

जो भी भारत का नागरिक है और गरीब है, सबको लाभ मिला. ‘सबका साथ: सबका विकास’ जमीन पर उतरता नजर आया तो मायावती का अभेद्य वोट बैंक का दुर्ग भी ध्वस्त हो गया. और अब तो ऐसे ठोस संकेत मिल रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की घोर एंटी मुस्लिम छवि पेश करने की सपा-बसपा-कांग्रेस की तमाम कोशिशों के बावजूद भाजपा के हक में मुसलमान औरतें ने बढ़-चढ़कर वोट डाले. जबसे मोदी और भाजपा ट्रिपल तलाक कानून में संशोधन करने की वकालत करने लगे थे, तभी से सताई हुई मुसलमान औरतें और पढ़ी-लिखी मुसलमान युवतियां भाजपा के हक में आने लगीं थीं.

नतीजा तो दिख रहा है-देवबंद, रामपुर, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर और बरेली जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में भाजपा की विजय को समझिए. बरेली जिले की तो सभी 9 सीटें जीतकर भाजपा ने रिकार्ड ही कायम कर दिया. अपने आप को मुसलमानों का मित्र बताने वाले कथित सेक्युलर दलों ने कभी भूल से भी मुसलमान औरतों के हक में कोई कदम नहीं उठाया.
सहानुभूति का एक शब्द भी उनकी जुबान पर नहीं आया. उन्हें खुदमुख्तार बनाने के संबंध में नहीं सोचा. ये औरतें सीलन भरे घरों के बंद कमरों में ही अपनी जिंदगी को घुट-घुटकर गुजार देती हैं. उत्तर प्रदेश में भाजपा की सभाओं में बड़ी तादाद में मुसलमान औरतें पहुंचीं.

ये भाजपा नेताओं से मिलती भी रहीं. यानी मुसलमान औरतें भाजपा के हक में खड़ी थीं. और भाजपा को उत्तर प्रदेश में विजय मिलने के मूल में जवाहरलाल नेहरू यूनिर्वसटिी से लेकर रामजस कॉलेज में अभिव्यक्ति की आजादी के सवाल पर देश विरोधी हरकतें भी लगातार सुनियोजित ढंग से जारी रहीं, जिनका मूल उद्देश्य पांच राज्यों के चुनावों में युवा मतदाताओं को भाजपा के खिलाफ खड़ा करना था. हालांकि, एक दौर में नारों के बिना चुनाव बिना छौंक की दाल जैसी ही मानी जाती थी. इसलिए नारे होते थे तो चुनावों का लुत्फ भी बढ़ जाता था. हर चुनाव कुछ नये नारे लेकर आते थे. पर लगता है कि नारों का युग अब गुजर चुका है. अब तो काम करके ही आप जनता के दिलों में जगह बना सकते हैं.

आर.के सिन्हा
लेखक


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