ईवीएम : क्या हैकिंग संभव है?

Last Updated 15 Mar 2017 03:08:50 AM IST

तकनीक और उससे जुड़ी समस्याओं को जब राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के नजरिए से देखा जाता है, तो समस्या सुलझने के बजाय उसके और उलझने का खतरा पैदा हो जाता है.


ईवीएम : क्या हैकिंग संभव है?

जिस तरह बसपा प्रमुख मायावती ने इधर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को संदेह के घेरे में खड़ा किया है और चुनाव में हार का सामना करने वाले नेताओं क्रमश: मायावती, अखिलेश यादव व हरीश रावत ने इन आशंकाओं का जवाब मांगा है, यह जरूरी हो जाता है कि ईवीएम की विसनीयता का आकलन किया जाए. केजरीवाल ने तो दिल्ली में होने वाले एमसीडी चुनावों में भी ईवीएम की जगह बैलट पेपर की इस्तेमाल की मांग कर दी है.

जहां तक चुनावी नतीजों को प्रभावित करने के मकसद से ईवीएम में छेड़छाड़ के आरोपों का सवाल है तो ऐसे कई वाकये हो चुके हैं. वर्ष 2009 के आम चुनाव में बीजेपी के वरिष्ठ लालकृष्ण आडवाणी ने ईवीएम पर संदेह प्रकट किया था और इसकी जगह मतपत्रों की पुरानी व्यवस्था लौटाने की मांग की थी. कुछ ही दिन पहले महाराष्ट्र नगरपालिका चुनाव में भी ईवीएम के जरिये धांधली की शिकायत की गई थी. नासिक, पुणे और यरवदा आदि निर्वाचन क्षेत्रों में ईवीएम को लेकर गड़बड़ी की शिकायतें दर्ज कराई गई थीं और कहीं-कहीं तो इस मुद्दे पर हिंसक झड़पें तक हो गई.

इन सारी घटनाओं और शिकायतों के मद्देनजर यह सवाल बार-बार उठता रहा है कि क्या टेंपरिंग-प्रूफ कहलाने वाली ईवीएम में किसी किस्म की छेड़छाड़ मुमकिन है? उल्लेखनीय है कि मई, 2010 में अमेरिका के मिशीगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने दावा किया था कि उनके पास भारत की ईवीएम मशीनों को हैक करने की क्षमता है. इन शोधकर्ताओं ने घर पर बनाई गई एक मशीन और मोबाइल फोन की मदद से ईवीएम में दर्ज नतीजों को बदलने की क्षमता का प्रदर्शन भी किया था. हालांकि, उस वक्त तत्कालीन चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति ने ऐसे दावे को भारतीय ईवीएम मशीनों के सुरक्षा प्रबंधों के मद्देनजर खारिज कर दिया था.

उन्होंने कहा था कि भारत की ईवीएम मशीनों में इतने पुख्ता प्रबंध किए गए हैं कि उनमें दर्ज नतीजों में फेरबदल करना संभव नहीं है. यही नहीं, अदालत में भी ऐसे आरोप साबित नहीं किए जा सके और सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों को खारिज कर दिया था. आज जो बीजेपी यूपी और उत्तराखंड के चुनावी नतीजों से प्रसन्न है, अतीत में इसी ईवीएम के खिलाफ आंदोलन तक चला चुकी है. वर्ष 2010 में बीजेपी नेताओं क्रमश: किरीट सोमैया और देवेंद्र फड़नवीस (जो अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं) एंटी-ईवीएम कहे गए आंदोलन के एक ऐसे कार्यक्रम में उपस्थित हुए थे, जिसमें हैदराबाद के एक इंजीनियर हरिप्रसाद ने यह दिखाया था कि कैसे विभिन्न चरणों में ईवीएम में दर्ज नतीजों में हैकिंग के जरिये फेरबदल की जा सकती है.

राजनीति में जनहित के मुद्दों को लेकर मतभेद होना और आरोप-प्रत्यारोप लगाना स्वाभाविक है, लेकिन बैंकिंग से लेकर चुनावी प्रक्रिया तक में साइबर हैकिंग जैसी दिनों-दिन विराट होती मुश्किल को सिर्फ  मोदी सरकार की हरकत के रूप में केंद्रित करने की कोशिश करना असल में इस समस्या के समाधान के रास्ते में अड़चन डालने जैसा है. इसके लिए राजनीति और दलगत हितों के पार जाकर देखना होगा कि क्या हैकिंग वास्तव में इतनी बड़ी समस्या है कि वह लोकतंत्र में आम जनता की आस्था तक को डिगा सके?

ईवीएम के सुरक्षा प्रबंधों में रह गई खामियों के दृष्टिगत ही उसमें समय-समय पर तब्दीलियां की गई हैं. जैसे पहले एक ही तरह की ईवीएम होती थी, उसमें वोटों की गिनती दोबारा नहीं हो सकती थी. लेकिन इन मशीनों का विरोध होने के बाद ईवीएम का दूसरा प्रकार लाया गया, जिसमें वोटों को फिर से गिनना संभव हो गया. इसके लिए ईवीएम में पेपर ट्रेल की व्यवस्था जोड़ी गई, ताकि वोट पुन: गिने जा सकें.

साइबर हैकिंग की समस्या को देखते हुए ईवीएम को एक फूलप्रूफ इंतजाम मानना भूल हो सकती है, खासकर तब, जबकि लोकतंत्र का दारोमदार चुनावी व्यवस्था पर टिका है. पर इसके लिए सीधे तौर पर किसी एक पार्टी को कठघरे में ला देना उससे भी बड़ी भूल है क्योंकि यह जरूरी नहीं है कि हैकर सत्ता के समर्थक हों. इसलिए संदेह से देखने के बजाय मिल-बैठकर यह विचार करें कि इससे छुटकारा पाने का पक्का इंतजाम क्या हो सकता है.

अभिषेक कुमार
लेखक


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