ओपन और डिसटेंस पाठ्यक्रमों के लिए यूजीसी की मंजूरी लेना अनिवार्य
अब विश्वविद्यालयों को ओपन और डिसटेंस शैक्षणिक पाठ्यक्रम शुरू करने से पूर्व विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से मंजूरी लेना अनिवार्य है।
ओपन और डिसटेंस पाठ्यक्रमों के लिए यूजीसी की मंजूरी जरूरी |
इस विषय में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय का कहना है कि देश भर के विभिन्न विश्वविद्यालय, मुक्त और दूरस्थ शिक्षा मोड में पाठ्यक्रम की पेशकश कर सकते हैं, लेकिन यूजीसी की मंजूरी के साथ। मंत्रालय के मुताबिक ओपन और डिसटेंस शैक्षणिक पाठ्यक्रमों को यूजीसी द्वारा अधिसूचित संबंधित नियमों के तहत निर्धारित सभी शर्तों को पूरा करना होगा।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की 562वीं बैठक में मौजूदा नियमों में संशोधनों को मंजूरी दी गई थी और इन्हें 18 नवंबर को भारत के राजपत्र में प्रकाशित किया गया था। पिछले नियमों के अनुसार, विश्वविद्यालयों को आयोग की पूर्व स्वीकृति के बिना मुक्त और दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों की पेशकश करने की अनुमति दी गई थी, बशर्ते वे नियमों के तहत निर्धारित सभी शर्तों को पूरा करते हों।
डिस्टेंस या फिर ऑनलाइन माध्यम से हासिल की जाने वाली डिग्री को अब रेगुलर कक्षाओं के जरिए हासिल की गई डिग्री के समान माना जाएगा। हालांकि यह मान्यता केवल उन शिक्षण संस्थानों को दी गई है जिन्हे यूजीसी यानी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से मान्यता प्राप्त है।
यूजीसी ने बताया कि मान्यता प्राप्त संस्थानों से ऑनलाइन और डिस्टेंस मोड में पढ़ाई करने के बाद हासिल की गई डिग्री को पारपंरिक रेगुलर कक्षा वाली डिग्री के समान ही माना जाएगा।
यूजीसी सचिव रजनीश जैन का कहना है कि यूजीसी की अधिसूचना के मुताबिक देश में ओपन, डिस्टेंस या ऑनलाइन माध्यमों के जरिए हायर एजुकेशन प्रदान करने वाले इंस्टिट्यूशन की डिग्री को रेगुलर शिक्षण संस्थानों की डिग्री के बराबर ही मान्यता दी जा रही है। यूजीसी के मुताबिक यह मान्यता ग्रेजुएशन व पोस्ट ग्रेजुएशन दोनों ही सर पर दी गई है।
इसके अलावा देश में एक एकीकृत उच्च शिक्षा प्रणाली बनाने की कोशिश भी की जा रही है। इसके अंतर्गत जल्द ही देश के देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में सभी पाठ्यक्रम उपलब्ध कराए जाएंगे। नए बदलावों के तहत 3,000 या अधिक छात्रों वाले कॉलेज डिग्री प्रदान करने वाले बहु-विषयक स्वायत्त संस्थान बन जाएंगे। उच्च शिक्षा में इस नए परिवर्तन से जहां छात्रों के समक्ष पहले के मुकाबले अधिक विकल्प उपलब्ध होंगे वहीं शिक्षण संस्थानों को भी अधिक स्वायत्तता मिलेगी।
इस बड़े परिवर्तन को लागू करने के लिए आम सहमति बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए देश भर के तमाम उच्च शिक्षण संस्थानों से संपर्क किया गया है। न केवल उच्च शिक्षण संस्थान बल्कि राज्य सरकारें भी इस बदलाव में भागीदार बनेंगी।
यूजीसी के मुताबिक इन बदलावों का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि छात्र अपने ही संस्थान में अपने मूल विषय के अलावा अपनी रूचि के अनुसार कोई और विषय पाठ्यक्रम या पूर्ण कालिक कोर्स में भी दाखिला ले सकेंगे। इस नए बदलाव की परिकल्पना तो यूजीसी द्वारा पहले की जा चुकी थी लेकिन अब इस संबंध में ठोस कदम उठाए गए हैं।
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