जरूरत मलहम की

Last Updated 07 Apr 2025 01:10:26 PM IST

नक्सलियों से गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि आप हमारे अपने हैं। हथियार डाल कर मुख्यधारा में शामिल हों। जब कोई नक्सली मारा जाता है, तो कोई भी खुश नहीं होता।


जरूरत मलहम की

दंतेवाड़ा में बस्तर पंडुम महोत्सव में समापन समारोह में शाह ने कहा कि मार्च, 2026 तक नक्सल समस्या को खत्म करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। नक्सलमुक्त घोषित गांवों को एक करोड़ रुपये की विकास निधि देने तथा नक्सलियों की सुरक्षा और पुनर्वास की व्यवस्था सरकार द्वारा सुनिश्चित करने की बात भी उन्होंने की। शाह के बस्तर प्रवास के दरम्यान छत्तीसगढ़ के 86 नक्सलियों ने हैदराबाद में सामूहिक समर्पण किया जिनमें बीस नक्सल महिलाएं भी शामिल हैं। 

पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से 1967 में शुरू किसानों के विद्रोह को नक्सलवाद कहा गया। इसमें शामिल लोगों को नक्सलवादी या नक्सल कहा जाने लगा। इन्हें मुख्यतया वामपंथी आंदोलनों से जोड़ा जाता है जो माओवादी राजनीतिक विचारधारा का पालन करते हैं। सरकार के अनुसार देश में नक्सल प्रभावित जिले सत्रह से घट कर छह रह गए हैं। छत्तीसगढ़, तेलंगाना, झारखंड और ओडिशा में इनकी जड़ें फैली हुई हैं। 

बिहार के विभिन्न जिलों को नक्सलमुक्त घोषित किए जाने के बावजूद अभी भी दस जिलों में इनका प्रभाव है। सरकार के प्रति नाराजगी और बुनियादी जरूरियात की मांग को लेकर ये उग्र प्रदर्शन करते रहे हैं। पिछले दिनों नक्सलियों की सेंट्रल कमेटी ने पर्चा जारी करके सरकार से युद्धविराम की मांग की। नक्सल प्रभावित इलाकों के नौजवान अब बेहतर शिक्षा और रोजगार की तलाश में अपना वक्त लगाना बेहतर मान रहे हैं। 

जान बचाने के लिए घने जंगलों में भटकने या सुरक्षा बलों का निशाना बनने को वे राजी नहीं हो रहे। गुरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग लेकर हथियारबंद लड़ाकों को लगातार रिहाइशी इलाकों की तरफ जाने से रोका जा रहा है। 

दशकों से चले आ रहे इस सशस्त्र वामपंथी आंदोलन को नेस्तनाबूद करने को दृढ़संकल्पित केंद्र सरकार सफल होती दिख रही है। हालांकि ग्रामीण और बीहड़ इलाकों तक विकास, सड़कें, विद्यालय और स्वास्थ्य केंद्रों के साथ ही रोजगार के साधनों की ठोस व्यवस्था ही नौजवानों को मतिभ्रम से दूर रख सकती है। मात्र ओजस्वी भाषणों के भरोसे उनके आवेग/गुस्से को रोका जाना मुश्किल है। 



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