वैश्विकी: म्यूनिख में अमेरिका-यूरोप टकराव

Last Updated 16 Feb 2025 01:22:03 PM IST

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद राजनीतिक और कूटनीतिक झटके यूरोप में महसूस किए जा रहे हैं। जर्मनी के शहर म्यूनिख में चल रहे सुरक्षा सम्मेलन में अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस के भाषण ने यूरोप के सत्ता प्रतिष्ठानों को हिला दिया है।


वैश्विकी: म्यूनिख में अमेरिका-यूरोप टकराव

कुछ महीने पहले तक अमेरिका यूरोप के नेता एक ही सुर में बोलते थे। यूक्रेन युद्ध सहित अनेक विश्व मामलों में दुनिया को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन और ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के बजाय आग में घी डालने का काम किया। यूक्रेन, रूस और यूरोप को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी।

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने वायदे के अनुसार कार्यकाल के आरंभ में ही युद्ध समाप्त कराने तथा शांति वार्ता आयोजित करने के संबंध में ठोस पहल की। उन्होंने रूस के राष्ट्रपति पुतिन से लंबी बातचीत की। ट्रंप का शांति फार्मूला है यूक्रेन में तुरंत युद्ध विराम हो तथा बातचीत शुरू हो। रूस को भरोसा दिलाया जाए कि यूक्रेन को कभी पश्चिमी देश सैन्य संगठन नाटो एवं सदस्य नहीं बनाया जाएगा। वास्तव में कुछ वर्ष पहले यदि यह घोषणा की गई होती तो युद्ध शुरू ही नहीं होता। अमेरिका के रक्षा मंत्री पीट हेग सेथ ने नाटो की बैठक में अमेरिका के इसी रवैये को दोहराया जो यूरोपीय सदस्य देशों को नागवार गुजरा। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की खुलकर ट्रंप प्रशासन का विरोध करने की स्थिति में नहीं हैं। हालांकि पर्दे के पीछे वह अमेरिका के खिलाफ यूरोपीय देशों की लामबंदी का प्रयास कर रहे हैं।

अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस का संबोधन यूरोप की सरकारों और नेताओं की नीतियों पर खुला प्रहार था। उन्होंने इन देशों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर अपनाई जा रही पाखंडपूर्ण नीतियों की तीखी आलोचना की। उन्होंने कहा कि यूरोप को रूस और चीन सहित बाहरी शक्तियों के बजाय घरेलू ताकतों से असल खतरा है। जेडी वेंस ने आरोप लगाया कि यूरोपीय देशों में अभिव्यक्ति की आजादी को दबाने की कोशिश की जा रही है जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्तोरियस ने आपत्ति जाहिर करते हुए कहा कि यह स्वीकार नहीं किया जा सकता। वास्तव में आव्रजन, इस्लामी कट्टरवाद, गर्भपात, पर्यावरण और वैक्सीन आदि मुद्दों पर ट्रंप प्रशासन तथा यूरोपीय नेताओं में मतभेद है।

पिछले चुनाव में अमेरिकी मतदाताओं ने डेमोक्रेटिक पार्टी के खिलाफ ट्रंप को भारी जनादेश दिया था। ट्रंप प्रशासन अब इन्हीं नीतियों को अन्य देशों में फैलाना चाहता है। उपराष्ट्रपति वेंस का संबोधन ऐसे समय सामने आया है जब जर्मनी में आम चुनाव होने वाले हैं। चांसलर शोल्ज को कड़ी चुनौती का सामना है। यूरोप की अन्य देशों की तरह जर्मनी में भी आव्रजन और इस्लामी कट्टरवाद विरोधी राजनीतिक दलों की ताकत बढ़ रही है। जर्मनी के दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी दल एडीएफ की ताकत में इजाफा हो रहा है। मस्क एडीएफ का समर्थन कर रहे हैं। जर्मनी और यूरोप के अन्य देशों में यह धारणा बन रही है कि ट्रंप प्रशासन चुनाव में दखलअंदाजी कर रहा है।

यह विडंबना है कि कुछ दिन पहले जो यूरोपीय देश अन्य देशों को अभिव्यक्ति की आजादी की नसीहत दे रहे थे, वे आज खुद कठघरे में खड़े हैं। वास्तव में पश्चिम का वर्चस्ववादी वैिक तंत्र सूचना युद्ध पर टिका था। सूचना के सभी माध्यमों पर इन देशों का एकाधिकार था। किसी भी मुद्दे पर घरेलू और विदेशी मोर्चे पर जनमत का निर्माण करने के लिए इस सूचना तंत्र का इस्तेमाल किया जाता था। ट्वीटर, फेसबुक और व्हाट्सएप आदि के प्रचलन के बाद लोगों को सूचना के वैकल्पिक माध्यम हासिल हुए।

एलन मस्क ने ट्वीटर का स्वामित्व हासिल करने के बाद इसे आंतरिक सेंसरशिप से मुक्त किया। वास्तव में भारत पश्चिमी देशों के सूचना एकाधिकार के दुष्परिणाम का भुक्तभोगी रहा है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर कहते रहे हैं कि भारत और उसकी सरकार की छवि खराब करने के लिए सुनियोजित अभियान चलाया जाता है। जयशंकर ने कुछ वर्ष पूर्व इसी म्यूनिख सम्मेलन में कहा था कि यूरोपीय देश यह मानते हैं कि इस महाद्वीप की समस्या विव्यापी है जबकि अन्य देशों की समस्याओं से उनका कोई लेना-देना नहीं है। यह स्थिति ज्यादा दिन तक नहीं चल सकती। अमेरिकी उपराष्ट्रपति ने प्रकारांतर से जयशंकर के तर्क को ही आगे बढ़ाया है।

डॉ. दिलीप चौबे


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