आस्था : ममता कुलकर्णी का ग्लैमर से वैराग्य का सफर
कई लोग सफलता और भौतिक सुख को ही जीवन का अंतिम लक्ष्य मान लेते हैं, लेकिन जिंदगी कब-कहां लेकर चली जाए, कौन जानता है। चर्चित हीरोइन का किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर बन जाना बहुत कुछ सोचने को मजबूर करता है।
आस्था : ममता कुलकर्णी : ग्लैमर से वैराग्य का सफर |
ममता कुलकर्णी लंबे समय तक ग्लैमर की जिस दुनिया में रहीं, वह दुनिया जितनी आकषर्क दिखती है, उतनी ही मुश्किल भी है। ममता का जीवन भी इससे अछूता नहीं रहा। जैसे-जैसे उनकी लोकप्रियता बढ़ी, वैसे-वैसे विवाद भी उनके जीवन का हिस्सा बनते गए लेकिन ग्लैमर और ऐर्य से भरी जिंदगी को छोड़ कर वैराग्य के जिस सफर पर वह चल पड़ी हैं, यह कोई सहज मोड़ नहीं है। किसी भी व्यक्ति के लिए वैराग्य का मार्ग अपनाना बहुत कठिन होता है। लेकिन ममता ने यह कदम उठाया है और अध्यात्म के जरिए आत्मिक शांति की खोज शुरू की है तो इसके कुछ निहितार्थ तो होंगे ही।
मायानगरी मुंबई में पहचान बनाना लाखों युवाओं का सपना होता है। हर युवा बॉलीवुड की चकाचौंध भरी दुनिया में प्रवेश करना और उसमें अपनी पहचान बनाना चाहता है। ममता का भी यह सपना था, जिसे उन्होंने साकार किया। नब्बे के दशक में ममता कुलकर्णी चर्चित अभिनेत्रियों में से एक रहीं। बॉलीवुड में उन्होंने ‘वक्त हमारा है’,‘चाइना गेट’, ‘सबसे बड़ा खिलाड़ी’, ‘क्रांतिवीर’, ‘बाजी’, ‘करण-अर्जुन’ जैसी तमाम फिल्मों से अलग पहचान बनाई लेकिन ग्लैमर और सफलता के शिखर पर पहुंचने के बाद उन्होंने जिस तरह अपनी जिंदगी की दिशा बदली है, वह उनके जीवन में आए उतार-चढ़ावों को दर्शाने के लिए काफी है।
एक ओर जहां उनके ग्लैमरस फोटोशूट और बोल्ड व्यक्तित्व ने उन्हें मीडिया की सुर्खियों में बनाए रखा, वहीं उनका नाम कई विवादों से भी जुड़ा। इसके उपरांत धीरे-धीरे वह फिल्मी दुनिया से दूर होती चली गई। फिल्म संसार से गायब होने के बाद ममता ने अध्यात्म की राह चुनी। खुद को मीडिया और सार्वजनिक जीवन से दूर ले गई। धीरे-धीरे उनका जुड़ाव आध्यात्मिकता की ओर बढ़ता गया। ममता की 2013 में आई किताब ‘ऑटोबायोग्राफी ऑफ एन योगिनी’ भी इस तरफ इशारा कर रही थी। ममता ने एक दशक पहले कहा था कि कुछ लोग दुनिया के कामों के लिए पैदा होते हैं जबकि कुछ ईर के लिए पैदा होते हैं। मैं भी ईर के लिए पैदा हुई हूं।
ममता ने फिल्मी दुनिया से दूर होकर अध्यात्म का रास्ता अपना लिया है। महाकुंभ के दौरान उन्हें किन्नर अखाड़े ने महामंडलेर की उपाधि दे दी है। वैराग्य धारण करने के बाद ममता को नया नाम ममतानंद गिरि भी मिल गया है। जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव देखने के बाद ममता शायद यह सोच कर संन्यासिन बनी हैं कि सच्ची खुशी और शांति बाहरी दुनिया में नहीं, बल्कि आत्मा की गहराइयों में होती है।
ग्लैमरस हीरोइन से महामंडलेर तक की उनकी यात्रा से यह संदेश तो मिलता ही है कि जिंदगी में कभी भी नई शुरुआत की जा सकती है। ममता ने विवादों और संघर्ष से घिरने के बावजूद अपनी राह चुन ली है। यह सफर भले ही ममता का है पर यह हमें भी यह सोचने पर मजबूर करता है कि जीवन का असली उद्देश्य क्या है, और हम उसे पाने के लिए क्या कदम उठा सकते हैं? आज से पहले ममता की कहानी सिर्फ बॉलीवुड से जुड़ी हुई थी, अब यह कहानी हर उस व्यक्ति के लिए है, जो जीवन में बदलाव और आत्म-साक्षात्कार की तलाश करना चाहता है।
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