भूजल में नाइट्रेट की सांद्रता अनुमेय सीमा से अधिक होना खतरे की घंटी
केंद्रीय भू-जल बोर्ड ने कहा है, देश के 440 जिलों के भूजल में नाइट्रेट की सांद्रता अनुमेय सीमा से अधिक है।
भूजल में नाइट्रेट की सांद्रता अनुमेय सीमा से अधिक होना खतरे की घंटी |
नाइट्रेट संदूषण पर्यावरण व स्वास्थ्य के मद्देनजर गंभीर चिंता का विषय है। भूजल गुणवत्ता के नमूनों में फ्लोराइड व आर्सेनिक संदूषण भी सुरक्षित सीमा से अधिक पाया गया। नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों व पशु अपशिष्टों का उपयोग करने वाले कृषि क्षेत्रों में मिट्टी की गहराई तक पहुंच जाता है।
मानसून से पहले व बाद में पंद्रह हजार से ज्यादा गुणवत्ता मांपने के नमूने लिये गए थे। राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र व मप्र के नमूनों में उच्च संदूषण था, जबकि उप्र, केरल, झारखंड व बिहार में कम प्रतिशत था। उच्च नाइट्रेट स्तर शिशुओं में ब्लू बेबी सिंड्रोम जैसी स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करता है।
फ्लोराइड और आर्सेनिक प्रदूषकों के संपर्क में लंबे समय तक रहने वालों की सेहत पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जिसमें कैंसर व त्वचा के गहरे घाव शामिल हैं। राजस्थान व पंजाब के नमूनों में यूरेनियम की मात्रा अधिक पायी गई, जिसके संपर्क से गुर्दे की क्षति हो सकती है।
भूजल में ये विषाक्तता रोकने के तत्काल प्रयास किए जाने जरूरी हैं। जल से होने वाले संक्रमणों व कैंसर तथा गुर्दे के गंभीर रोगों की चपेट में आने वालों या इनके चलते अल्पायु में ही मौत की बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार को फौरन चेत जाना चाहिए। अभी भी देश के प्रत्येक नागरिक को शुद्ध जल मुहैया करवाने के प्रति सरकार तनिक भी जागरूक नहीं है।विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार लगभग अस्सी फीसद रोगों का कारण जल है। पर्यावरण प्रदूषण का असर जल पर भी पड़ता है।
औद्योगिकीकरण तथा अपशिष्टों का उचित निपटान न होने से भूमि व जल दोनों ही बुरी तरह प्रभावित होते हैं। तकरीबन बीस राज्यों के ढाई करोड़ लोग प्लोरोसिस से ग्रस्त हैं।विश्व की आधी आबादी के लिए सुरक्षित पेय जल न होना खतरे की घंटी है।
यह सरकार की बड़ी जिम्मेदारी है कि वह समय रहते नागरिकों के स्वास्थ्य व उनके लंबे जीवन के लिए पीने के पानी की उचित व्यवस्था करे। कृषि कार्य के लिए प्रयोग तथा पशुओं के लिए किए जा रहे जल की गुणवत्ता को सुधारे बगैर इन समस्याओं से निजात नहीं पाई जा सकती।
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