ठंडी नहीं हुई है आग

Last Updated 02 Jan 2025 12:19:37 PM IST

मणिपुर में पिछले दिनों जो भी भयावह घटा, जिस तरह से दो मुख्य समुदायों मेइती और कुकी के बीच खुली झड़पें हुई, हत्या, रेप और आगजनी की घटनाओं के बाद पलायन-विस्थापन हुआ उसने समूचे भारतीय लोकतंत्र को झकझोर दिया था।


ठंडी नहीं हुई है आग

प्रदेश की बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को इस डरावनी हिंसा पर नियंत्रण न कर पाने के लिए प्राथमिक तौर पर जिम्मेदार ठहराया जाना था, ठहराया भी गया। एक सहज सवाल जिस तरह जिंदा था, वह आज भी जिंदा है कि आखिर, प्रदेश और केंद्र की शक्तिमान मोदी सरकार हिंसा पर लगाम क्यों नहीं लगा सकीं। इसका एक उत्तर यह है कि वहां की घटनाएं कानून व्यवस्था की सामान्य घटनाएं नहीं थीं।

दो समुदायों के बीच उनके तमाम आर्थिक हित-अहित के बावजूद पहचानगत विद्वेष से जन्मी घटनाएं थीं। दुनिया में जिस तरह से विभिन्न समुदायों के बीच पहचानगत दुराग्रहों को लेकर टकराहटें बढ़ रही हैं, उसी का उदाहरण मणिपुर में मिलता है। तिस पर इस सीमांत राज्य में घुसपैठ, हथियारों और मादक पदाथरे की तस्करी आदि  राज्येतर शक्तियों का भी खासा प्रभाव रहा है। याद रखना चाहिए कि जिन्हें डीपस्टेट कहा जाता है वे शक्तियां, जो आंतरिक भी हो सकती हैं और देश के बाहर भी, पहचानगत टकराहटों का फायदा उठाती हैं।

मणिपुर में यह खेल शातिर तरीके से खेला गया। पहचानगत टकराहटों के बीच अनेकानेक शक्तियों के हित भी शामिल हों तो किसी भी लोकतांत्रिक राज्य के लिए इन पर काबू पाना आसान नहीं होता। इस समय तो और भी नहीं जब संलिप्त कोई समूह अपनी आस्था के केंद्रों की पहचान सीमा पार के समूहों के साथ करता है। अब वहां की स्थितियां काफी नियंत्रित हो गई हैं। शायद इसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए और पुन: वैधता प्राप्त करने के लिए मुख्यमंत्री सिंह ने क्षमा याचना की हो।

बहरहाल, मुख्यमंत्री की नये वर्ष के शुभारंभ पर शांति की अपील के कुछ सार्थक परिणाम मिलते हैं तो इसका औचित्य सिद्ध होगा। फिर भी न राज्य और न केंद्र सरकार हालात में तात्कालिक सुधार को लेकर निश्चिंत हो सकती हैं। पहचानगत समस्याओं का हल गहरी समझदारी, राजनीतिक कौशल और दोनों समुदायों के बीच पारस्परिक सहकार के समुचित सूत्रों को मजबूत करके ही प्राप्त किया जा सकता है। मणिपुर की आग धधक भले ही न रही हो लेकिन सुलग अब भी रही है। भविष्य यह निर्धारित करेगा कि केंद्र और राज्य की सरकार इसे पूर्णत: बुझाने में किस तरह और कब तक सफल होती हैं।



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