सरकारी और निजी अस्पतालों पर सख्ती है जरूरी
दुष्कर्म, तेजाब हमले, यौन उत्पीड़न की शिकार नाबालिग या इस तरह के अन्य अपराधों से पीड़िताओं को सरकारी या निजी अस्पताल इलाज से मना नहीं कर सकते।
सरकारी और निजी अस्पतालों पर सख्ती है जरूरी |
दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने महत्त्वपूर्ण फैसले में यह निर्देश देते हुए स्पष्ट किया कि ऐसा न करने पर आपराधिक कार्रवाई का सामना करने को तैयार रहें। अदालत ने कहा कि कानून होने के बावजूद पीड़िताओं को मुफ्त चिकित्सा हासिल करने में मुश्किलें आती हैं।
किसी चिकित्सा सुविधा संस्थान, जांच प्रयोगशाला, नर्सिग होम, अस्पताल, स्वास्थ्य क्लीनिक, चाहे सरकारी हो या निजी, से इस तरह की पीड़िताएं संपर्क करती हैं तो उन्हें मुफ्त उपचार के बिना लौटाया नहीं जा सकता। अदालत ने इंकार को अपराध बताते हुए सभी डॉक्टरों, प्रशासन, अधिकारियों, नसरे, पैरामेडिकलकर्मियों को इस विषय में सूचित करने का निर्देश भी दिया। आपातस्थिति में अस्पताल लाई गई पीड़िता का परिचयपत्र की मांग न करने को भी कहा।
नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार देश में प्रति दिन तकरीबन रेप के 86 मामले दर्ज होते हैं। हर बीसवें मिनट में एक औरत के साथ रेप हो रहा है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि रेप का प्रयास, गंभीर दैहिक आघात, छेड़छाड़, किडनैपिंग, एसिड अटैक जैसी घटनाओं की संख्या बहुत ज्यादा है। सख्त कानूनों के बावजूद मासूम बच्चियों से लेकर उम्रदराज महिलाओं तक को सुरक्षा देने में देश बुरी तरह नाकाम है।
उस पर पीड़ितों के आपात इलाज में अड़ंगे डालने वाले भी कम नहीं हैं। यौन अपराधों को पुलिस का मामला बता कानूनी झमेलों से बचने के लिए अस्पतालों द्वारा स्पष्ट मना किया जाना आम है। महिलाओं के खिलाफ यौन हमले जितनी यातनाएं देते हैं, उससे कहीं ज्यादा इलाज के दौरान होने वाली लापरवाही की वे भेंट चढ़ जाती हैं।
महिला एवं बाल मंत्रालय तथा स्वास्थ्य मंत्रालय को राज्यों को इस विषय में सख्त निर्देश देने चाहिए कि पीड़िताओं को तत्काल इलाज मुहैया कराया जाए। मानसिक आघात से जूझ रही पीड़िता और उसके परिवार के साथ उपेक्षापूर्ण बर्ताव न किया जाए।
कानूनी झमेलों में बचने के भय के अलावा पैसों के लोभ में तत्काल इलाज देने में आपराधिक कार्रवाई करने में कोताही कतई न बरती जाए। यह पीड़िताओं की जिंदगी भर का मामला होता है, इसलिए उनके इलाज के प्रति पूर्ण सतर्कता बरती जानी बेहद जरूरी है।
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