फिर बिगड़ी आबोहवा
दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण का स्तर खतरनाक हो चुका है। औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक के 400 का आंकड़ा पार करते ही ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान यानी ग्रैप के चौथे चरण को लागू कर दिया गया।
फिर बिगड़ी आबोहवा |
इसके तहत कई क्षेत्रों में प्रतिबंध लागू हो गए, जिनमें राजमागरे/फ्लाईओवरों जैसी सार्वजनिक परियोजनाओं के निर्माण, तोड़-फोड़ पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा।
उद्योगों में प्रदूषणकारी गतिविधियों पर रोक व डीजल वाहनों के संचालन पर सख्ती के साथ ही बेहद जरूरी सामान लाने वाले ट्रकों के अतिरिक्त अन्य ट्रक राजधानी में प्रवेश नहीं कर सकते। विशेषज्ञों के अनुसार खराब मौसमी स्थिति तथा हवा के बिल्कुल शांत होने के कारण प्रदूषण स्तर इस कदर बढ़ा है।
इस दरम्यान दिल्ली समेत नोएडा, फरीदाबाद, गाजियाबाद गुरुग्राम में छात्रों के लिए पढ़ाई हाईब्रिड मोड में होगी यानी फिजिकल व ऑनलाइन दोनों तरीकों का उपयोग किया जा सकता है। सभी स्कूलों को सरकार की तरफ से छात्रों की उपस्थिति की बाध्यता समाप्त करने के निर्देश हैं।
सरकारी कार्यालयों में पचास फीसद कर्मचारी उपस्थित रहेंगे, शेष घर से काम करेंगे। हवा के इस खतरनाक स्तर को लेकर प्रतिवर्ष इसी तरह हल्ला मचाया जाता है। सरकार की तरफ से इस स्थिति से निपटने के कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते। 2016 के बाद के सिर्फ दो वर्षो में ही गंभीर दिनों की संख्या इकाई में रही है।
मौसम की इस भयावह स्थिति की सबसे बड़ी कीमत निचले व कमजोर वर्ग को चुकानी पड़ती है। सरकार की लापरवाही और पर्यावरण मंत्रालय को लीपापोती की बजाए ठोस कदम उठाने के प्रयास होने चाहिए। ग्रैप के चौथे चरण के लागू होते ही दिहाड़ी मजदूरों, मेहनतकशों, ट्रक ड्राइवरों व डीजल वाहन चालकों के लिए जो मुश्किलात खड़ी होती हैं, उन पर तो कोई चर्चा ही नहीं होती।
छात्रों के लिए सुचारू पढ़ाई में व्यवधान के अतिरिक्त आम जनता को होने वाली स्वास्थ्यगत समस्याओं के प्रति सरकारी उपेक्षा इस वायु प्रदूषण से अधिक खतरनाक है। शीर्ष अदालत द्वारा स्वच्छ व प्रदूषणमुक्त वातावरण में रहना नागरिकों का मौलिक अधिकार बताए जाने के बावजूद सरकारी रवैया बेहद शर्मनाक है।
देश में प्रतिवर्ष सिर्फ प्रदूषण के कारण बीस लाख से अधिक मौतें हो रही हैं। इनकी जिम्मेदारी कौन लेगा। अक्टूबर, नवम्बर और दिसम्बर में वायु प्रदूषण के स्तर को संभालने के प्रति अतिरिक्त जागरूकता और पुख्ता कदम उठाने की जरूरत है।
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