‘महायुति’ में जोरआजमाइश

Last Updated 02 Dec 2024 01:50:31 PM IST

महाराष्ट्र की ‘महायुति’ सरकार का शपथ ग्रहण 5 दिसम्बर को होगा। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी मौजूद रहेंगे।


23 नवम्बर को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के इतने दिनों बाद अभी तक नये मुख्यमंत्री के शपथ न ले सकने पर अटकलबाजियों का बाजार भी गरम है। हालांकि इतना तय है कि मुख्यमंत्री भाजपा का होगा और देवेंद्र फड़णवीस मुख्यमंत्री की दौड़ में आगे चल रहे हैं। इस बीच, कार्यकारी मुख्यमंत्री और शिवसेना (शिंदे) के नेता एकनाथ शिंदे के अचानक स्वास्थ्य संबंधी कारणों से अपने पैतृक गांव चले जाने से यह भी लगता है कि महायुति में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा।

महायुति के घटक दल भाजपा, शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (अजित पवार) के बीच बताया जाता है कि भाजपा को मुख्यमंत्री पद और उपमुख्यमंत्री के दो पद, जिनमें से एक-एक पद शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (अजित पवार) को दिए जाने पर मुहर लग चुकी है। तो शिंदे का एकाएक अपने गांव चले जाने को क्या समझा जाए? दरअसल, संख्या बल के मद्देनजर मुख्यमंत्री पद पर शिंदे दावा करने की स्थिति में नहीं हैं।

हालांकि उनके पक्ष के कुछ विधायकों ने यह कहकर मामले को गरमाने की कोशिश जरूर की कि चुनाव उनके चेहरे पर लड़ा गया था और उनकी कुछ योजनाओं ने मतदाताओं को खासा प्रभावित किया जिससे महायुति के पक्ष में जनादेश आया। यह भी कहलवाया गया कि मुख्यमंत्री पद पर ओबीसी को लाया जाए। ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री पद पर रहने का प्रस्ताव भी शिंदे के एक विधायक ने रखा था।

लेकिन शिंदे को इतना साफ हो गया है कि भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री पद से नहीं नवाजने वाली। उस सूरत में तो कतई नहीं जब अजित पवार के समर्थन से बहुमत का आंकड़ा जुटाने की स्थिति में है।

दरअसल, शिंदे की कोशिश है कि मुख्यमंत्री पद नहीं तो कुछ महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों पर काबिज हुआ जाए। इससे एक तो उन्हें अपने दल को एकजुट बनाए रखने में मदद मिलेगी और दूसरे, अपने मतदाता वर्ग को भी अपने साथ जोड़े रखने में मदद मिलेगी।

शिवसेना (उद्धव) से भविष्य में मिल सकने वाली चुनौती से निश्चिंत होने के लिए शिंदे के लिए जरूरी है कि अपने मतदाता वर्ग और विधायकों को एकजुट रखते हुए अपनी पार्टी को मजबूत बनाए रखें। बहरहाल, शिंदे के सामने ज्यादा विकल्प नहीं हैं। भाजपा के पास सीएम पद रहना तय है। शिवसेना और एनसीपी (अजित) से 1-1 डिप्टी सीएम हो सकते हैं। इस बीच, घटक दलों में जोरआजमाइश जारी रहेगी।



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