दिल्ली प्रदूषण : बदलनी होगी दिल्ली की ‘हवा’
दिल्ली में प्रदूषण वाकई में डारावनी शक्ल अख्तियार किए हुए है। पिछले महीने से हवा की ‘खराब’ और ‘अत्यंत खराब’ श्रेणी की गुणवत्ता से हर कोई हलकान है। वैसे यह दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के लिए नई बात नहीं है।
दिल्ली प्रदूषण : बदलनी होगी दिल्ली की ‘हवा’ |
प्रदूषण के कहर से यहां के रहवासी वर्षो से परेशान-हलकान रहे हैं। हास्यास्पद यह कि तमाम उपायों पर हर साल गंभीर बहस होने के बावजूद इस दिशा में रत्ती भर भी बेहतरी नहीं हुई है। कभी पराली को प्रदूषण का दोषी माना जाता है तो कभी पटाखों को तो कभी वाहन को। इसी तरह कभी ग्रैप लागू करने की कवायद होती है तो कभी ‘सिग्नल ऑन, गाड़ी ऑफ’ का शिगूफा छोड़ा जाता है।
आलम यह है कि दिल्ली व उससे सटे एनसीआर यानी नोएडा, गाजियाबाद और ग्रेटर नोएडा में रहने वाले ज्यादातर लोगों को सर्दी, खांसी और बुखार जैसी समस्याएं होने लगी है। इस समय हर कोई जहरीली हवा में सांस लेने पर मजबूर है, जिससे उनकी तबीयत बिगड़ रही है। वायु गुणवत्ता 400 के पार जा चुकी है। दिल्ली के ज्यादातर इलाकों में वायु गुणवत्ता 300 के पार है। वहीं दूसरी तरफ यमुना प्रदूषण भी एक गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है।
स्वाभाविक है हर किसी की सेहत पर प्रदूषण का साया है। सरकार की कवायद से छिटपुट प्रदूषण कम होता है, मगर स्थायी तौर पर इससे बचाव के उपाय न तो तलाशे जाते हैं और न मुकम्मल तौर पर उपाय दिखते हैं। दिल्ली के अंदर करीब 28,500 किलोमीटर की सड़कें हैं और सड़कों से ज्यादा गड्ढे हैं। लाजिमी है कि इन गड्ढों से धूल प्रदूषण बढ़ता है। प्रदूषण के दो ही कारण हैं, एक कारण प्रकृति निर्मित है और दूसरा मानव निर्मिंत।
दिल्ली में प्रदूषण प्रमुखतया मानव निर्मिंत है, यही वजह है कि यह बहुत ज्यादा है। और जब तलक सोर्स ऑफ पॉल्यूशन को खत्म नहीं किया जाएगा तब तलक सारे उपाय धरे-के-धरे रह जाएंगे। हालांकि कमोबेश दिल्ली जैसी स्थिति हर बड़े यहां तक कि छोटे शहरों में दिखती है।
अब शायद ही कोई शहर बचा हो जहां प्रदूषण की मार नहीं पड़ती है। अदालत की नाराजगी से सरकारी मशीनरी कुछ दिनों के लिए क्रियाशील हो तो जाती है, मगर कुछ दिनों बाद हालात फिर से पहले की तरह हो जाते हैं। अगर हमें साफ-सुथरी हवा में सांस लेना है तो बिल्कुल अनुशासित तरीके से रहने की आदत सीखनी होगी। इसके बिना गुजारा संभव नहीं है।
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