ब्रिक्स का संदेश
इस सप्ताह भारत के लिहाज से सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय घटना रूस (Kazan) में आयोजित 16वीं ब्रिक्स शिखर सम्मेलन है जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय वार्ता हो रही है।
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ब्रिक्स की स्थापना 2009 में ब्राजील, रूस, भारत और चीन को मिलाकर हुई थी। बाद में दक्षिण अफ्रीका को शामिल किया गया। अमेरिका और पश्चिमी देशों के घटते वैिक प्रभाव के कारण विभिन्न महाद्वीपों के अनेक देश ब्रिक्स में शामिल होना चाहते हैं।
इन देशों को ब्रिक्स में शामिल किया गया तो यह संगठन अमेरिका के प्रभाव वाले जी-7 से भी मजबूत हो जाएगा। ऐसे में अमेरिका और पश्चिमी देशों का सशंकित होना स्वाभाविक है।
उनकी आशंका को देखकर प्रधानमंत्री मोदी को कहना पड़ा है कि ब्रिक्स पश्चिम विरोधी नहीं, बल्कि गैर-पश्चिम संगठन है। उन्होंने ब्रिक्स शिखर वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि ब्रिक्स विभाजनकारी नहीं, जनहितकारी है।
राष्ट्रपति पुतिन ने फरवरी 2024 में अमेरिका के जाने-माने न्यूज एंकर टकर कार्लसन को दिए अपने साक्षात्कार में ब्रिक्स देशों की बढ़ती ताकत का जिक्र किया था तथा अपनी अध्यक्षता के दौरान इसकी भूमिका की भी चर्चा की थी।
पुतिन ने ब्रिक्स के एजेंडे को व्यापक रूप देने का प्रस्ताव दिया है। इसमें ब्रिक्स देशों के बीच अमेरिकी डॉलर की हिस्सेदारी कम करने के लिए नई मुद्रा का प्रचलन करना बहुत जटिल और दुरूह प्रक्रिया है।
इसी बात को ध्यान में रखकर स्थानीय मुद्रा यानी विभिन्न देशों की राष्ट्रीय मुद्राओं में लेन-देन की व्यवस्था लागू करना शामिल है। लेकिन कुछ अथरे में यह मुद्दा भारत के लिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वह रूस से बड़ी मात्रा में कच्चे तेल का आयात कर रहा है।
रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंधों के कारण लेन-देन की समस्या पैदा हो रही है। यही संभावना है कि बुधवार को कजान में जारी घोषणापत्र में कोई ठोस भुगतान प्रणाली कायम करने की घोषणा हो जाएगी।
अगर बाद में सदस्य देशों के बीच कोई सहमति बन पाती है, तो अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में पश्चिमी देशों को मजबूत चुनौती मिल सकती है।
रूस में हो रही ब्रिक्स शिखर वार्ता नई विश्व व्यवस्था का शिलान्यास साबित हो सकती है। अब ब्रिक्स नेताओं को चट्टान जैसी संकल्पशक्ति का प्रदर्शन करना चाहिए।
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