पूछताछ में समझदारी जरूरी
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने परिपत्र जारी करके अपने अधिकारियों खासकर जांच अधिकारियों को निर्देश दिया है कि समय पर बुलाए गए लोगों से ‘बेवक्त’ पूछताछ न करें और उन्हें कार्यालय में घंटों इंतजार न कराया जाए।
![]() प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) |
परिपत्र बंबई उच्च न्यायालय के उस निर्देश के आलोक में जारी किया गया है, जो अदालत ने 64 वर्षीय एक याचिकाकर्ता की सुनवाई के दौरान दिया था। याचिकाकर्ता ने अदालत में बताया था कि ईडी ने उसे तलब करके रात भर हिरासत में रख कर पूछताछ की।
उच्च न्यायालय ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा कि एजेंसी के इस कृत्य से उस व्यक्ति की नींद बाधित हुई जो उसका बुनियादी मानवाधिकार है। ईडी का यह कृत्य अस्वीकार्य है, और उसे अपने अधिकारियों को निर्देश देना चाहिए कि धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 50 के तहत समन जारी करने के बाद किसी को बयान दर्ज करने बुलाया जाए तो वक्त-बेवक्त का ध्यान रखा जाए। हाल के वर्षो में एजेंसियों की पूछताछ को लेकर ऐसे संकेत गए हैं कि पूछताछ के नाम पर आरोपी का उत्पीड़न किया जाता है।
विपक्ष इस बात को काफी जोर-शोर से उठाता भी रहा है कि जांच एजेंसियों को उत्पीड़न का जरिया बना दिया गया है जबकि एजेंसियां कानून के दायरे में रहकर काम करती हैं। किसी को परेशान करने जैसे आरोप अतिरेकी प्रतीत होते हैं, लेकिन ईडी समेत तमाम जांच एजेंसियों को भी ध्यान में रखना चाहिए कि उनकी एक विसनीयता और रुतबा है जिस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता।
हालिया वर्षो में विपक्ष ने खासा मुखर होकर आरोप लगाए हैं कि उसके नेताओं और कार्यकर्ताओं के खिलाफ फर्जी मामले दर्ज करके जांच एजेंसियों के जरिए उत्पीड़न कराया जा रहा है। मजे की बात यह कि विपक्ष की किसी पार्टी से जुड़ा कोई आरोपी जमानत पर बाहर आता है, तो समझाया जाने लगता है कि जेल से छोड़ा जाना ही बेगुनाही का सबूत है जबकि ऐसा कतई नहीं है।
क्योंकि जमानत पर बाहर आने का अर्थ कदापि यह नहीं है कि व्यक्ति को आरोप-मुक्त कर दिया गया है। जब इस प्रकार से विमर्श चलाए जाने का माहौल बन गया हो तो एजेंसियों के लिए जरूरी हो जाता है कि अपना आचरण विवेकपूर्ण बनाए रखें। ऐसा न लगे कि पूछताछ के लिए बुलाए गए व्यक्ति का उत्पीड़न किया जा रहा है जबकि हकीकत में ऐसा कतई नहीं होता।
Tweet![]() |