भारत-चीन : कूटनीतिक प्रयास का असर
सेंट पीटर्सबर्ग में 12 सितम्बर को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल (Ajit Dobhal) और उनके चीनी समकक्ष वांग यी (Wang Yi) के बीच हुई बातचीत के बाद चीन के रक्षा मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि दोनों देशों ने पूर्वी लद्दाख में विवादित स्थलों से अपने सैनिकों को हटाने के लिए सहमति बनाई है।
कूटनीतिक प्रयास का असर |
इस दिशा में आगे भी बातचीत जारी रहेगी। 2020 में पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में दोनों देशों के बीच सैनिक झड़पें हुई थी। इसके बाद से दोनों पक्षों के बीच विवादित मुद्दों को लेकर बातचीत जारी है।
कूटनीति स्तर पर बातचीत का ही परिणाम है कि 2020 के घटनाक्रम के बाद पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों की सेवा की तैनाती के बावजूद सीमा पर सामान्य रूप से शांति कायम है।
दोनों देश हिंसक वारदात की पुनरावृत्ति रोकने के लिए तत्पर दिखाई देते हैं। 2022 के नवम्बर में इंडोनेशिया के बाली में प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय संबंधों और सीमा पर स्थिरता बनाए रखने के बारे में चर्चा हुई थी।
अगले महीने 22 से 24 अक्टूबर तक रूस में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन होने जा रहा है जिसमें प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय वार्ता की संभावना जताई जा रही है।
इस बैठक के पहले दोनों पक्ष ऐसा वातावरण बनाना चाहते हैं कि मोदी और शी जिनपिंग आपसी रिश्तों को सुधारने की दिशा में ठोस कदम उठाएं।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मंगलवार को न्यूयॉर्क के एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के कार्यक्रम में कहा कि भारत चीन संबंधों का असर न केवल एशिया बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ेगा।
संबंधों में प्रगति के लिए सबसे पहले सीमा पर शांति बहाल करना जरूरी है। जयशंकर का विश्वास है कि अगर एशिया को बहुध्रुवीय बनाना है तो भारत चीन संबंध इसमें अहम भूमिका निभाएगी।
चीन का शीर्ष नेतृत्व यदि बुद्धिमता का परिचय दे तो संबंधों को फिर पटरी पर लाया जा सकता है। जयशंकर यह बार-बार स्पष्ट कर चुके हैं कि द्विपक्षीय संबंधों को पटरी पर लाने के लिए सीमा से सेना को पीछे हटना हटाने तथा शांति एवं सामान्य स्थिति कायम रखना एक आवश्यक शर्त है।
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