मुलाकात के निहितार्थ

Last Updated 26 Sep 2024 01:19:05 PM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तीन दिवसीय अमेरिका यात्रा का समापन यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के साथ मुलाकात के साथ हुआ। दोनों नेता पिछले तीन महीने में तीसरी बार मिले।


मुलाकात के निहितार्थ

जाहिर है कि भारत रूस-यूक्रेन संघर्ष की समाप्ति की कोशिश में लगा है। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जेलेंस्की के बीच रूस-यूक्रेन विवाद पर ही चर्चा हुई होगी लेकिन मोदी ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया जिससे पता चल सके कि शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की क्या योजना है। हालांकि यूक्रेन की ओर से यह संकेत अवश्य मिल रहा है कि वह अगला शांति सम्मेलन भारत में कराने के पक्ष में है। लेकिन यूक्रेन के इस प्रस्ताव पर भारत का रुख अभी स्पष्ट नहीं है।

प्रधानमंत्री मोदी इस शांति प्रक्रिया में भारत की भूमिका को लेकर फूंक-फूंक कर कदम उठा रहे हैं। रूस-यूक्रेन संघर्ष पर पिछले दिनों स्विटजरलैंड में शांति सम्मेलन हुआ था। उसका कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया क्योंकि इस संघर्ष में शामिल एक पक्ष रूस इस शांति सम्मेलन में शामिल नहीं हुआ। भारत इसमें शामिल अवश्य हुआ था लेकिन सम्मेलन की समाप्ति के बाद जो संयुक्त विज्ञप्ति जारी हुई थी उस पर उसने हस्ताक्षर नहीं किए। भारत चाहता है कि अगर नई दिल्ली में शांति सम्मेलन हो तो उसमे रूस और यूक्रेन, दोनों शामिल हों। यह बहुत स्वाभाविक है कि किसी भी ऐसे शांति सम्मेलन में जब तक युद्धरत दोनों पक्ष शामिल नहीं होंगे तब तक इसका कोई औचित्य नहीं है।

प्रधानमंत्री मोदी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति से मुलाकात के दौरान अपनी इस बात को दोहराया कि भारत रूस-यूक्रेन के संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान के लिए जो भी संभव होगा वह करेगा। वस्तुत: इस संघर्ष के दूसरे देशों विशेषकर विकासशील और गरीब देशों पर पड़ने वाले कुप्रभावों को लेकर भी भारत चिंतित है। दशकों पहले भारत तीसरी दुनिया की अगुवाई करने वाला प्रमुख देश था। ग्लोबल साउथ का नेता कौन होगा, इसे लेकर भारत और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा हो रही है। एक लोकतांत्रिक और मुक्त समाज के रूप में भारत की दावेदारी पुख्ता है। पिछले दिनों चीन ने भी रूस-यूक्रेन संघर्ष को समाप्त करने के लिए पहल की थी। विकास यात्रा में भारत भले ही चीन से पीछे है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर की कूटनीतिक सक्रियता के कारण भारत के प्रभाव में बढ़ोतरी हो रही है। देखा जाना है कि आने वाले कुछ महीनों में शांति प्रक्रिया में भारत की भागीदारी के क्या नतीजे सामने आते हैं।



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