मासूमों की खातिर बंद की गई चाइल्ड पोर्नोग्राफी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना, स्टोर करना और देखना पोस्को और आईटी के तहत अपराध है। ‘
मासूमों की खातिर |
बच्चों के साथ यौन शोषण और अश्लील सामग्री’ करने पर विचार करना चाहिए। पॉस्को एक्ट में संशोधन के लिए संसद को कानून लाने को भी कहा। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले को पलटते हुए यह कहा जिसमें कहा गया था कि केवल बाल पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और देखना पॉस्को अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी कानून के अपराध नहीं है, जब तक कि नीयत इसे प्रसारित करना न हो।
शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के फैसले को अत्याचारपूर्ण बताते हुए उसे चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति जताई थी जिसके खिलाफ अपने मोबाइल पर बाल पोर्नोग्राफी सामग्री डाउनलोड करने का आरोप था। इससे पहले केरल हाई कोर्ट ने भी सितम्बर, 2023 में कहा था कि अगर कोई शख्स अश्लील फोटो या वीडियो देख रहा है, तो यह अपराध नहीं है, जब तक वह इसे दूसरे को न दिखाए।
जबकि अप्रैल में इसी मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बच्चे का पोर्न देखना शायद अपराध न हो लेकिन पोर्नोग्राफी में बच्चे का इस्तेमाल होना अपराध है। पीठ ने अपने फै सले में इन धाराओं के तहत पुरुषों के दोषी कृत्य निर्धारित किए जाने की बात भी की। पॉस्को एक्ट की धारा 15(1) के अनुसार बच्चों से जुड़े अश्लील कंटेंट को न हटाने, नष्ट न करने या उसकी जानकारी न देने पर भी सजा का प्रावधान है।
अदालत ने सरकार को सुझाव दिया कि वह विशेषज्ञों की कमेटी बना सकती है जो सेक्स एजूकेशन का सिस्टम तैयार करे। साथ ही, अदालत ने स्कूलों को भी सलाह दी कि वे कम उम्र में ही बच्चों को प्ॉास्को कानून के विषय में बताएं।
सारी दुनिया के विशेषज्ञ चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखने और प्रसारित करने वालों से जूझ रहे हैं। इसे लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की जाती रही है। जब तक मासूमों को गोपन अंगों, अश्लील हरकतों या यौन शोषण के प्रति जागरूक नहीं किया जाता, वे अनभिज्ञ बने रहेंगे। अपराधी प्रवृत्ति के लोग उनकी मासूमियत से यूं ही खिलवाड़ करते रहेंगे।
दोषियों को सजा देने की प्रवृत्ति की बजाय बच्चों की सुरक्षा पर खास ख्याल रखना सीखना होगा। जरूरत है कानून और नैतिक प्रभाव पर विशेष तवज्जो दिए जाने की।
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