पीएम मोदी की बेमानी यूक्रेन यात्रा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ‘शांति दूत’ बनकर अगले सप्ताह यूक्रेन जाने वाले हैं। इस यात्रा की अभी आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन विभिन्न सूत्रों के अनुसार मोदी की यूक्रेन और पोलैंड यात्रा 21 से 23 अगस्त तक प्रस्तावित है।
![]() बेमानी यूक्रेन यात्रा |
इस यात्रा के कार्यक्रम की तैयारी पिछले कई सप्ताह से हो रही थी। इस सिलसिले में भारत अमेरिका और रूस सहित कई देशों के साथ संपर्क में था। लेकिन यूक्रेन के राष्ट्रपति बोलोदिमिर जेलेंस्की के गैर-जिम्मेदाराना रवैये के कारण इस यात्रा पर ग्रहण लग गया है। बदले हुए हालात में मोदी को इस यात्रा पर जाना भी चाहिए इस पर सवालिया निशान लग गया है।
अमेरिकी मीडिया में इस आशय के समाचार प्रकाशित हुए हैं कि रूस और यूक्रेन, दोनों एक सीमित युद्ध-विराम पर सहमति बनाने के लिए कतर की राजधानी दोहा में वार्ता करने के लिए तैयार थे। प्रतीत होता है कि इसी संभावना के मद्देनजर मोदी ने यूक्रेन यात्रा पर जाने का फैसला किया हो। लेकिन हाल में जेलेंस्की ने रूस के कुर्स्क क्षेत्र में हमला करके संभावित शांति प्रयास पर पानी फेर दिया। रूस की अब यह निश्चित राय है कि जेलेंस्की अमेरिका और नाटो, दोनों की शह पर युद्ध का विस्तार करने पर आमादा हैं। मोदी अपनी यात्रा से कुछ हासिल कर पाएंगे इसमें संदेह है। एक खतरा यह भी है कि भारत अपने भरोसेमंद मित्र देश रूस की नाराजगी मोल ले सकता है।
अमेरिकी अधिकारियों ने दोहा वार्ता के संबंध में मीडिया को अनौपचारिक रूप से बताया था कि रूस और यूक्रेन के अधिकारी संभावित बैठक में सीमित युद्ध-विराम पर चर्चा करने वाले थे। वार्ता की मेज पर समझौते का एक प्रारूप था जिसमें दोनों देश एक दूसरे के ऊर्जा प्रतिष्ठानों पर हमला नहीं करने पर सहमति बनाने वाले थे। संघर्ष के दौरान रूस ने यूक्रेन के बिजलीघरों को मिसाइलों से निशाना बनाया था। दूसरी ओर, यूक्रेन ने रूस के तेल प्रतिष्ठानों और तेलशोधक संयंत्रों पर ड्रोन से हमले किए थे।
दोहा वार्ता यदि सफल होती तो इससे दोनों देशों को राहत मिलती तथा भविष्य में स्थायी युद्ध विराम के पक्ष में माहौल बन सकता था। अब कुर्स्क क्षेत्र में हमले के बाद परिस्थितियां पूरी तरह से बदल गई हैं। हालांकि अभी भी समय है कि मोदी अपनी यूक्रेन यात्रा को रद्द कर दें। यदि वह यात्रा पर जाते हैं तो अपने शांति प्रयासों को सीमित कर दें तथा द्विपक्षीय संबंधों पर ही ध्यान दें। मोदी के दोनों गंतव्य देश यूक्रेन और पोलैंड रूस के खिलाफ नाटो के मंसूबों के मोहरे हैं। अच्छा तो यह होता कि मोदी अपने यात्रा कार्यक्रम में हंगरी को शामिल करते जो इस संघर्ष में संतुलित नीति अपना रहा है।
यूक्रेन संघर्ष समाप्त करने के लिए दोनों पक्षों ने जो शांति प्रस्ताव रखे हैं, उनमें जमीन आसमान का अंतर है। इस खाई को पाटना भारत जैसे देश के लिए संभव नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी कितनी भी सदइच्छा रखे, वह जेलेंस्की और राष्ट्रपति पुतिन को शांति के लिए राजी नहीं कर सकते। जेलेंस्की की मांग है कि रूस अपनी सेनाएं यूक्रेन से पूरी तरह हटाए। दूसरी ओर रूस की मांग है कि यूक्रेन डोनबास सहित चारों प्रांतों पर उसका अधिकार स्वीकार करे। वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन सहित पश्चिमी देशों के नेता रूस की रणनीतिक हार के एजेंडे पर काम कर रहे हैं। हकीकत यह है कि मोदी की शांति पहल की असफलता की इबारत यूक्रेन यात्रा शुरू होने के पहले ही लिख दी गई है। बांग्लादेश में अमेरिका और पश्चिमी देशों ने जो हरकत की उससे भी भारत क्षब्ध है। जब पश्चिमी देश पड़ोस में ही भारत के हितों की अनदेखी कर रहे हों तो इन हालात में एक यूरोपीय संघर्ष में भारत की शांति पहल का कोई औचित्य नहीं है। खासकर ऐसे समय जब यूक्रेन नाटो के हथियारों के बलबूते युद्ध क्षेत्र में रूस को हटाने का दिवास्वप्न देख रहा हो।
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