ओलंपिक की खट्टी-मीठी यादें
पेरिस ओलंपिक 2024 में एक रजत और पांच कांस्य पदक के साथ कुल छह पदकों के साथ भारतीय दल खट्टी-मीठी यादों के साथ वापस लौट आया। 1 अरब 40 करोड़ की विशाल आबादी वाले देश के लिए वाकई यह संख्या और प्रदर्शन कमतरी का अहसास तो कराती है।
खट्टी-मीठी यादें |
हालांकि 2008 के बीजिंग ओलंपिक के बाद से हमने विश्व के सबसे बड़े खेल मंच पर अपनी दमदारी दिखाई है, किंतु अभी भी हमें काफी कुछ पाना है। हमें कांस्य पदक से आगे सोचना होगा, हमें पदकों की भूख जगानी होगी। और यह सब सिर्फ लगन और जिद से हासिल हो सकता है। कई लोगों की प्रतिक्रिया आई कि सरकार ने ओलंपिक के लिए काफी सारा धन खर्च किया, मगर पदक पैसे से नहीं बल्कि खून, पसीना, आंसू, कड़ी मेहनत और स्थिरता से आती है।
नि:संदेह सरकार ने 470 करोड़ रुपए खर्च किए और इसका नतीजा पदक तालिका में भले ही नहीं दिखता हो मगर हमने पूरी दुनिया को यह जता दिया कि भारत आने वाले वर्षो में खेल का सिरमौर बनेगा। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हमने प्रदर्शन में लगातार सुधार किया है। हमारे एथलीट अब ज्यादा इवेंट में क्वालिफाई कर रहे हैं। यह छोटी बात नहीं है। बस हमें अपने प्रदर्शन को स्थिर रखना होगा।
ठीक है कि हम पिछले टोक्यो ओलंपिक में 48वें स्थान पर थे और हमने एक सोना भी जीता था, किंतु दुनिया यहीं खत्म नहीं हो जाती। यह भी हुआ कि हमारे छह खिलाड़ी विभिन्न खेल में चौथे स्थान पर रहे।
विनेश फोगाट के साथ हुई घटना ने भी हमारे पदक को कम किया। बहरहाल, हमें अब उन बिंदुओं पर या कहें कमजोर कड़ी को मजबूती देनी होगी, जो हमें हतोत्साहित करे हैं। मसलन, महिला कुश्ती खिलाड़ियों के साथ जो कुछ हुआ, उससे स्वाभाविक रूप से खिलाड़ियों का मनोबल औंधे मुंह गिरा।
दूसरा, हमें बुनियादी सुविधाओं और आधारभूत संरचनाओं को बेहतर करना होगा। जमीनी स्तर पर खिलाड़ियों की प्रतिभा परखनी होगी और उन्हें बेहतर माहौल देना होगा। सिर्फ पंजाब और हरियाणा के खिलाड़ी ही क्यों, सभी जगहों खासकर गांव से उन प्रतिभाशाली बच्चों को सामने लाना होगा।
खेल संस्कृति बनानी होगी। चूंकि ओलंपिक में अभी 4 साल का लंबा वक्त है तो सरकार और खिलाड़ियों को अभी से इस पर जी-जान से जुट जाना होगा। नि:संदेह आने वाला वक्त हमारा होगा।
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