पाकिस्तान को देर से समझ आई
पाकिस्तान के लाहौर समझौते के उल्लंघन को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की टिप्पणी के गहरे मायने हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई व उनके दरम्यान 1999 में हुए समझौते के उल्लंघन को उन्होंने पाक की गलती माना।
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ |
जो जनरल परवेज मुशर्रफ द्वारा कारगिल पर किए गए हमले से जोड़ कर देखा जा रहा है। उस पर भारत ने दो दिन बाद कहा कि पड़ोसी देश का निष्पक्ष दृष्टिकोण उभर रहा है। दोनों देशों के बीच शांति व स्थिरता के दृष्टिकोण पर बात करने वाला यह समझौता सफलता का संकेत माना गया था। शरीफ ने पाकिस्तान के 28 मई 1998 में पांच परमाणु परीक्षणों की बात भी की। पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति लगातार खराब होती जा रही है।
राजनैतिक अस्थिरता, भारत के प्रति उसका नकारात्मक नजरिया तथा आतंकवाद को प्रश्रय देने वाली उसकी नीतियों ने दुनिया के समक्ष दयनीय साबित किया है। विश्व बैंक कह रहा है कि पाक की आर्थिक स्थिति लगातार बिगड़ रही है। 2011 में पाक पर 66बिलियन डॉलर का कर्ज था। जो 2023 में 124 बिलियन डॉलर पर पंहुच गया।
नगदी संकट और उच्च महंगाई दर से जूझ रही जनता गरीबी रेखा से नीचे जा रही है। भारत के साथ सीमा विवाद, कश्मीर के बड़े हिस्से पर कब्जा व जल विवाद तो हैं ही, इनके साथ आतंकवाद सबसे बड़ा मुद्दा है। भारत के खिलाफ किये युद्धों में जबरदस्त मात खाने के बावजूद वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया।
हालांकि पाकिस्तानी हुक्मरान जानते हैं कि भारत के साथ दोस्ताना रवैया उन्हें फायदा देने वाला ही साबित होगा। मगर छिछली राजनीति और जनता को खोखली बयानबाजियों से फुसलाने से वे बाज नहीं आ रहे। भारत के खिलाफ जहर उगलने तथा आतंकवाद की आड़ लेकर दुश्मनी कायम रखने के फिलसफे से निकलने को राजी नहीं हैं। पच्चीस साल बाद गलती को स्वीकार कर नवाज अपनी राजनीति को नयी दिशा देने को तैयार होते नजर आ रहे हैं।
तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके नवाज अपने खिलाफ चल रहे अदालती मामलों की गिरफ्तारी से बचने के लिए ब्रिटेन भाग गये थे। सत्ता परिवर्तन के बाद बीते अक्टूबर में वापिस लौटे हैं। उनके तब्दील होते विचारों से संकेत मिल रहे हैं कि पाक की राजनीति जल्द ही करवट ले सकती है।
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