पंजाब मेयर चुनाव को लेकर शीर्ष अदालत की नाराजगी
चंडीगढ़ महापौर चुनाव में मतपत्रों को कथित तौर पर विरुपित करने की घटना को सर्वोच्च अदालत ने लोकतंत्र का माखौल करार देते हुए सोमवार को आदेश दिया कि मतपत्रों और चुनावी कार्यवाही के वीडियों को संरक्षित रखा जाए।
सर्वोच्च अदालत |
यह भी कहा कि मतपत्रों को विरुपित करने वाले अधिकारी पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए। साथ ही, अदालत ने नगर निकाय सहित चंडीगढ़ प्राधिकारियों को नोटिस भी जारी किए।
शीर्ष अदालत आम आदमी पार्टी (आप) के एक पाषर्द की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें चंडीगढ़ महापौर का चुनाव नए सिरे से कराने के अनुरोध पर कोई अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया गया था।
आप ने चुनाव में गड़बड़ियों का आरोप लगाया था। प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने चुनावी कार्यवाही की वीडियो देखने के बाद पूरे घटनाक्रम पर गहरी नाराजगी जताई।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि जो कुछ हुआ वह लोकतंत्र का माखौल है, जिसे देखकर हम स्तब्ध हैं। हम लोकतंत्र की इस तरह हत्या नहीं होने देंगे। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट को अंतरिम आदेश देना चाहिए था, लेकिन वह ऐसा करने में विफल रहा।
भाजपा ने 30 जनवरी को चंडीगढ़ महापौर चुनाव में कांग्रेस-आप गठजोड़ के खिलाफ जीत हासिल की थी। चुनाव में भाजपा के मनोज सोनकर ने आप के कुलदीप कुमार को हराया था। सोनकर को 16 जबकि कुमार को 12 वोट मिले थे। वहीं, 8 वोट अमान्य घोषित कर दिए गए थे।
दरअसल, जिस तरह से चंडीगढ़ में वोटों को अमान्य करार देकर गिनती की गई उससे लगने लगा था कि वास्तव में लोकतंत्र का ही मजाक बनाया जा रहा है। आप-कांग्रेस ने इसके विरोध में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सड़क पर उतर कर विरोध प्रदर्शन भी किया, लेकिन हाईकोर्ट से राहत न मिलने पर शीर्ष अदालत से गुहार लगाई गई।
शीर्ष अदालत के रुख ने तस्दीक कर दी है कि देश में कानून का शासन है, और लोकतंत्र को मनमानी तरीके से नहीं हांका जा सकता। बहुमत की अनदेखी किसी भी सूरत में उचित नहीं कही जा सकती। किसी अधिकारी को निरंकुश नहीं होने दिया जा सकता। आखिर, ध्यान इस पर भी दिया जाना चाहिए कि अधिकारी इतना मनबढ़ क्यों हुआ। इस बात की पड़ताल होनी चाहिए।
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