आबाद हुआ रघुकुल घराना

Last Updated 23 Jan 2024 01:44:33 PM IST

अयोध्यापुरी में शताब्दियों से विस्थापित भगवान राम का रघुकुल घराना ससम्मान आबाद हो गया है। राम टेंट से ‘राष्ट्रीय अस्मिता’ के अपने दिव्य-भव्य घर-प्रासाद-में आ गए हैं।


आबाद हुआ रघुकुल घराना

इसके साथ ही, पांच सदी से चले आ रहे राष्ट्रीय अपमान का सदा-सदा के लिए शांतिपूर्वक अवसान हो गया है। अयोध्या में बाबरी मस्जिद, जो राम मन्दिर का विध्वंस कर बनाई गई थी, वह पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक प्रमाणों के आधार पर न्यायिक तरीके से हिंदुओं को सौंपी गई थी, तब भी इसका व्यापक स्वागत हुआ था।

कोई गड़बड़ी नहीं हुई थी। इसलिए 22 जनवरी 2024 को मन्दिर में राम की प्रतिमा का प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में कतिपय आशंका के बावजूद आग कहीं नहीं लगी या उपद्रव कहीं नहीं हुए। स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम के शुचितापूर्ण चरित्र-व्यवहार और उनके सद्भावकारी-समन्वयकारी राम-राज के दर्शन ने पूरे आयोजन को ओत-प्रोत रखा। अयोध्या से आए ‘अक्षत-निमंत्रण’ ने सबको बुला लिया। लोक-आस्था का ऐसा उत्साह दुर्लभ था।

निकट अतीत में विराट सांस्कृतिक उत्सव का ऐसा वैश्विक प्रमाण नहीं मिलता, जहां भौगोलिक सीमाएं छोटी पड़ गई हों और एकता सार्वभौम हो गई हो। राम के जीवनचरित्र के समूचे आख्यान में यह नया रोमांचक अयोध्या कांड है। इस विनिर्माण का पथ प्रशस्त हुआ है, बाबरी विध्वंस के बाद। अगर यह न्यायालय के जरिए या उसके आदेश के साथ होता तो और बेहतर होता।

इसने एक मुस्लिम धर्मावलंबियों में वैसी कटुता बनाई, जैसी राम को मानने वालों के मन में 9 नवम्बर 2019 के सर्वोच्च फैसले तक रहती रही है, लेकिन प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के बाद यह इसे भुला कर आगे बढ़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देव राम के उदात्त चरित्र एवं राज-काज को पूरे देश से जोड़ा है, उन्हें केवल विजय का प्रतीक ही नहीं, उनके विनय को भी अपनाने की बात की है, समन्वय की बात की है, उसे देखते हुए रही-सही कटुता भी धुल-पुछ जाने वाली है।

हालांकि इस समारोह में मुसलमानों ने न्योते-बिन न्योते के जिस तरह अयोध्या गमन किया, उसे देखते हुए देश की गंगा-जमुनी संस्कृति पर रीझना पड़ता है। राम मन्दिर आंदोलन से जुड़े तमाम संप्रदायों एवं संगठनों के मुख्य लोगों की उपस्थितियों का देश ही विदेश में भी अच्छा संदेश गया है। प्रधानमंत्री एवं अन्य नेताओं का मंच से इसका पुनराख्यान महत्त्वपूर्ण है। देश इसके बाद राम के आधारों पर उनके निष्पक्ष, निर्भय एवं समतावादी राज-धर्म का पालन होते देखना चाहेगा। यही रामत्व एवं शुभत्व है।



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