सीटों पर तोल-मोल
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस व समाजवादी पार्टी के दरम्याना सीटों के बंटवारे को लेकर अंतिम दौर की बातचीत चल रही है। अगली बैठक में सपा प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस अध्यक्ष मल्किाजरुन खरगे के भी शामिल होने की उम्मीद है।
सीटों पर तोल-मोल |
कुछ बिन्दुओं को लेकर गतिरोध जारी है। उप्र में कांग्रेस, सपा, रालोद, अपना दल (कमेरावादी) मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। सपा ने रालोद को सात सीटें देने का निर्णय किया है। तृणमूल कांग्रेस के लिए भी एक सीट छोड़ने का विचार किया जा रहा है।
हालांकि पिछले चुनाव में उप्र में कांग्रेस से केवल सोनिया गांधी ही जीत पाई थीं इसलिए माना जा रह है कि प्रदर्शन के आधार पर कांग्रेस का दावा सिर्फ चार सीटों पर बनता है। रायबरेली, अमेठी, कानपुर व एक अन्य, जबकि सपा उदारता दर्शाने के संकेत दे रही रही है। वह कांग्रेस को 12 से 15 सीटें देने का मन बना रही है, पर कांग्रेस 25 सीटें चाहती है। उसका तर्क है कि सीटों का बंटवारा सपा के साथ नहीं माना जाना चाहिए बल्कि भाजपा बनाम इंडिया गठबंधन का संदेश जाना चाहिए।
बसपा प्रमुख मायावती के अकेले चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद गठबंधन के अन्य दल मिलकर भाजपा से भिड़ने पर राजी होते नजर आना चाह रहे हैं। मायावती के हाथ खींचने से भी कांग्रेस का सारा गणित गड़बड़ा गया प्रतीत हो रहा है।
बसपा को अकेले दम पिछले चुनाव में 19.26 फीसद वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस को केवल 6.31 फीसद। सपा को 17.96 फीसद वोट हासिल हुए थे। इसलिए कांग्रेस की असल दिक्कत है कि वह धरातली हकीकत जानते हुए भी अपने प्रमुख विपक्षी दल होने के रुतबे के अलावा गठबंधन का सबसे बड़ा दल होने का संकेत भी देना चाहती है। संख्या का सामंजस्य बनाने और मजबूत प्रत्याशी उतारने के दरम्यान उसे और भी समझौते करने पड़ सकते हैं, यह वह भली-भांति जानती है।
राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ में गठबंधन दलों के रुचि ना दिखाने पर तरह-तरह के कयास पहले ही लगाए जा रहे हैं। उप्र का महत्त्व देश की राजनीति में कितना है, यह सब अच्छी तरह जानते हैं। इसलिए वे पिछली बार की गलतियों को दोहराते हुए नहीं नजर आना चाहते।
बसपा के निकलने के बाद गेंद पूरी तरह सपा के पाले में आ चुकी है। वह मौके का फायदा उठाने से हिचकेगी नहीं परंतु वह और कांग्रेस दोनों एक-दूसरे महत्त्व को नजरंदाज कर नया जोखिम नहीं लेना चाहेंगे।
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