मोदी सरकार के गरीबी घटाने के दावे

Last Updated 20 Jan 2024 01:47:34 PM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दावा किया है कि भारत में 25 करोड़ आबादी गरीबी रेखा से बाहर आई है।


मोदी सरकार के गरीबी घटाने के दावे

उनका यह दावा नीति आयोग के गरीबी के बहुआयामी संकेतक (एमपीआइ) के परिचर्चा पत्र के हवाले से है। इसके मुताबिक, पिछले नौ वर्षो यानी मोदी राज में 24.82 करोड़ आबादी को गरीबी से उबारा गया है। प्राय: हर सरकारें इसके लिए योजनाबद्ध प्रयास और इसमें सफलता के दावे करती रही हैं।

इससे वे अपनी सच्ची जनहितैषिता साबित करती हैं। मोदी सरकार इसकी अपवाद नहीं हैं। उसने शुरुआत से ही गरीबी मिटाने की दिशा में कांग्रेस सरकारों के ‘नारों’ के बजाए ‘नेक-नीयत’ से प्रयास शुरू कर दिए थे। कई योजनाएं-मुफ्त अनाज, गैस कनेक्शन, आयुष्मान कार्ड, जन-धन योजना शुरू की गई, जिन्होंने गरीबी पर चोट कीं। इसमें कोई संदेह नहीं कि गरीबी हटाने के कई प्रयास कई दिशाओं से किए गए। यह दिखता भी है। पर विपक्षी कांग्रेस को उनके दावों और आंकड़ों पर एतबार नहीं है।

एक वर्ग और भी है, जो सरकारी दावे पर सवाल उठाता है। इसकी वजह यह है कि इनमें व्यक्ति की आमदनी के स्तर, उपभोक्ता सूचकांक शामिल नहीं हैं और ये आंकड़े कोरोना के पहले लिए बताते हैं। पर विश्व बैंक एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष मोदी सरकार और नीति आयोग के आंकड़ों से सहमत हैं।

वे इसके लिए मोदी सरकार की सराहना भी करते हैं। ऐसे में नीति आयोग के आंकड़ों में घालमेल की आशंका निराधार हो जाती है। अगर यही बात है तो भी यूपीए के 10 वर्षो के शासनकाल में 27 करोड़ लोग गरीबी से निजात पा सके थे। मजदूरों की दैनिक मजदूरी में तब 4.1 फीसद की बढ़ोतरी हुई जबकि एनडीए के समय में 1.3 फीसद की। इसी तरह, यूपीए के समय विकास दर 6.8 फीसद थी तो अभी 5.8 फीसद है। वैश्विक भूख सूचकांक में भी भारत की जगह और फिसली है।

सरकार के समर्थक विचार इसके मानक को कैलोरी आधारित बता कर सवाल उठाते हैं। और अभी बात भूख से और गरीबी से लड़ने के स्तर पर ही हो रही है, तो नागरिकों को यूरोप जैसा कैलोरीयुक्त भोजन मुहैया कराना दूर की बात है। बढ़ती आबादी वाले भारत में दो जून भोजन ही बहुत बड़ा लक्ष्य हो गया है।

यह किसी भी देश के लिए शर्म की बात तो है ही प्रगति के तमाम दावों के बावजूद एक बड़ी आबादी गरीबी में दयनीय जीवन जीती है। मुफ्त राशन के बजाय नियमित रोजगार का सतत प्रबंध ही वह सही ‘नीयत’ हो सकती है।



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